अंगारकी चतुर्थी व्रत कथा।Angaraki Chaturthi Vrat katha PDF Download: अंगारकी चतुर्थी एक ऐसा व्रत है जो हमें हमारी परंपराओं और आस्थाओं से जोड़े रखता है,आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली चतुर्थी को ही अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है,इस व्रत में भगवान गणेश और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भगवान गणेश को सुख और समृद्धि का देवता माना जाता है इस दिन सभी लोग भगवान गणेश से कामना करते हैं कि उनको सुख और समृद्धि प्राप्त हो। कहा जाता है कि अंगारकी चतुर्थी के व्रत वाले दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर भगवान गणेश जिन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है उनकी और उनकी माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं। अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) का व्रत न सिर्फ हमारी आध्यात्मिक यात्रा का एक अहम पड़ाव है बल्कि यह हमें अपने परिवारोंजनों से जोड़ के रखता है।
यह एक ऐसा अवसर होता है जब हम अपनी दुनियादारी की परेशानियों कुछ पल निकालकर अपने आराध्य देव के साथ बिताते हैं और उनसे अपने जीवन में सकारात्मकता और खुशियां मांगते हैं। कहा जाता है कि अंगारकी चतुर्थी वाले दिन भगवान गणेश की पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सुख और शांति बनी रहती है। ये भी माना जाता है कि इस दिन चंद्र दर्शन करना बेहद लाभकारी माना जाता है। आज हम इस लेख में हम अंगारकी चतुर्थी व्रत के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे, इसका महत्व क्या है, इसे कैसे किया जाता है, इसकी पूजा विधि क्या है व्रत के लाभ और इसे करने के नियम। साथ ही हम आपको बताएंगे कि कैसे इस व्रत को करके आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। तो पढ़ते रहिए यह लेख अंत तक…
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क्या है अंगारकी चतुर्थी व्रत (Kya Hai Angaraki Chaturthi Vrat)
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण दिन होता है, जो विघ्नहर्ता भगवान गणेश के समर्पित होता है। यह व्रत हर हिन्दू लुनर मास के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है, और इसे ‘संकष्टी’ कहते हैं, जिसका अर्थ होता है ‘संकट के समय मुक्ति’। 2024 में, यह 25 जून को मनाया जाएगा। व्रत का पालन सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन होने तक किया जाता है, और इस दिन उपवास का पालन करने वाले व्यक्ति की सभी कामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत भक्तों को उनकी समस्याओं से मुक्ति दिलाने में मदद करता है, और उन्हें धन, समृद्धि, और खुशी की प्राप्ति करने में सहायता करता है।
कब है अंगारकी चतुर्थी व्रत (Kab Hai Angarki Chaturthi Vrat)
2024 में अंगारकी चतुर्थी 25 जून, मंगलवार (Tuesday) को मनाई जाएगी। यह हिंदू कैलेंडर के चंद्र माह की चौथी तिथि को मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है, जिन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है। “अंगारकी” शब्द संस्कृत के “अंगारक” शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है मंगल ग्रह। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मंगल प्रसन्न होते हैं और जीवन में सौभाग्य, समृद्धि प्राप्त होती है और बाधाएं दूर होती हैं।
अंगारकी चतुर्थी व्रत का महत्व (Angarki Chaturthi Vrat Significance)
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) व्रत का महत्व निम्नलिखित दो बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति: अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) का व्रत भगवान गणेश (Lord Ganesh) को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश (Lord Ganesh) की पूजा करने से उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंगारक (मंगल देव) ने कठोर तपस्या करके भगवान गणेश को प्रसन्न किया था। प्रसन्न होकर गणेश जी ने उन्हें वरदान दिया कि जब भी मंगलवार को चतुर्थी का संयोग होगा, वह अंगारकी चतुर्थी के रूप में मनाई जाएगी और इस दिन गणेश जी की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होगी। इस व्रत को करने से भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सफलता, समृद्धि और खुशहाली आती है।
- जीवन की बाधाओं का निवारण: अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) के व्रत को करने से जीवन की विभिन्न समस्याओं का शीघ्र समाधान होता है। भगवान गणेश विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं और उनकी पूजा करने से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने में मदद मिलती है। यह व्रत परिवार के कल्याण, समृद्धि, प्रगति, चिंताओं और रोगों के निवारण तथा शांति और खुशहाली की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
अंगारकी चतुर्थी व्रत क्यों मनाई जाती है (Kyun Manai Jati Hai Angarki Chaturthi Vrat)
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हर छह महीने में मंगलवार को पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी कष्टों और बाधाओं का निवारण होता है, घर में सुख-शांति आती है और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अंगारकी चतुर्थी का इतिहास (Angaraki Chaturthi Vrat History)
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) व्रत, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे विघ्नहर्ता भगवान गणेश की उपासना के लिए धारण किया जाता है। यह व्रत हिंदू पंचांग के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि पर किया जाता है।
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki chaturthi) का इतिहास महर्षि भरद्वाज और उनके पुत्र अंगिरा से जुड़ा हुआ है। वे भगवान गणेश के अत्यंत भक्त थे और उन्होंने उनकी उपासना अत्यंत भक्ति के साथ की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें वरदान दिया कि मंगलवार को गिरने वाली चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा और उस दिन उनकी उपासना करने से विशेष लाभ मिलेगा। अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत का पालन करने से मान्यता है कि समस्त विघ्नों का नाश होता है और समृद्धि, खुशियाँ और संकटों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत भगवान गणेश की उपासना, विशेष मंत्रों और प्रार्थनाओं का उच्चारण, और कठोर उपवास के द्वारा मनाया जाता है। व्रत का समापन चंद्रमा का दर्शन करके होता है। भाद्रपद मास में आने वाली अंगारकी चतुर्थी को विशेष महत्व दिया जाता है। इसे भद्र चतुर्थी या अंगारकी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
अंगारकी चतुर्थी व्रत कथा (Angaraki Chaturthi Vrat katha)
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki Chaturthi) की व्रत कथा गणेश पुराण के उपासना खंड के 60वें अध्याय में वर्णित है। कथा कुछ इस प्रकार है:
सूर्य देव के पुत्र सवन की देखभाल पृथ्वी देवी ने सात वर्षों तक की, भरद्वाज महर्षि की सलाह पर। इस अवधि के बाद, उन्होंने लड़के को महर्षि के पास ले जाकर अपना पुत्र बताया। महर्षि खुश हुए और उसे अपना मानकर उपनयन संस्कार कर वेद और अन्य शास्त्रों की शिक्षा दी। उन्होंने लड़के को गणपति मंत्र की दीक्षा दी और उसे भगवान गणेश की उपासना करने का निर्देश दिया।
लड़के ने गंगा के किनारे जाकर भगवान गणेश (Lord Ganesh) का ध्यान किया, और एक हजार वर्षों तक कोई भोजन या पानी के बिना उनका मंत्र जपा। माघ कृष्ण चतुर्थी को, जब चंद्रमा उगा, तब भगवान गणेश ने अपने आठ हाथ वाले रूप में, विभिन्न अस्त्रों से सजे हुए, और हजारों सूर्यों से अधिक चमकते हुए, लड़के के सामने आकर दर्शन दिए। लड़का भक्ति से भरा हुआ, भगवान की स्तुति करने लगा, जिसके बाद भगवान ने उसे वरदान दिया। अब संतुष्ट हुए लड़के ने भगवान से अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना की, कि उनकी माँ पार्वतीमालिनी, उनके पिता, और उनकी जीवन, दृष्टि, वाणी, और जन्म सफल हो। उन्होंने यह भी मांगा कि उन्हें स्वर्ग में देवताओं के साथ अमृत पीने की अनुमति मिले और उनका नाम “मंगल” के रूप में प्रसिद्ध हो, जो सभी तीन लोकों में शुभकारी हो। दयालु भगवान ने उनकी इच्छाओं को पूरा करने के साथ-साथ उन्हें “अंगारक” नाम दिया, और घोषणा की कि यह चतुर्थी “अंगारकी चतुर्थी” के नाम से जानी जाएगी, और जो कोई इस दिन व्रत रखेगा, वह अपने प्रयासों में एक वर्ष तक सफलता प्राप्त करेगा।
अब “मंगल” नाम से प्रसिद्ध लड़के ने एक शानदार मंदिर बनाया और भगवान गणेश की दस हाथ वाली मूर्ति स्थापित की, जिसे उन्होंने “मंगलमूर्ति” नाम दिया। कहा जाता है कि जो कोई भगवान गणेश के इस रूप की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। पृथ्वी के पुत्र ने अंगारकी चतुर्थी का व्रत रखा और इसके परिणामस्वरूप स्वर्ग और अनंत आनंद प्राप्त किया।
अंगारकी चतुर्थी व्रत कथा पीडीएफ (Angaraki Chaturthi Vrat katha PDF)
अंगारकी चतुर्थी की पावन व्रत कथा से संबंधित यह विशेष पीडीएफ (PDF) हम आपसे साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करके आप अंगारकी चतुर्थी की व्रत कथा को आप सरलता पूर्वक पढ़ सकते हैं।
अंगारकी चतुर्थी व्रत कथा PDF Download | View Kahaniअंगारकी चतुर्थी पूजा विधि (Angarki Chaturthi Pooja Vidhi)
अंगारकी चतुर्थी (Angarki Chaturthi) व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
- तैयारी: व्रती को प्रातः जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और पूजा आरंभ करने से पहले स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए।
- कलश स्थापना: एक तांबे या पीतल के घड़े को जल से भरकर, उसके ऊपर नारियल रखकर उसे आम के पत्तों और लाल कपड़े से सजाया जाता है। इसे कलश कहा जाता है।
- गणेश पूजा: भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को एक स्वच्छ कपड़े या लकड़ी के मंच पर स्थापित किया जाता है। मूर्ति को फूलों, चंदन की पेस्ट, और अन्य पूजा सामग्री से सजाया जाता है। “ॐ गं गणपते नमः” मंत्र का जाप करते हुए पूजा की जाती है।
- भेंट: भगवान गणेश की मूर्ति के समक्ष फल, मिठाई, मोदक, नारियल और अन्य भेंटें अर्पित की जाती हैं। साथ ही, व्रती इत्र और तेल के दीपक जलाते हैं।
- मंत्र जाप: व्रती “ॐ गं गणपते नमः” मंत्र का जाप 108 बार या जितना संभव हो सके, करते हैं।
- आरती: दीपक को भगवान गणेश की मूर्ति के चारों ओर घुमाकर आरती की जाती है। इसके पश्चात, प्रसाद (भेंटें) व्रतियों में वितरित किया जाता है।
- निष्कर्ष: पूजा का समापन व्रतियों द्वारा भगवान गणेश से आशीर्वाद और सुरक्षा की कामना के साथ किया जाता है।
अंगारकी चतुर्थी व्रत विधि (Angarki Chaturthi Vrat Vidhi)
- प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और गंगाजल से गणेश जी की मूर्ति को शुद्ध करें। पूजा के लिए धूप, कपूर, फूल, चावल, फल, हल्दी, प्रसाद आदि इकट्ठा करें।
- गणेश जी (Lord Ganesh) की स्थापना करने के बाद घी का दीपक जलाएं, पूजा का संकल्प लें, गणेश जी का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। जल, पंचामृत और शुद्ध जल से गणेश जी का अभिषेक करें। गणेश मंत्र, चालीसा और स्तोत्र का पाठ करें।
- गणेश जी को नए वस्त्र या एक धागा पहनाएं। सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें। गणेश जी को सुगंधित धूप दिखाएं। एक और दीपक जलाकर गणेश जी की मूर्ति को प्रदीप्त करें।
- हाथ धोकर मोदक, मिठाई, गुड़ और फल के साथ नैवेद्य अर्पित करें। कपूर और घी के दीपक से गणेश जी की आरती करें। गणेश जी के चरणों में फूल अर्पित करें। गणेश जी की मूर्ति के चारों ओर प्रदक्षिणा करें।
- पूजा पूरी करने के बाद जरूरतमंदों के साथ भोजन और अन्य संसाधन साझा करें, गायों को आहार दें और गौशालाओं में दान करें। शाम को चंद्रमा पूजा और दर्शन के बाद व्रत का समापन करें।
अंगारकी चतुर्थी व्रत के लाभ (Angarki Chaturthi Vrat ke Fayde)
अंगारकी चतुर्थी व्रत (Angarki chaturthi vrat) के लाभ:
- संकटों का निवारण: अंगारकी चतुर्थी (Angarki chaturthi) के दिन भगवान गणेश और मंगल देव की पूजा करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं। इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है और वे एक शांतिपूर्ण जीवन जी पाते हैं।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: अंगारकी चतुर्थी (Angarki chaturthi) व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान गणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें वांछित वरदान प्रदान करते हैं। इस दिन की गई प्रार्थनाएं अवश्य फलीभूत होती हैं।
- कर्ज से मुक्ति और मंगल दोष का निवारण: अंगारकी चतुर्थी का व्रत विशेष रूप से कर्ज से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, इस दिन व्रत करने वाले भक्तों की कुंडली से मंगल के दोषों का भी निवारण हो जाता है। अतः यह व्रत आर्थिक और ज्योतिषीय रूप से लाभकारी माना जाता है।
अंगारकी चतुर्थी व्रत के नियम (Angarki Chaturthi Vrat ke Niyam)
अंगारकी चतुर्थी व्रत (Angarki chaturthi) के मुख्य नियम इस प्रकार हैं:
- व्रत का प्रारम्भ: अंगारकी चतुर्थी (Angarki chaturthi) का व्रत सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके गणेश जी और मां दुर्गा की पूजा करने से शुरू होता है।
- पूजा विधि: धूप-दीप जलाकर गणेश जी को दूध से स्नान कराएं, सिंदूर-घी का चोला चढ़ाएं, चाँदी का वर्क और जनेऊ अर्पित करें। गणेश मंत्र का जाप, रोली-चावल से तिलक, गंध-पुष्प, लड्डू का भोग, फल, पान-सुपारी अर्पित करें। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ और आरती करें।
- उपवास और भोजन: सूर्योदय से रात्रि में चंद्रमा दर्शन तक उपवास रखें। दिन में फलाहार का सेवन कर सकते हैं, सेंधा नमक का सेवन न करें। संध्या में गणेश पूजन और व्रत कथा सुनें। चंद्रमा दर्शन के बाद ही भोजन करें।
- व्रत का फल: इस व्रत से शांति, धन-समृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। साधक के दुख दूर होते हैं। वर्ष की सभी संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पुण्य लाभ मिलता है।
Conclusion:-Angaraki chaturthi Vrat katha
अंगारकी चतुर्थी (Angaraki Chaturthi) आध्यात्मिकता और आत्मिक विकास का त्योहार है। यह हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश की शक्ति और बुद्धि का उपयोग कर सकते हैं। अंगारकी चतुर्थी के पावन त्यौहार से संबंधित यह बेहद विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो ऐसे ही और भी व्रत एवं प्रमुख हिंदू त्योहार से संबंधित विशेष लेख हमारी वेबसाइट पर आकर जरूर पढ़ें और हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर भी रोजाना विजिट करें।
FAQ’s:
Q. अंगारकी चतुर्थी की कथा किस ग्रंथ में वर्णित है?
Ans. अंगारकी चतुर्थी की कथा गणेश पुराण के उपासना खंड के 60वें अध्याय में वर्णित है। यह कथा महामुनि भरद्वाज के पुत्र द्वारा भगवान गणेश की कठोर तपस्या और उनसे वरदान प्राप्ति के बारे में बताती है।
Q. महामुनि भरद्वाज के पुत्र ने कितने वर्ष तक गणेश जी की तपस्या की?
Ans. महामुनि भरद्वाज के पुत्र ने निराहार रहकर एक सहस्र वर्ष तक गंगा तट पर गणेश जी का ध्यान करते हुए भक्तिपूर्वक उनके मंत्र का जप किया। इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर गणेश जी उन्हें दर्शन देने प्रकट हुए।
Q. अंगारकी चतुर्थी व्रत का क्या महत्व है?
Ans. अंगारकी चतुर्थी व्रत करने से पुत्र-पौत्र की प्राप्ति, समृद्धि और समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत की महिमा अद्भुत है और इसके कीर्तन मात्र से ही मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
Q. गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए क्या करना चाहिए?
Ans. गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश को विशुद्ध प्रेम और भक्ति अभीष्ट है। श्रद्धापूर्वक उनकी आराधना करने से वे मोदक के साथ-साथ कपित्थ, जामुन जैसे वन्य फलों और दूर्वा के 2 पत्तों से भी प्रसन्न हो जाते हैं।
Q. अंगारकी चतुर्थी कब मनाई जाती है?
Ans. अंगारकी चतुर्थी प्रत्येक माह में दो बार आती है – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को जब वह मंगलवार के दिन पड़े। इसलिए इसे मंगल चतुर्थी या अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है।
Q. अंगारकी चतुर्थी व्रत कैसे किया जाता है?
Ans. अंगारकी चतुर्थी के दिन भक्त प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर गणेश जी की मूर्ति या चित्र की स्थापना करते हैं। फिर गणेश मंत्र का जप, आरती, कथा श्रवण एवं भोग लगाते हैं। व्रत के दौरान निराहार या फलाहार किया जाता है।