माता स्कंदमाता की कहानी (Mata Skand Mata Ki Kahani): देवी माता स्कंदमाता, नवरात्रि की पांचवीं शक्ति हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व बहुत महत्व रखता है, और इस पर्व में देवी माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों में से पांचवीं शक्ति है माता स्कंदमाता, जो भगवान शिव की पत्नी और भगवान गणेश व भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं।
माता स्कंदमाता की महिमा और शक्ति के बारे में जानने के लिए, हमें उनकी उत्पत्ति, स्वरूप, और पूजा विधि के बारे में जानना होगा। माता स्कंदमाता की कहानी पुराणों में वर्णित है, और उनकी पूजा करने से भक्तों को शक्ति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के पांचवें दिन माता स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है, और इस दिन भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। माता स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और शक्ति की प्राप्ति होती है, और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। माता स्कंदमाता की महिमा और शक्ति के बारे में जानने से हमें उनकी पूजा करने की प्रेरणा मिलती है, और हमें उनकी कृपा की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता स्कंदमाता की उत्पत्ति कैसे हुई और उनकी प्रार्थना कैसे की जाती है? क्या आप जानते हैं कि माता स्कंदमाता का स्वरूप वर्णन क्या है और उनका प्रमुख मंत्र क्या है?
इस लेख में, हम माता स्कंदमाता के बारे में विस्तार से जानेंगे और उनकी महिमा को समझेंगे। तो आइए, माता स्कंदमाता के बारे में जानें और उनकी शक्ति का लाभ उठाएं….
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देवी माता स्कंदमाता कौन हैं? (Devi Mata Skandmata Kaun Hain?)
मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं, जिसके कारण उन्हें पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता को गौरी, माहेश्वरी, पार्वती और उमा जैसे विभिन्न नामों से भी पुकारा जाता है। उनका वाहन शक्तिशाली सिंह है, जो उनकी वीरता और गरिमा का प्रतीक है। मान्यता है कि मां की सच्चे मन से उपासना करने से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। उनकी पूजा से केवल भक्ति नहीं, बल्कि संतान की खुशियों का आशीर्वाद भी मिलता है, जिससे भक्तों का जीवन समृद्ध और सुखमय बनता है।
देवी माता स्कंदमाता की उत्पत्ति कैसे हुई? (Devi Mata Skandmata ki Utpatti Kaise Hui?)
भगवान स्कन्द, जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है, के माता बनने के बाद माता पार्वती को समस्त लोकों में देवी स्कन्दमाता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। इस प्रकार, उन्होंने अपनी मातृत्व शक्ति के कारण दिव्य पहचान प्राप्त की, जो भक्तों में श्रद्धा का संचार करती है।
नवरात्रि पूजा (Navaratri Puja)
नवरात्रि उत्सव के पांचवें दिन देवी स्कन्दमाता की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है, जो श्रद्धालुओं के लिए अद्भुत आस्था और भक्ति का प्रतीक है।
शासनाधीन ग्रह (Shashnadheen Grah)
मान्यता के अनुसार, बुद्ध ग्रह की शासनकर्ता देवी स्कन्दमाता हैं, जो ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी कृपा से बौद्धिक विकास संभव है।
स्वरूप वर्णन (Swaroop Varnan)
देवी स्कन्दमाता एक शक्तिशाली सिंह पर विराजमान होती हैं, जबकि उनकी गोद में बालक मुरुगन हैं। भगवान मुरुगन, जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है, भगवान गणेश के भाई हैं। देवी स्कन्दमाता को चतुर्भुज रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके ऊपरी दो भुजाओं में कमल के फूल हैं; एक दाहिने हाथ में वे बाल मुरुगन को धारण करती हैं, जबकि दूसरे हाथ को अभय मुद्रा में उठाए रखती हैं। देवी कमल पुष्प पर आसीन हैं, इसीलिए उन्हें देवी पद्मासना भी कहा जाता है।
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प्रिय पुष्प (Priya Pushp)
- स्कंदमाता को लाल रँग के पुष्प अत्यधिक प्रिय हैं।
मन्त्र (Mantra)
- ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
प्रार्थना (Prarthana)
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
स्तुति (Stuti)
- या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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स्तोत्र (Stotra)
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्॥तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥
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आरती (Aarti)
जय तेरी हो स्कन्द माता।
पाँचवाँ नाम तुम्हारा आता॥सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी॥तेरी जोत जलाता रहूँ मैं।
हरदम तुझे ध्याता रहूँ मै॥कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा॥कही पहाड़ों पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा॥हर मन्दिर में तेरे नजारे।
गुण गाये तेरे भक्त प्यारे॥भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥इन्द्र आदि देवता मिल सारे।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आये।
तू ही खण्ड हाथ उठाये॥दासों को सदा बचाने आयी।
भक्त की आस पुजाने आयी॥
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Conclusion:- Mata Skand Mata Ki Kahani
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FAQ’s
Q1. स्कंदमाता कौन हैं?
Ans. स्कंदमाता देवी दुर्गा का पांचवा रूप हैं। वे भगवान कार्तिकेय की माता हैं और उनकी गोद में बालक स्कंद बैठे हुए हैं। इन्हें शेर पर सवार दिखाया जाता है और इनकी चार भुजाएं होती हैं। इनकी पूजा से भक्तों को शांति, समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
Q2. स्कंदमाता का वाहन क्या है?
Ans. स्कंदमाता का वाहन सिंह (शेर) है। उनके सिंह पर सवार होने से यह संदेश मिलता है कि वह भय का नाश करती हैं और अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
Q3. स्कंदमाता की पूजा कब और क्यों की जाती है?
Ans. स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवे दिन की जाती है। यह दिन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि उनकी कृपा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी कष्ट दूर होते हैं। स्कंदमाता की पूजा करने से मनुष्य में धैर्य, विवेक और साहस की वृद्धि होती है।
Q4. स्कंदमाता की पूजा का महत्व क्या है?
Ans. स्कंदमाता की पूजा करने से मन, वचन, और कर्म में संतुलन बना रहता है। यह मान्यता है कि उनकी पूजा से भक्तों को संसारिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो लोग अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं, उन्हें विशेष रूप से स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।
Q5. देवी स्कंदमाता का स्वरूप कैसा है?
Ans. देवी स्कंदमाता चतुर्भुज रूप में होती हैं, जिनके एक हाथ में बालक मुरुगन होते हैं और अन्य हाथ अभय मुद्रा में होते हैं।
Q6. स्कंदमाता की कथा क्या है?
Ans. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान स्कंद (कार्तिकेय) ने देवताओं की सेना का नेतृत्व कर तारकासुर राक्षस का वध किया। भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र होने के कारण, स्कंदमाता ने अपने पुत्र को युद्ध में विजय दिलाई और उसे राक्षसों से रक्षा की। इसलिए स्कंदमाता को माँ और योद्धा दोनों रूपों में पूजा जाता है।