मानव जीवन में भोजन का महत्व सर्वोपरि है। जीवन का आधार, ऊर्जा का स्रोत, और स्वास्थ्य का स्तंभ, भोजन ही वह अमूल्य वस्तु है जो हमें जीवित रखता है। हिंदू धर्म में, इस जीवनदायी वस्तु की देवी के रूप में पूजनीय हैं माता अन्नपूर्णा। अन्नपूर्णा माता, देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो भक्तों को भोजन और पोषण प्रदान करती हैं। ‘अन्न’ का अर्थ है ‘भोजन’ और ‘पूर्णा’ का अर्थ है ‘पूर्ण’। अतः, अन्नपूर्णा का अर्थ है ‘भोजन से पूर्ण’ या ‘भोजन की देवी’। माता अन्नपूर्णा की छवियों में उन्हें अक्सर भोजन से भरे पात्र और चम्मच धारण करते हुए दिखाया जाता है। यह उनकी उदारता और पोषण प्रदान करने की क्षमता का प्रतीक है। हिंदू धर्म में, अन्नपूर्णा माता की पूजा भोजन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और भविष्य में भी भोजन की पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए की जाती है।
अन्नपूर्णा चालीसा, भगवती अन्नपूर्णा के प्रति समर्पित एक भक्तिमय रचना है। जिसमें भक्त माता अन्नपूर्णा से भोजन, समृद्धि और जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करता है। माता अन्नपूर्णा भक्तों को भोजन, धन और अन्य भौतिक सुखों का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। चालीसा का पाठ करने से भक्तों को जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है और उन्हें शांति और सुख प्राप्त होता है। इसीलिए आप भी प्रतिदिन अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ अवश्य करें ।
॥ दोहा ॥
विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।
॥ चौपाई ॥
नित्य आनंद करिणी माता,
वर अरु अभय भाव प्रख्याता ॥
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,
अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ॥
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,
संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ॥
काशी पुराधीश्वरी माता,
माहेश्वरी सकल जग त्राता ॥
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,
विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ॥
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,
पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ॥
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,
योग अग्नि तब बदन जरावा ॥
देह तजत शिव चरण सनेहू,
राखेहु जात हिमगिरि गेहू ॥
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,
अति आनंद भवन मँह छायो ॥
नारद ने तब तोहिं भरमायहु,
ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ॥ 10 ॥
ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,
देवराज आदिक कहि गाये ॥
सब देवन को सुजस बखानी,
मति पलटन की मन मँह ठानी ॥
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,
कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ॥
निज कौ तब नारद घबराये,
तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ॥
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,
संत बचन तुम सत्य परेखेहु ॥
गगनगिरा सुनि टरी न टारे,
ब्रहां तब तुव पास पधारे ॥
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,
देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ॥
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,
कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ॥
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,
है सौगंध नहीं छल तोसों ॥
करत वेद विद ब्रहमा जानहु,
वचन मोर यह सांचा मानहु ॥ 20 ॥
तजि संकोच कहहु निज इच्छा,
देहौं मैं मनमानी भिक्षा ॥
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,
मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ॥
बोली तुम का कहहु विधाता,
तुम तो जगके स्रष्टाधाता ॥
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,
कहवावा चाहहु का मोंसों ॥
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,
शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ॥
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,
कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ॥
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,
फल कामना संशयो गयऊ ॥
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,
तब आनन महँ करत निवासा ॥
माला पुस्तक अंकुश सोहै,
कर मँह अपर पाश मन मोहै ॥
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,
अज अनवघ अनंत पूर्णे ॥ 30 ॥
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,
भव विभूति आनंद भरी माँ ॥
कमल विलोचन विलसित भाले,
देवि कालिके चण्डि कराले ॥
तुम कैलास मांहि है गिरिजा,
विलसी आनंद साथ सिंधुजा ॥
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,
मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ॥
विलसी सब मँह सर्व सरुपा,
सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ॥
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥
प्रात समय जो जन मन लायो,
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ॥
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥
प्रात समय जो जन मन लायो,
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ॥
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥
राज विमुख को राज दिवावै,
जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ॥
पाठ महा मुद मंगल दाता,
भक्त मनोवांछित निधि पाता ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
जो यह चालीसा सुभग,
पढ़ि नावैंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब,
साखी काशी नाथ ॥
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FAQ’S
Q.अन्नपूर्णा माता का दूसरा नाम क्या है?
Ans अन्नपूर्णा देवी हिन्दुओं द्वारा पूजित एक देवी हैं। उनका दूसरा नाम ‘अन्नदा’ है।
Q. अन्नपूर्णा माता किस देवी का रूप है?
Ans. अन्नपूर्णा माता देवी पार्वती का रूप है ।
Q. देवी अन्नपूर्णा का प्रमुख मंदिर कहां है
Ans. देवी अन्नपूर्णा का प्रमुख मंदिर विश्वनाथ मंदिर के पास गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।
Q. माँ अन्नपूर्णा का प्रमुख मंत्र क्या है?
Ans. माँ अन्नपूर्णा का प्रमुख मंत्र ‘ओम ह्रींग अन्नपूर्णाय नमः’ है ।
Q. मां अन्नपूर्णा का प्रमुख भोग क्या है?
Ans. मां अन्नपूर्णा का प्रमुख भोग ‘अनाज’ है ।