माना जाता है कि भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह हुआ था, जिससे तुलसी माता लक्ष्मी की सौतन बन गईं। इसी कारण माता लक्ष्मी की पूजा में तुलसी पत्र वर्जित है।
पौराणिक कथा के अनुसार, असुर जलंधर की पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण जलंधर अजेय था। भगवान विष्णु ने एक योजना से वृंदा का धर्म भंग कर दिया, जिसके बाद भगवान शिव ने जलंधर का वध किया। वृंदा के श्राप के कारण शिव की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।
एक बार तुलसी माता ने गणेश जी से विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे गणेश जी ने अस्वीकार कर दिया। नाराज़ तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया, जिस पर गणेश जी ने भी उन्हें श्राप दे दिया कि उनकी पूजा में तुलसी वर्जित होगी। इसलिए गणेश जी की पूजा में तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता।
हालांकि तुलसी कुछ देवी-देवताओं की पूजा में वर्जित है, फिर भी भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का अभिन्न स्थान है, और यह शुभ कार्यों में सुख-समृद्धि लाती है।