Jagadguru Rambhadracharya Biography: जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) – एक ऐसा नाम जो हिन्दू धर्म और संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। एक ओर जहाँ वे एक उच्चकोटि के साधक और संत हैं, वहीं दूसरी ओर संस्कृत के अग्रणी कवि, लेखक और विद्वान भी है। उनका जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। महज़ दो माह की उम्र में ही उन्होंने अपनी आँखों की रोशनी खो दी, परन्तु यह आँखों का अंधापन उनके ज्ञान के प्रकाश को रोक न सका।
बचपन से ही उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा के झलक दिखाने शुरू कर दिए थे। 5 साल की उम्र में श्रीमद्भागवत को कंठस्थ कर लिया और 7 साल में पूरा रामचरितमानस याद कर लिया। संस्कृत, हिंदी और कई अन्य भाषाओं पर उनका अद्भुत अधिकार है। 22 से अधिक भाषाएं वे बोल सकते हैं। 100 से भी ज्यादा पुस्तकों की रचना कर चुके हैं स्वामी जी, जिनमें महाकाव्य, नाटक, शोध-निबंध और टीकाएं शामिल हैं। उनकी कृतियों में श्रीभार्गवराघवीयम्, गीतरामायणम् जैसे उत्कृष्ट महाकाव्य हैं। प्रस्थानत्रयी पर उनकी संस्कृत टीकाएं श्रीराघवकृपाभाष्यम् के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनकी विद्वता और साधना को देश-विदेश में सराहा गया है। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है। संस्कृत साहित्य अकादमी सहित कई संस्थानों के पुरस्कारों से वे सम्मानित हो चुके हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) आज हिंदू धर्म और संस्कृत भाषा के क्षेत्र में एक जीवंत संस्था बन चुके हैं। उनका ज्ञान और आध्यात्मिक प्रभाव पूरे विश्व में फैला हुआ है। आइए, उनके बहुआयामी जीवन और कृतित्व के बारे में विस्तार से जानते हैं इस लेख में।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी कौन हैं? (Who is Jagadguru Rambhadracharya ji?)
जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) एक प्रसिद्ध हिंदू धर्मगुरु, शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषी, लेखक और दार्शनिक हैं। वे भारत के चार प्रमुख जगद्गुरुओं में से एक हैं और 1988 से इस उपाधि को धारण कर रहे हैं। रामभद्राचार्य चित्रकूट में संत तुलसीदास (Tulsidas) के नाम पर स्थापित एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संगठन तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। उन्हें भारत सरकार ने 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जीवन परिचय (Biography of Jagadguru Rambhadracharya ji)
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के संदीखुर्द गाँव में एक वशिष्ठ गोत्रीय सारयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम गिरिधर मिश्र है, जो उनकी बुआ मीरा बाई जी द्वारा प्रेरित था, जो कृष्ण भक्त थीं और अपनी कविताओं में उन्हें गिरिधर कहकर संबोधित करती थीं।
रामभद्राचार्य जी महज दो माह की आयु से नेत्रहीन हैं और उन्हें कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं हुई। वे 22 भाषाओं में प्रवीण हैं, जिनमें संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली प्रमुख हैं। उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकें और 50 निबंध लिखे हैं जो संस्कृत व्याकरण, तर्क, वेदांत आदि विषयों पर केंद्रित हैं।
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) रामचरितमानस (Ramcharitmanas) के प्रमुख व्याख्याता हैं और भारत व विदेशों में कथा-वाचन के लिए विख्यात हैं। उनके प्रवचन शुभ टीवी, संस्कार टीवी और सनातन टीवी जैसे चैनलों पर प्रसारित होते हैं। वे विश्व हिंदू परिषद के भी एक प्रमुख नेता हैं।
1988 से वे भारत के चार प्रमुख जगद्गुरुओं में से एक पद पर आसीन हैं। उन्होंने चित्रकूट में संत तुलसीदास के नाम पर तुलसी पीठ की स्थापना की है, जो एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान है। वे चित्रकूट स्थित जानकी देवी मेमोरियल विश्वविद्यालय के संस्थापक और कुलाधिपति भी हैं, जो दिव्यांग छात्रों के लिए विशेष कार्यक्रम प्रदान करता है ।
भारत सरकार ने उन्हें 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उन्हें देवभूमि पुरस्कार (2011), हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार (2007), संस्कृत महामहोपाध्याय (2006), श्री भार्गवराघव्यम् पुरस्कार (2005), राजशेखर सम्मान (2004), कविकुलगुरु रत्न पुरस्कार (2003) और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का विशिष्ट पुरस्कार (2002) से भी नवाजा जा चुका है।
Year | Awards |
2011 | देवभूमि पुरस्कार |
2007 | हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार |
2006 | संस्कृत महामहोपाध्याय |
2005 | श्री भार्गवराघव्यम् पुरस्कार |
2004 | राजशेखर सम्मान |
2003 | कविकुलगुरु रत्न पुरस्कार |
2002 | उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का विशिष्ट पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। |
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी विकिपीडिया (Jagadguru Rambhadracharya ji Wikipedia)
जगद्गुरु रामानंदाचार्य (जन्म 14 जनवरी 1950 को पंडित गिरिधर ) एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक नेता, शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद्, कवि, लेखक, पाठ्य टिप्पणीकार , दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार हैं। और कथा कलाकार भारत के चित्रकूट में स्थित हैं। वह चार मौजूदा जगद्गुरु रामानंदाचार्य में से एक हैं, और उन्होंने 1988 से यह उपाधि धारण की है।
रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) संत तुलसीदास (Tulsidas) के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान, तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। वह चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन चांसलर हैं , जो विशेष रूप से चार प्रकार के विकलांग छात्रों को स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है। रामभद्राचार्य दो महीने की उम्र से ही अंधे हैं, सत्रह साल की उम्र तक उनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी, और उन्होंने सीखने या रचना करने के लिए कभी भी ब्रेल या किसी अन्य सहायता का उपयोग नहीं किया।
रामभद्राचार्य 22 भाषाएँ बोल सकते हैं और संस्कृत, हिंदी , अवधी , मैथिली और कई अन्य भाषाओं के सहज कवि और लेखक हैं । उन्होंने 240 से अधिक किताबें और 50 पेपर लिखे हैं, जिनमें चार महाकाव्य कविताएं, तुलसीदास के रामचरितमानस और हनुमान चालीसा पर हिंदी टिप्पणियां , पद्य में एक संस्कृत टिप्पणी शामिल हैं। अष्टाध्यायी , और प्रस्थानत्रयी ग्रंथों पर संस्कृत टिप्पणियाँ । उन्हें संस्कृत व्याकरण , न्याय और वेदांत सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनके ज्ञान के लिए जाना जाता है। उन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे महान लेखकों में से एक माना जाता है, और वह रामचरितमानस के एक महत्वपूर्ण संस्करण के संपादक हैं। वह रामायण और भागवत के कथा कलाकार हैं । उनके कथा कार्यक्रम भारत और अन्य देशों के विभिन्न शहरों में नियमित रूप से आयोजित होते हैं, और शुभ टीवी, संस्कार टीवी और सनातन टीवी जैसे टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित होते हैं। वह विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता भी हैं ।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की प्रारंभिक शिक्षा (Education of Jagadguru Rambhadracharya ji)
जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) जी की शिक्षा का सफ़र एक प्रेरणादायक कहानी है। बचपन से ही उन्हें धार्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। हालांकि मात्र 2 माह की आयु में ही उन्हें नेत्रहीनता का सामना करना पड़ा, लेकिन इससे उनकी शिक्षा प्रभावित नहीं हुई। उन्होंने ब्रेल लिपि में पढ़ना-लिखना सीखा। मात्र 3 वर्ष की आयु में उन्होंने अष्टाध्यायी, महाभाष्य जैसे कठिन ग्रंथों का अध्ययन प्रारंभ कर दिया। 4 वर्ष की उम्र में उन्होंने वेद मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया। 11 वर्ष की आयु तक उन्होंने 4 वेद, 18 पुराण, उपनिषद, वेदांग, दर्शन, साहित्य आदि का गहन अध्ययन कर लिया था। 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने पिता से 14 विद्याओं और 64 कलाओं की शिक्षा ग्रहण की। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने व्याकरण में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। इस प्रकार उनकी असाधारण प्रतिभा और कड़ी मेहनत से उन्होंने अनेक विषयों में पारंगत हासिल की।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का परिवार (Jagadguru Rambhadracharya’s Family)
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) के परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती है:
पिता | पंडित राजदेव मिश्र |
माता | शची देवी मिश्रा |
बुआ | मीरा बाई जी |
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की कथाएं | Katha’s of Jagadguru Rambhadracharya Ji
जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) जी की कथाएं उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को दर्शाती हैं। वे एक असाधारण व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी दृष्टिहीनता के बावजूद संस्कृत, हिंदी और अन्य भाषाओं में गहन ज्ञान प्राप्त किया है। उनकी कथाओं में रामचरितमानस, भागवत और अन्य धार्मिक ग्रंथों के प्रसंगों का वर्णन होता है जिन्हें वे बड़ी सरलता और रोचकता से सुनाते हैं।
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) की कथाओं में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का संदेश निहित होता है। वे अपनी कथाओं के माध्यम से लोगों को जीवन के सत्य और धर्म का मार्ग दिखाते हैं। उनकी वाणी में एक अद्भुत आकर्षण है जो श्रोताओं के हृदय को छू लेती है। वे भगवान राम और कृष्ण के चरित्र और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं का इस तरह वर्णन करते हैं मानो वे स्वयं उस समय वहां उपस्थित रहे हों।
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) की कथाओं में संगीत और काव्य का भी सुंदर समावेश होता है। वे स्वयं एक उत्कृष्ट गायक और संगीतकार हैं। उनकी मधुर वाणी जब भजनों और कीर्तनों के साथ गूंजती है तो वातावरण भक्तिमय हो जाता है। उनकी कथाएं न केवल ज्ञानवर्धक होती हैं बल्कि मनोरंजक भी होती हैं। वे अपनी कथाओं में हास्य और व्यंग्य का भी खूबसूरती से प्रयोग करते हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की उपलब्धियां (Achievements of Jagadguru Rambhadracharya Ji)
जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) जी एक प्रमुख हिंदू धर्मगुरु, विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने तुलसी पीठ की स्थापना की है और वे विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और कुलपति हैं। उन्होंने 22 भाषाओं में माहिरता हासिल की है और उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकें और 50 लेख लिखे हैं। उन्होंने भारत सरकार से पद्म विभूषण सम्मान प्राप्त किया है।
रामभद्राचार्य जी को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिसमें 2015 में पद्म विभूषण, 2011 में हिमाचल प्रदेश सरकार से देवभूमि पुरस्कार, 2006 में प्रयाग की हिंदी साहित्य सम्मेलन, 2006 में संस्कृत महामहोपाध्याय और 2005 में श्री भार्गवराघव्याम के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं। 2023 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। उनके योगदानों के लिए उन्हें विश्वविद्यालय से महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त हुई।
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का सेवा ट्रस्ट (Jagadguru Rambhadracharya Ji Seva Trust)
रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) ने तुलसी पीठ की स्थापना की है, जो संत तुलसीदास के नाम पर एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्था है । इसके अलावा, उन्होंने रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जो चित्रकूट में स्थित है और यह विशेष रूप से विकलांग छात्रों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी और धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के बीच क्या संबंध है? (What is relation between Jagadguru Rambhadracharya ji and Dhirendra Krishna Shastri)
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri), उर्फ बागेश्वर महाराज, भारत में एक प्रसिद्ध धार्मिक व्यक्तित्व हैं। उनके गुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) जी हैं, रामभद्राचार्य ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को प्रेरित किया और उन्हें अपनी शिक्षाओं के तहत गाइड किया।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपने गुरु की शिक्षाओं को अपनाया और भागवत कथा, भजनों, और धार्मिक वार्तालापों के माध्यम से उन्हें फैलाया।
जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने दी राम जन्मभूमि की गवाही (When Jagadguru Rambhadracharya testified about Ram Janmabhoomi)
जगतगुरु रामभद्राचार्य जी एक प्रसिद्ध हिंदू धर्मगुरु, संस्कृत विद्वान और 1988 से जगतगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अयोध्या राम मंदिर विवाद पर गवाही देते हुए, रामभद्राचार्य जी ने 441 प्रमाण रामजन्मभूमि के पक्ष में पेश किए। उन्होंने रामायण, वेदों, उपनिषदों का हवाला देकर राम जन्मभूमि का प्रमाण दिया। उनकी गवाही से प्रभावित होकर मुस्लिम जज ने भी रामभद्राचार्य जी से कहा कि, “सर, यू आर डिवाइन पावर” (Sir, you are divine power)। अंततः 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूरी विवादित जमीन रामलला को सौंप दी।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की फोटो (Photo of Jagadguru Rambhadracharya ji)
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya ji) की बेहद ही खास और सुंदर तस्वीर हम आपसे इस विशेष लेख के जरिए साझा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो आप इन सभी तस्वीरों को आसानी से डाउनलोड भी कर सकते हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की सोशल मीडिया लिंक (Social media link of Jagadguru Rambhadracharya ji)
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य की आधिकारिक वेबसाइट (Official Website of Jagadguru Rambhadracharya)
जगद्गुरु रामभद्राचार्य की आधिकारिक वेबसाइट: | https://jagadgururambhadracharya.org/ |
Conclusion:
अपनी विद्वत्ता, प्रखर वक्ता, और सामाजिक कार्यों के लिए रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya) को अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें पद्मविभूषण भी शामिल है। वे हिंदू धर्म के एक प्रखर स्तंभ हैं और उनके कार्य समाज में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो एक बार हमारे अन्य सभी आर्टिकल्स को भी जरूर पढ़िए और अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो उसे कॉमेंट बॉक्स में जाकर जरुर पूछे, हम आपके सभी प्रश्नों का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे। ऐसे ही और भी लेख को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट janbhakti.in पर रोज़ाना विज़िट करें ।
FAQ’s:
Q. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी कब और कहाँ पैदा हुए?
Ans. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के सांडीखुर्द गाँव में एक वसिष्ठ गोत्रीय सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
Q. रामभद्राचार्य जी कितनी भाषाएँ जानते हैं और उन्होंने कितने ग्रंथ लिखे हैं?
Ans. रामभद्राचार्य जी 22 भाषाओं के ज्ञाता हैं। वे संस्कृत, हिंदी, अवधी, मैथिली और कई अन्य भाषाओं के लेखक हैं। उन्होंने 80 से अधिक ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य कविताएं और 50 पत्र शामिल हैं।
Q. रामभद्राचार्य जी किस उम्र से नेत्रहीन हैं और इसका क्या कारण था?
Ans. रामभद्राचार्य जी दो महीने की उम्र से ही नेत्रहीन हैं। 24 मार्च 1950 को उनकी आँखों में रोहे हो गए थे। एक वृद्ध महिला चिकित्सक ने रोहे के इलाज के लिए उनकी आँखों में गरम द्रव्य डाला, जिससे रक्तस्राव के कारण उनकी दोनों आँखों की रोशनी चली गई।
Q. रामभद्राचार्य जी किस संप्रदाय के जगद्गुरु हैं और कब से इस पद पर हैं?
Ans. रामभद्राचार्य जी रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं। वे 1988 से इस पद पर प्रतिष्ठित हैं। वे भारत के चार प्रमुख जगद्गुरु में से एक हैं।
Q. रामभद्राचार्य जी किस संस्थान के संस्थापक हैं?
Ans. रामभद्राचार्य जी चित्रकूट स्थित तुलसीपीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। तुलसीपीठ संत तुलसीदास के नाम पर एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान है।
Q. रामभद्राचार्य जी किन विषयों के विद्वान माने जाते हैं?
Ans. रामभद्राचार्य जी को संस्कृत व्याकरण, न्याय और वेदांत सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनके ज्ञान के लिए स्वीकार किया जाता है। वे रामचरितमानस के एक महत्वपूर्ण संस्करण के संपादक हैं।