Famous Temples Of Alwar: अलवर (Alwar), राजस्थान (Rajasthan) के सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक शहरों में से एक है। यह शहर न केवल अपने किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ के प्राचीन मंदिर भी अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं।
अलवर (Alwar) के मंदिर हजारों वर्षों से भक्तों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते आ रहे हैं। इन मंदिरों में से कुछ राजपूत शासकों द्वारा बनवाए गए थे, जबकि अन्य प्राचीन काल से ही मौजूद हैं। प्रत्येक मंदिर अपनी अद्वितीय शैली और कहानी के साथ, इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि कला और वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने भी हैं। अलवर (Alwar) के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं, जिनमें भगवान विष्णु (Lord Vishnu), शिव और हनुमान प्रमुख हैं। इन मंदिरों में आयोजित त्योहार और उत्सव पूरे शहर में एक आध्यात्मिक उत्साह का माहौल बनाते हैं। भक्तगण दूर-दूर से इन मंदिरों के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं। इन मंदिरों की यात्रा करना न केवल आपकी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध करेगा, बल्कि आपको इस क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति की एक झलक भी देगा।
चलिए, हम अलवर (Alwar) के कुछ सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों की एक यात्रा पर निकलते हैं, और इस प्राचीन नगर की अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का अनुभव करते हैं।
List of famous temples of Alwar
SN.O | मंदिरों के नाम | स्थान (अलवर) |
1 | नीलकंठ महादेव मंदिर | सरिस्का टाइगर रिजर्व, अलवर, दबकन, राजस्थान 301410 |
2 | नालदेश्वर तीर्थ | प्रतापगढ़-बुर्जा तिराहा रोड, मयूर विहार, मालवीय नगर, अलवर, रूंध कुशलगढ़, राजस्थान 301001 |
3 | नारायणी माता मंदिर | मालवीय नगर, अलवर, राजस्थान 301001 |
4 | त्रिपोलिया मंदिर | त्रिपोलिया मंदिर, निकट, बजाजा बाजार, मुंशी बाजार, अलवर, राजस्थान 301001 |
5 | तिजारा जैन मंदिर | तिजारा पहाड़ी, अलवर (राजस्थान) |
6 | भर्तृहरि मंदिर | अलवर – जयपुर रोड, इंडोक, राजस्थान 301001 |
7 | पांडुपोल हनुमान मंदिर | सरिस्का, क्रास्का, रूंध बलेटा, राजस्थान 301414 |
8 | मोती डूंगरी मंदिर | मोती डूंगरी, 61, मोती डूंगरी, अलवर, राजस्थान 301002 |
1. नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple Alwar)
नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) अलवर (Alwar), राजस्थान (Rajasthan) के राजगढ़ तहसील में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह भगवान शिव (Lord Vishnu) को समर्पित है, जिन्हें नीलकंठ (Neelkanth) के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का निर्माण 6वीं से 9वीं शताब्दी के बीच स्थानीय प्रतिहार सामंत महाराजाधिराज मथानदेव (Maharajadhiraj Mathandev) द्वारा किया गया था। यह सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास एक पहाड़ी पर अलग-थलग स्थित है, जहां केवल एक खड़ी पगडंडी से ही पहुंचा जा सकता है।
मंदिर में नीलम पत्थर से बना एक दुर्लभ 4.5 फीट ऊंचा शिवलिंग है, जो इसका मुख्य आकर्षण है। मंदिर परिसर में एक पवित्र प्राकृतिक झरना भी है जहां श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले आध्यात्मिक शुद्धि के लिए स्नान करते हैं। मंदिर की दीवारें खजुराहो शैली में बनी कामुक मूर्तियों से सजी हुई हैं। प्रवेश द्वार के ऊपर देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन का प्राचीन अंकन सुंदरता से चित्रित है।
इतिहास के अनुसार, मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी और तभी से यहां अखंड ज्योति जल रही है। हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण 1010 ईस्वी में राजा अजयपाल ने करवाया था। समय के साथ मंदिर का एक बड़ा हिस्सा जीर्ण-शीर्ण हो गया है जबकि कुछ हिस्से अभी भी बरकरार हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर के बारे में (About Neelkanth Mahadev Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | सरिस्का टाइगर रिजर्व, अलवर, दबकन, राजस्थान 301410 |
मंदिर में प्रवेश शुल्क | मंदिर में प्रवेश निशुल्क है |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 116 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 115 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 99.7 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/S6o72X11YQgtB9T58 |
2. नालदेश्वर तीर्थ (Naldeshwar Teerth)
नालदेश्वर तीर्थ (Naldeshwar Teerth) या महादेव मंदिर (Mahadev Mandir) अलवर (Alwar), राजस्थान (Rajasthan) में स्थित एक प्राचीन और दिव्य हिंदू मंदिर है। यह भव्य मंदिर अलवर (Alwar) शहर के दिल में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में मुख्य रूप से शिवलिंग की पूजा की जाती है।
नालदेश्वर मंदिर (Naldeshwar Temple) लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। इसका निर्माण राजपूताना और इस्लामिक शैलियों के मिश्रण में हुआ है, जिसमें जटिल नक्काशी और डिजाइन शामिल हैं। मंदिर के आसपास हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा करने लायक है। मंदिर के पास एक प्राकृतिक झरना भी बहता है जो इसके आध्यात्मिक महत्व में चार चाँद लगाता है।
नालदेश्वर मंदिर (Naldeshwar Temple) न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक स्मारक भी है। यह राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला प्रतिभा को दर्शाता है। मंदिर हर दिन श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है और त्योहारों व शुभ अवसरों पर विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। पहाड़ियों और हरियाली से घिरा यह मंदिर ध्यान और आत्मचिंतन के लिए एक शांत वातावरण प्रदान करता है।
नालदेश्वर तीर्थ के बारे में (About Naldeshwar Temple)
मंदिर का फोन नंबर | 18001033500 |
मंदिर का पता | प्रतापगढ़-बुर्जा तिराहा रोड, मयूर विहार, मालवीय नगर, अलवर, रूंध कुशलगढ़, राजस्थान 301001 |
मंदिर में प्रवेश शुल्क | मंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 114.7 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 119.3 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 102 किलोमीटर |
https://maps.app.goo.gl/Q8svkDYAqNryDHsr5 |
3. नारायणी माता मंदिर (Narayani Mata Temple, Alwar)
नारायणी माता मंदिर (Narayani Mata Temple) राजस्थान (Rajasthan) के अलवर (Alwar) जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर अलवर (Alwar) शहर से लगभग 80 किलोमीटर और अमनबाग (Amanbagh) से 14 किलोमीटर दूर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के किनारे पर स्थित है। इस मंदिर में नारायणी माता की पूजा की जाती है, जिन्हें भगवान शिव (Lord Shiva) की पहली पत्नी सती का अवतार माना जाता है।
नारायणी माता मंदिर (Narayani Mata Temple) का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है और इसे बेहद खूबसूरती से सजाया और डिजाइन किया गया है। मंदिर के पास एक छोटा सा गर्म पानी का झरना भी है जो इसे और भी लोकप्रिय बनाता है। यह मंदिर सैन समाज के लिए विशेष महत्व रखता है और उनकी आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। हर साल वसंत ऋतु में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नारायणी माता (Narayani Mata) भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार थीं। जब वह पहली बार अपने ससुराल जा रही थीं, तो रास्ते में एक सांप ने उनके पति को डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई। नारायणी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि या तो उनके पति को जीवित कर दें या फिर उन्हें भी अपने पति के साथ सती होने की अनुमति दें। उनकी तीव्र भक्ति और पति के प्रति समर्पण से प्रभावित होकर भगवान शिव ने दोनों को अपनी पवित्र अग्नि से भस्म कर दिया और नारायणी अपने पति के साथ सती हो गईं। उसी स्थान पर बाद में नारायणी माता (Narayani Mata) के मंदिर की स्थापना हुई।
नारायणी माता मंदिर के बारे में (About Narayani Mata Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | मालवीय नगर, अलवर, राजस्थान 301001 |
मंदिर में प्रवेश शुल्क | मंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 170.2 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 14.1 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 123.1 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/7qSyb7J39NbfePxLA |
4. त्रिपोलिया मंदिर (Tripolia Temple, Alwar)
अलवर (Alwar) शहर राजस्थान (Rajasthan) की अरावली पर्वतमाला के बीच बसा एक खूबसूरत स्थान है। इस शहर में कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं, जिनमें से त्रिपोलिया महादेव मंदिर (Tripolia Mahadev Temple) अपनी खास पहचान रखता है। यह मंदिर नर्मदेश्वर महादेव मंदिर का ही स्वरूप माना जाता है।
त्रिपोलिया मंदिर (Tripolia Temple) का निर्माण लगभग 300 वर्ष पूर्व हुआ था। मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि एक बार अलवर (Alwar) के राजा बकरी का शिकार करने निकले थे। शिकार करते समय उनका घोड़ा अचानक अनियंत्रित होकर दौड़ने लगा। घोड़े को काबू में करने के प्रयास में राजा का मुकुट नीचे गिर गया। बाद में जब राजा ने मुकुट को ढूंढा तो उन्हें वहाँ शिवलिंग दिखाई दिया। इस घटना के बाद राजा ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का नाम त्रिपोलिया इसलिए पड़ा क्योंकि मंदिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार या पोल बनाए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव (Lord Shiva) का स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है – सुबह सफेद, दोपहर को पीला और शाम को काला। इस लिंग को चंदन, केसर और फूलों से सजाया जाता है।
मंदिर के अंदर 300 साल से अखंड ज्योति जल रही है जो कभी बुझी नहीं है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस अखंड ज्योति की लौ से मनोकामना पूरी होती है।
त्रिपोलिया महादेव मंदिर के बारे में (About Tripolia Mahadev Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | त्रिपोलिया मंदिर, निकट, बजाजा बाजार, मुंशी बाजार, अलवर, राजस्थान 301001 |
मंदिर की फेसबुक प्रोफाइल | https://www.facebook.com/share/iPhiP6zM1r1ZKwXx/?mibextid=qi2Omg |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 178.7 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 177 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 126.3 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/HcK3UH8i8TsNwM377 |
5. तिजारा जैन मंदिर (Tijara Jain Temple, Alwar)
तिजारा जैन मंदिर अलवर (Tijara Jain Temple), राजस्थान (Rajasthan) के अलवर (Alwar) जिले में स्थित एक प्रसिद्ध दिगंबर जैन मंदिर है। यह मंदिर आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभु को समर्पित है और जैन धर्म (Jainism) के अनुयायियों (followers) के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है।
इस मंदिर की स्थापना सन् 1956 में हुई थी, जब 16 अगस्त 1956 को चंद्रप्रभ की एक मूर्ति प्राप्त हुई थी। सन् 1972 में, कमल मुद्रा में बैठी हुई चंद्रप्रभु की 8 इंच (20 सेमी) की एक और सफेद पत्थर की मूर्ति पाई गई। इस मूर्ति को भूमिगत से निकाला गया था, जिससे यह विश्वास और मजबूत हुआ कि यह स्थान कभी जैन मूर्तियों की पूजा का स्थल रहा होगा। मंदिर का मुख्य आकर्षण 15 इंच (38 सेमी) की सफेद संगमरमर की चंद्रप्रभु की मूर्ति है, जो कमल की मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर की स्थापना के बाद से ही यह स्थान एक महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हो गया है।
तिजारा जैन मंदिर (Tijara Jain Temple) न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का भी प्रतीक है। यह मंदिर अलवर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है।
तिजारा जैन मंदिर के बारे में(About Tijara Jain Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | तिजारा पहाड़ी, अलवर (राजस्थान) |
मंदिर में प्रवेश शुल्क | मंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 214.4 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 213.4 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 211.5 किलोमीटर |
Google Map |
6. भर्तृहरि मंदिर अलवर (Raja Bharthari Temple, Alwar)
राजस्थान (Rajasthan) के अलवर (Alwar) जिले में स्थित भरतरी मंदिर अपनी गहन धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है. यहाँ की कहानी पुराणों की कथाओं से जुड़ी हुई है, जहां भर्तृहरि मंदिर ने अपनी पत्नी के समर्पण को देखकर साधारण जीवन छोड़ दिया और गुरु गोरखनाथ (Guru Gorakhnath) के शिष्य बन गए. यहाँ उन्होंने शिव उपासना की और जल की प्रार्थना की, जिसे वह एक पत्थर की दरार से प्राप्त करे।
भर्तृहरि मंदिर (Bharthari Temple) को मिरकल्स के लिए जाना जाता है और यह नाथ या योगी संस्कृति से जुड़ा हुआ है. यहाँ अनेक संत, संयासी, नाथ, योगी और आध्यात्मिक अभ्यासकर्ता आते हैं. यहाँ भगवान शंकर की सभी मेला आयोजित की जाती हैं, लेकिन सबसे प्रमुख है भरतरी मेला या भरतरी अष्टमी, जो हिन्दी कैलेंडर के भाद्रपद मास में अमावस्या के बाद मनाया जाता है।
भर्तृहरि मंदिर (Bharthari Temple) सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है. अलवर और भरतरी मंदिर का दौरा करने का सर्वश्रेष्ठ समय नवम्बर से मार्च है, क्योंकि इन महीनों में तापमान मध्यम होता है।
भर्तृहरि मंदिर के बारे में (About Bharthari Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | अलवर – जयपुर रोड, इंडोक, राजस्थान 301001 |
मंदिर की फेसबुक प्रोफाइल | https://www.facebook.com/share/oubR1uLamTNUv4Rd/?mibextid=qi2Omg |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 108.4 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 113 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 96.1 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/zYkPy68URVQ1jHng7 |
7. पांडुपोल हनुमान मंदिर (Pandupol Hanuman Temple, Alwar)
पांडुपोल हनुमान मंदिर (Pandupol Hanuman Temple) अलवर (Alwar) जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के अंदर स्थित एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। यह मंदिर अलवर (Alwar) शहर से लगभग 55 किलोमीटर दूर है और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है।
कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान, भीम ने अपनी विशाल गदा से पहाड़ पर प्रहार किया जिससे एक विशाल छेद बन गया। इस छेद को पांडुपोल कहा जाता है और यह मंदिर इसी स्थान पर बना हुआ है। मान्यता है कि भीम द्वारा बनाए गए इस मार्ग से पांडव सुरक्षित निकल गए थे। मंदिर में हनुमान (Hanuman) जी की शयन मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर हनुमान जी ने भीम को दर्शन दिए थे और उनके अहंकार को चूर किया था। यह घटना भीम के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई और उन्हें विनम्रता का पाठ सिखाया। प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी को यहाँ एक विशाल मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस दिन मंदिर परिसर भक्तों से पटा रहता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
पांडुपोल हनुमान मंदिर(Pandupol Hanuman Temple) न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है जो महाभारत काल की यादों को संजोए हुए है।
पांडुपोल हनुमान मंदिर के बारे में (About Pandupol Hanuman Temple)
मंदिर का फोन नंबर | 08432519180 |
मंदिर का पता | सरिस्का, क्रास्का, रूंध बलेटा, राजस्थान 301414 |
मंदिर की फेसबुक प्रोफाइल | https://www.facebook.com/share/ZtXBbFnKTasqCQjP/?mibextid=qi2Omg |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 130 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 127.7 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 110.8 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/zu6zyYGbSLfYtxXH7 |
8. मोती डूंगरी मंदिर (Moti Dungri Temple)
मोती डूंगरी (Moti Dungri), अलवर (Alwar), राजस्थान (Rajasthan), इतिहास की एक विशाल चट्टान है, जिसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह हिल, अलवर शहर के दिल में स्थित है, और इसमें एक मंदिर है जिसे पूर्व महाराजा मंगल सिंह ने 1882 में बनवाया था।
यह परियोजना अलवर (Alwar) के संग्रहक और अध्यक्ष, डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी की देखरेख में की जा रही है। यह फोर्ट की सुंदरता को बढ़ाने और यात्रियों के लिए इसे और आकर्षक गंतव्य बनाने का लक्ष्य रखती है। परियोजना के पहले दो चरणों में फोर्ट (Fort) की धरोहर दीवारों की मरम्मत और रखरखाव का काम शामिल है। तीसरे चरण में एक आधुनिक कैफ़ेटेरिया का निर्माण हो रहा है, जिसमें यात्रियों के लिए विभिन्न सुविधाएं प्रदान की जाएंगी, जैसे कि हरे-भरे पेड़ों के साथ एक उद्यान, चलने के लिए फुटपाथ, और बैठने की व्यवस्था।
मोती डूंगरी (Moti Dungri) को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना अलवर (Alwar) और राजस्थान (Rajasthan) में पर्यटन को बढ़ावा देने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। परियोजना का उम्मीद है कि यह क्षेत्र में बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करेगी, जिसका स्थानीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
मोती डूंगरी मंदिर के बारे में (About Moti Dungri Temple)
मंदिर का फोन नंबर | कोई आधिकारिक फोन नंबर उपलब्ध नहीं है |
मंदिर का पता | मोती डूंगरी, 61, मोती डूंगरी, अलवर, राजस्थान 301002 |
मंदिर में प्रवेश शुल्क | मंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है |
जयपुर एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी | 179.1 किलोमीटर |
जयपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी | 178.1 किलोमीटर |
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी | 126.5 किलोमीटर |
Google Map | https://maps.app.goo.gl/aLTHiJJse5EcVSjUA |
Conclusion:
अलवर (Alwar) के मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि कला, संस्कृति और इतिहास के प्रतीक भी हैं। राजस्थान के अलवर में स्थित इन प्रमुख मंदिरों से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे अन्य सभी लेख को भी एक बार जरूर पढ़िए। इस लेख से उत्पन्न अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तो अपने प्रश्नों को कमेंट बॉक्स में जरूर पूछिए हम आपके सभी प्रश्नों का हर संभव जवाब देने का प्रयास करेंगे, ऐसे ही और भी लेखक को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in पर रोजाना विजिटकरें।
FAQ’s:
Q.अलवर किस संघ की राजधानी थी?
Ans.अलवर शहर ‘मत्स्य संघ’ की राजधानी था यह संघ राजस्थान के एकीकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा था और यहाँ कई राज्यों का समावेश हुआ था।
Q. मत्स्य संघ कब स्थापित हुआ था?
Ans.मत्स्य संघ की स्थापना 18 मार्च, 1948 को हुई थी, यह संघ राजस्थान के एकीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाला था।
Q. अलवर का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
Ans.अलवर भारतीय राज्य राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है. यह पहले विराट की प्राचीन राजधानी थी, जिसे राजा वीणु ने स्थापित किया था।
Q. अलवर शहर की स्थापना किसने की थी?
Ans.अलवर शहर की स्थापना राजा वीणु ने की थी, जिनके पुत्र राजा विराट ने बैरथ नगर की स्थापना की थी।
Q. अलवर किस युद्ध में मुग़लों के खिलाफ जीत हासिल करने वाले हेमु का गढ़ था?
Ans.16वीं शताब्दी में, हेमु, एक राजा जो माचाड़ से था, ने मुग़लों को हराया और दिल्ली का नियंत्रण हासिल किया. वह अलवर के निवासी थे।
Q. अलवर क्षेत्र के पूर्व में कौन से प्रांत थे?
Ans.अलवर क्षेत्र पहले पांच प्रांतों, रत्थ देश, वाल देश, राजवत देश, मेवात, और नरूखंड का हिस्सा था. ये प्रांत विभिन्न राजाओं और वंशों द्वारा शासित किए जाते थे।