कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नियम (Krishna Janmashtami Vrat Niyam 2024): भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) का जन्म हुआ था। इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। भक्तजन इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं, व्रत रखते हैं, और उनके जन्म का उत्सव मनाते हैं। जन्माष्टमी (Janmashtami) पर भगवान कृष्ण (Shri Krishna) के बाल रूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। उनके जन्म का समय मध्यरात्रि माना जाता है, इसलिए देर रात तक भजन-कीर्तन और आरती होती है। भक्त इस पावन अवसर पर कान्हा के श्रृंगार में तल्लीन हो जाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण (Shri Krishna) प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। लेकिन व्रत रखते समय कुछ नियमों का पालन करना अति आवश्यक है। इसके साथ ही, तुलसी का भी इस दिन विशेष महत्व है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कृष्ण जन्माष्टमी 2024 (Krishna Janmashtami Vrat Niyam 2024) में कब मनाई जाएगी, इस दिन व्रत के क्या नियम हैं, तुलसी का क्या महत्व है, और भगवान विष्णु व लक्ष्मी की पूजा कैसे की जाती है। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि जन्माष्टमी व्रत का संकल्प और उद्यापन कैसे किया जाता है। तो चलिए, श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की इस यात्रा में साथ चलते हैं और जानते हैं इस पावन पर्व से जुड़ी रोचक और महत्वपूर्ण बातें…
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Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | कृष्ण जन्माष्टमी व्रत |
2 | जन्माष्टमी व्रत विधि |
3 | जन्माष्टमी पर व्रत के नियम |
4 | जन्माष्टमी व्रत उद्यापन विधि |
5 | जन्माष्टमी व्रत का संकल्प कैसे करें? |
6 | श्री विष्णु जी – लक्ष्मी जी की पूजा |
7 | जन्माष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए? |
8 | जन्माष्टमी पर तुलसी का महत्व |
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत (Krishna Janmashtami Vrat)
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कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, 26 अगस्त को रात 3:39 बजे अष्टमी तिथि शुरू होगी जो अगले दिन 27 अगस्त को रात 2:19 बजे समाप्त होगी। हालांकि, भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए उनकी पूजा 26 अगस्त की रात को की जाएगी।
जन्माष्टमी पर व्रत के नियम (Janmashtami Par Vrat ke Niyam 2024)
जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami Vrat Niyam) एक पवित्र उत्सव है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन, भक्त व्रत रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं। निम्नलिखित हैं व्रत रखने के सात नियम:
- तैयारी (सप्तमी): व्रत जन्माष्टमी (Janmashtami) से पहले सप्तमी तिथि पर शुरू होता है। भक्तों को लहसुन, प्याज, और मांसाहारी भोजन जैसे तामसिक भोजन से बचना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य) का पालन करना चाहिए।
- संकल्प (जन्माष्टमी): जन्माष्टमी के दिन, भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठना, स्नान करना, और स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए। उन्हें फिर व्रत रखने के लिए निम्नलिखित मंत्र पढ़कर संकल्प लेना चाहिए: “ममकिलपप्रशमनपूर्वक सवर्भिषिष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहम करिस्ये”।
- व्रत: भक्त पूरे व्रत का पालन कर सकते हैं या आंशिक व्रत, जिसमें वे फल और पानी का सेवन कर सकते हैं। हालांकि, उन्हें सूर्योदय से भगवान कृष्ण के जन्म तक भोजन या पानी नहीं लेना चाहिए।
- पूजा: पूजा को निशिता काल (मध्यरात्रि) में करना चाहिए, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। पूजा में भगवान कृष्ण की मूर्ति को जल, दूध, और शहद से स्नान कराना, उसे नए कपड़ों में पहनाना, और फूल, फल, और मिठाई चढ़ाना शामिल है।
- जप: भक्तों को पूजा के दौरान मंत्र “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” और अन्य कृष्ण भजन जपना चाहिए।
- आरती: पूजा का समापन आरती से होता है, जहां भक्त भगवान कृष्ण को प्रकाश और अगरबत्ती का दान देते हैं।
- प्रसाद: पूजा के बाद, भक्त परिवार के सदस्यों, दोस्तों, और पड़ोसियों के बीच प्रसाद (पवित्र भोजन) वितरित करते हैं।
यह व्रत भक्तों के लिए भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति व्यक्त करने और उनकी आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर होता है।
जन्माष्टमी व्रत विधि (Janmashtami Vrat Vidhi)
भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) के जन्मोत्सव पर रखा जाने वाला जन्माष्टमी का व्रत अत्यंत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- जन्माष्टमी व्रत (Janmashtami Vrat) की शुरुआत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है।
- व्रत के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
- इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं और उन्हें वस्त्राभूषण से सजाएं।
- पूजा के समय भगवान कृष्ण को कमल के फूल अर्पित करें।
- फल, दही, दूध, पंचामृत और अन्य व्यंजन भी श्री कृष्ण को भोग के रूप में अर्पित करें।
- तुलसी के पत्ते के साथ जल पीना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- नंद गोपाल का पंचामृत से अभिषेक करके उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित करें।
- पूजा के समय ध्यान रखें कि आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो।
- रात्रि में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय यानी अर्धरात्रि के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।
- जन्माष्टमी व्रत के दिन भगवान श्री कृष्ण के भजनों का कीर्तन व श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करना चाहिए।
- ऐसा करने से भगवान कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
व्रत के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए। अविवाहित व्यक्तियों को जन्माष्टमी से एक दिन पहले और व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस प्रकार विधि-विधान व भक्ति भाव से किया गया जन्माष्टमी का व्रत भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने का सर्वोत्तम माध्यम है।
जन्माष्टमी व्रत उद्यापन विधि (Janmashtami Vrat Udyapan Vidhi)
जन्माष्टमी व्रत (Janmashtami Vrat) की उद्यापन विधि इस प्रकार है:
- व्रत के अगले दिन प्रातः काल में स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर उनका ध्यान करें। फिर “श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई” ऐसा सोच कर व्रत का उद्यापन करें।
- इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं। फिर उन्हें नए वस्त्र और श्रृंगार से सजाएं। पुष्प, फल, मिठाई आदि का भोग लगाकर आरती करें।
- व्रत के दौरान जो भी प्रसाद बना हो, उसे भगवान को अर्पित करके ब्राह्मणों और गरीबों में बांटें। साथ ही अपने परिवार के सदस्यों के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
- अंत में “मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत् पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥” मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान से प्रार्थना करें कि हे प्रभु! मेरे द्वारा किए गए इस व्रत और पूजा में जो भी कमियां रह गई हों, कृपया उन सभी कमी को नजरअंदाज करें।
- इस प्रकार श्रद्धा और भक्ति भाव से जन्माष्टमी (Janmashtami) व्रत का उद्यापन करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और व्रती को अपना आशीर्वाद देते हैं। व्रती के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जन्माष्टमी व्रत का संकल्प कैसे करें? (Janmashtami ka Sankalp kaise karen)
जन्माष्टमी व्रत (Krishna Janmashtami Vrat Niyam) का संकल्प करने के लिए सबसे पहले प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद धूप, दीप और फूल अर्पित कर भगवान का ध्यान करें। अब हाथ में जल, पुष्प और एक सुपारी लेकर संकल्प मंत्र बोलें: “ममाखिलपापप्रशमनपूर्वक आयुरारोग्यवृद्ध्यर्थं श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये।” इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें कि आपका व्रत सफल हो और पूरे दिन व्रत का पालन करें। अंत में, संकल्प जल को धरती पर छोड़ दें। इस प्रकार, संकल्प लेकर व्रत की शुरुआत करें और भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की आराधना में दिन व्यतीत करें।
श्री विष्णु जी – लक्ष्मी जी की पूजा (Shri Vishnu ji- Laxmi Ji ki Puja)
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जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami Vrat Niyam) के दौरान भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और लक्ष्मी (Goddess Laxmi) जी की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna), विष्णु जी के अवतार हैं, और उनकी आराधना से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लक्ष्मी जी, विष्णु जी की पत्नी और धन की देवी हैं। उनकी पूजा से समृद्धि और सुख-शांति का वरदान मिलता है। जन्माष्टमी की पूजा में विष्णु और लक्ष्मी जी की उपासना करने से जीवन में संतुलन, समृद्धि, और शांति बनी रहती है। यह पूजा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कृपा से व्रतधारियों को आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
जन्माष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए? (Janmashtami Vrat Mein kya khana Chahiye)
S.NO | जन्माष्टमी व्रत में खाने योग्य पदार्थ |
1 | फलों का सेवन |
2 | मखाना |
3 | दूध और दही |
4 | साबूदाना |
5 | कुट्टू और सिंघाड़े का आटा |
6 | सूखे मेवे |
7 | सेंधा नमक |
जन्माष्टमी पर तुलसी का महत्व (Janmashtami Par Tulsi ka Mahatva)
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- पवित्रता का प्रतीकः तुलसी (Tulsi) को अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तु माना जाता है।
- पूजा में उपयोगः जन्माष्टमी की पूजा में तुलसी के पत्तों का उपयोग अनिवार्य माना जाता है। श्रीकृष्ण को तुलसी दल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- प्रसाद में शामिल: व्रत के दौरान बनने वाले प्रसाद में तुलसी के पत्तों को शामिल किया जाता है। इससे प्रसाद अधिक पवित्र और शुभ हो जाता है।
- औषधीय गुणः तुलसी के पत्तों में औषधीय गुण होते हैं, जो व्रत के दौरान शरीर को ऊर्जा और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं।
- भक्ति और श्रद्धाः तुलसी का उपयोग भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्त की अटूट श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है।
- धार्मिक अनुष्ठानः तुलसी के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान अधूरा माना जाता है, इसलिए जन्माष्टमी के व्रत में भी इसका महत्व अत्यधिक है।
- सकारात्मक ऊर्जाः तुलसी का पौधा सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और व्रत के दौरान मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
Conclusion:-Krishna Janmashtami Vrat Niyam 2024
कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) न केवल भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है बल्कि यह हमें उनकी लीलाओं और उपदेशों को स्मरण करने का अवसर भी प्रदान करता है। व्रत, पूजा, और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से भक्तगण अपने आराध्य के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के अत्यंत पावन पर्व से संबंधित यह बेहद खास लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया ऐसे ही और भी व्रत एवं त्योहार से संबंधित लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करिए।
FAQ’s
Q. कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत नियम क्या हैं?
Ans. कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में भक्त दिनभर उपवास रखते हैं, केवल फल, दूध और पानी का सेवन करते हैं। व्रत के दौरान अनाज और नमक का सेवन वर्जित होता है। भक्त रातभर जागरण करते हैं और भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करते हैं।
Q. कृष्ण जन्माष्टमी में तुलसी का महत्व क्या है?
Ans. कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की पूजा में तुलसी का विशेष महत्व है। तुलसी को भगवान विष्णु और कृष्ण की प्रिय माना जाता है। तुलसी के बिना भगवान कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है।
Q. कृष्ण जन्माष्टमी 2024 में कब मनाई जाएगी?
Ans. कृष्ण जन्माष्टमी 2024 में 26 अगस्त को मनाई जाएगी। यह दिन भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इसे देशभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
Q. कृष्ण जन्माष्टमी में भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा कैसे की जाती है?
Ans. भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा के लिए भक्त पहले स्नान कर शुद्ध होते हैं। फिर वे भगवान की मूर्तियों या चित्रों के सामने दीप, धूप, पुष्प, और नैवेद्य अर्पित करते हैं। मंत्रों और भजनों का जाप कर पूजा संपन्न की जाती है।
Q. जन्माष्टमी व्रत का संकल्प कैसे लिया जाता है?
Ans. जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लेने के लिए भक्त सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लेते हैं और पूरे दिन उपवास करने का निश्चय करते हैं।
Q. जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है?
Ans. जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन व्रत के समाप्ति पर होता है। भक्त मध्यरात्रि में भगवान कृष्ण के जन्म के समय पूजा करते हैं और उसके बाद फलाहार या विशेष प्रसाद ग्रहण कर व्रत समाप्त करते हैं।