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Kalashtami: कब और क्यों मनाई जाती है कालाष्टमी? क्या है इसके पीछे का इतिहास और महत्व?

Kalashtami Kab Hai
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Kalashtami: हिंदू धर्म में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख पर्वों में एक है – कालाष्टमी (kalashtami)। यह एक ऐसा त्योहार है जो भगवान शिव के भैरव स्वरूप की उपासना से जुड़ा हुआ है। कालाष्टमी (kalashtami) का त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसका विशेष महत्व है।

कालाष्टमी (kalashtami) के दिन भक्तगण भगवान भैरव (Bhagwan Bhairav) की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई साधना से मनुष्य को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस दिन व्रत रखना और पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कालाष्टमी का त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इससे जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं। इस लेख में हम कालाष्टमी के इतिहास, महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, यह भी जानेंगे कि इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

तो चलिए, कालाष्टमी के इस रहस्यमयी और आध्यात्मिक त्योहार की यात्रा पर निकलते हैं…!!

कालाष्टमीTable Of Content 

S.NO प्रश्न
1क्या है कालाष्टमी?
2कब है कालाष्टमी
3कालाष्टमी मुहूर्त
4कालाष्टमी का महत्व
5कालाष्टमी का इतिहास
6काल भैरव की कहानी 
7कालाष्टमी पूजा विधि
8काल भैरव मंत्र
9काल भैरव के बारे में रोचक तथ्यें
10 कालाष्टमी उत्सव

क्या है कालाष्टमी? (What is kalashtami?)

कालाष्टमी का पावन त्यौहार हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) के रौद्र स्वरूप काल भैरव (Kaal Bhairav) की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन काल भैरव की विधिवत पूजा और व्रत करने से भक्तों को नकारात्मक शक्तियों और भय से मुक्ति मिलती है, जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

कब है कालाष्टमी (When is kalashtami?)

जून 2024 में कालाष्टमी (kalashtami) 28 जून शुक्रवार को मनाई जाएगी। कालाष्टमी हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र स्वरूप भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत रखने से भैरव बाबा सदैव रक्षा करते हैं और जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

काल भैरव कौन है? (Who is Kaal Bhairav?)

काल भैरव (Kaal Bhairav), हिंदू धर्म के प्रमुख देवता शिव का एक रौद्र अवतार हैं। उनका नाम ‘ब्रह्मा’, ‘विष्णु’, और ‘महेश’ के तीन संस्कृत अक्षरों से उत्पन्न हुआ हैं, जिसे इन तीन हिंदी देवताओं की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वे भय को नष्ट करने वाले और संसार के संरक्षक के रूप में माने जाते हैं। काशी (वाराणसी) नगरी के कोतवाल के रूप में उन्हें जाना जाता है। उनकी पूजा से भय, दुःख, और रोगों का नाश होता है। काल भैरव की प्रमुख मंदिर, वाराणसी में स्थित है।

कालाष्टमी मुहूर्त (Kalashtami Muhurta)

कालाष्टमी (kalashtami), जो भगवान भैरव (Bhagwan Bhairav) की पूजा के लिए महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, 28 जून 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान भैरव की पूजा करते हैं, और उनके आशीर्वाद के लिए मंत्र जपते हैं। उपवास का शुभ मुहूर्त 28 जून, 2024 की रात 11:52 बजे से 29 जून, 2024 की सुबह 12:47 बजे तक है। इस समय के दौरान, चंद्रमा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में होगा, जो भगवान भैरव की पूजा के लिए शुभ माना जाता है।

कालाष्टमी का महत्व (Importance of Kalashtami)

कालाष्टमी (kalashtami) के त्यौहार का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  • भगवान काल भैरव की पूजा: कालाष्टमी (kalashtami) के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) के रौद्र रूप काल भैरव की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त कर भक्त नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा पाते हैं, अन्याय और बुराइयों से मुक्ति मिलती है, जीवन में सफलता और समृद्धि आती है। काल भैरव को रक्षा, विनाश और परिवर्तन का देवता माना जाता है।
  • पाप नाश और मोक्ष प्राप्ति: कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा और व्रत करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत फलदायी माने जाते हैं। भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भी इस दिन पूजा-अर्चना करते हैं।
  • ग्रह दोष निवारण और स्वास्थ्य लाभ: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से ग्रहों के दोषों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान की आराधना करने से रोगों से भी छुटकारा मिलता है। कालाष्टमी व्रत और स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है।

कालाष्टमी का इतिहास (History of Kalashtami)

कालाष्टमी (kalashtami) की व्रत कथा एक प्राचीन पौराणिक कथा है जो भगवान शिव के भैरव रूप को समर्पित है। कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच एक विवाद हुआ कि कौन श्रेष्ठ है। यह विवाद इतना बढ़ गया कि देवताओं को लगा कि प्रलय होने वाला है। चिंतित होकर, सभी देवता भगवान शिव के पास गए और समाधान खोजने लगे।

भगवान शिव (Lord Shiva) ने एक सभा बुलाई जिसमें सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत और अन्य उपस्थित थे। उन्होंने विष्णु और ब्रह्मा को भी आमंत्रित किया। सभा में एक निर्णय लिया गया जिसे भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया, परंतु ब्रह्मा संतुष्ट नहीं हुए उन्होंने महादेव का अपमान किया। इससे क्रोधित होकर शांतिप्रिय शिव ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शिव के इस भयंकर रौद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वे श्वान पर सवार थे और उनके हाथ में हथियार था। भैरव का रूप इतना भयानक था कि तीनों लोक भयभीत हो गए। भैरव ने ब्रह्मा का पाँचवा सिर काट दिया, जिससे ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ। इस घटना के बाद, ब्रह्मा और विष्णु के बीच का विवाद समाप्त हो गया। उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनका अभिमान एवं अहंकार नष्ट हो गया। तभी से हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा की जाती है।

कालाष्टमी (kalashtami) की यह व्रत कथा सुनने मात्र से पुण्य की प्राप्ति मानी जाती है। इस दिन भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ भैरव बाबा की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से नकारात्मकता का अंत होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

काल भैरव की कहानी (Story of Kal Bhairav)

काल भैरव (Kaal Bhairav) भगवान शिव (Lord Shiva) के सबसे उग्र रूप हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु से पूछा कि इस जगत में अविनाशी तत्व कौन है। दोनों ने स्वयं को सर्वोच्च बताया। फिर वेदों ने कहा कि अविनाशी तो केवल भगवान रुद्र (शिव) हैं। इस पर ब्रह्मा के पाँचवें मुख ने शिव के बारे में अपमानजनक शब्द कहे। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने भैरव को उत्पन्न किया और उन्हें ब्रह्मा पर शासन करने को कहा। भैरव नेब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काट दिया। इससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। इससे मुक्ति पाने के लिए शिव ने भैरव को काशी भेजा। वहाँ उन्हें पाप से मुक्ति मिली और शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।

कालाष्टमी पूजा विधि (Kalashtami Puja Method)

कालाष्टमी के त्यौहार पर काल भैरव की पूजा करने की विधि इस प्रकार है:

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करके सजाएं।
  • भगवान काल भैरव की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से अभिषेक करें।
  • दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं। फूल, फल, मिठाई, पान और सुपारी भगवान को भोग के रूप में अर्पित करें।
  • भगवान काल भैरव के सामने अपनी मनोकामना प्रकट करें। फिर आरती करके व्रत कथा का पाठ करें।
  • प्रसाद वितरित करें। अगले दिन व्रत का पारण करें। जरूरतमंदों को भोजन और दान करना शुभ माना जाता है।
  • काल अष्टमी के दिन मांसाहार, मदिरा और लहसुन-प्याज का सेवन वर्जित है। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • इस दिन भगवान काल भैरव का ध्यान करते हुए उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए, जैसे “ॐ कालभैरवाय नमः”।
  • रात्रि में काल भैरव की विशेष पूजा का महत्व है। तंत्र पूजा के लिए भी यह दिन शुभ माना जाता है।
  • कुछ लोग इस दिन कठोर उपवास रखते हैं। यदि संभव न हो तो केवल दूध और फलों का सेवन कर सकते हैं।
  • काले कुत्तों को भोजन कराना भी इस दिन शुभ माना जाता है।

काल भैरव  मंत्र (Narad Muni Mantra)

S.NO मंत्रलाभ
1“ओम भैरवाय नमः”इस मंत्र का जप करने से सामर्थ्य, सुरक्षा और आत्मिक विकास की प्राप्ति होती है। यह मान्यता है कि इसका नियमित अभ्यास समय प्रबंधन, आत्म-अनुशासन और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।
2“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री बटुक भैरव ॐ ह्रीं बम बटुकाय अपदुधरनय कुरु कुरु बटुकाय ॐ ह्रीं नमः शियाये ॐ ह्रां ह्रीं हुं ह्रीं हौं क्षं क्षेत्रपालाय काल भैरवाय नमः”इस मंत्र का जप व्यक्तिगत विकास और परिवर्तन को बढ़ावा देता है, और काल भैरव की दिव्य कृपा और ऊर्जा को खोलता है।
3“ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं”बटुक भैरव, भैरव के बाल रूप के रूप में माने जाते हैं, और उनकी उपासना शीघ्र परिणाम और कार्यों में सफलता प्रदान करती है[^7]। इस मंत्र का जप अकाल मृत्यु से सुरक्षा, भय से मुक्ति, और इच्छाओं की पूर्ति प्रदान करता है[^।

काल भैरव  के बारे में रोचक तथ्यें (Interesting Facts About Narad Muni)

  • काल भैरव (Kaal Bhairav) भगवान शिव के उग्र अवतार हैं और वे कुत्ते की सवारी करते हैं।
  • काल भैरव को रात्रि का देवता माना जाता है और उनकी पूजा रात में की जानी चाहिए।
  • काशी के कोतवाल के रूप में काल भैरव की पूजा की जाती है। काशी में उनके दर्शन किए बिना विश्वनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।
  • काल भैरव की पूजा से लंबी उम्र की कामना पूरी होती है और मृत्यु का भय दूर होता है।
  • मंगलवार और शनिवार को काल भैरव की अराधना करने से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।
  • काल भैरव की उपासना में चमेली का फूल चढ़ाया जाता है।
  • मंगल, शनि, राहु-केतु के बुरे प्रभावों से पीड़ित लोगों को काल भैरव की पूजा जरूर करनी चाहिए।
  • काल भैरव का रंग श्याम वर्ण है और उनकी चार भुजाएं हैं।
  • काल भैरव की पूजा से भक्तों को साहस और निडरता का आशीर्वाद मिलता है।
  • कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन कुत्ते को भोजन कराना चाहिए।

कालाष्टमी उत्सव (Kalashtami Event)

कालाष्टमी (kalashtami) प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो भगवान शिव (Lord Shiva) के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित है। इस दिन भक्त सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं और काल भैरव की विशेष पूजा करते हैं। कुछ भक्त जीवन में समृद्धि, सुख और सफलता पाने के लिए इस दिन उपवास भी करते हैं। मान्यता है कि काल भैरव की विधिवत पूजा करने से जीवन की समस्त बाधाएं, रोग-दोष और शोक दूर हो जाते हैं।

Conclusion:

कालाष्टमी (kalashtami) का पर्व भगवान काल भैरव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से न केवल मोक्ष की प्राप्ति होती है, बल्कि भक्तों को भगवान काल भैरव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। कालाष्टमी (kalashtami) के पर्व से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया इस लेख को अपने सभी प्रियजनों के साथ भी साझा करें, साथ ही हमारे अन्य सभी रोचक आर्टिकल्स को भी जरूर पढ़ें। और हमारी आधिकारिक वेबसाइट https://janbhakti.in पर रोजाना विजिट करें।

FAQ’s:

Q. कालाष्टमी पर काल भैरव की पूजा का क्या महत्व है? 

Ans. कालाष्टमी का दिन काल भैरव को समर्पित है। इस दिन उनकी विधिवत पूजा करने से साधक के पाप, कर्म और दुख दूर हो जाते हैं। इससे काल भैरव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। डरावने सपने आने पर भी काल भैरव की कृपा मिलती है।

Q. कालाष्टमी पर क्या करना चाहिए? 

Ans. कालाष्टमी पर काल भैरव को नींबू की माला चढ़ानी चाहिए। श्रद्धा से गरीबों को दान करना चाहिए। काल भैरव का गुणगान और विधिवत पूजा करनी चाहिए। उन्हें जलेबी और मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

Q. कालाष्टमी पर क्या नहीं करना चाहिए? 

Ans. कालाष्टमी पर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। किसी का नाश करने के लिए काल भैरव की पूजा नहीं करनी चाहिए। मांसाहार का सेवन, नुकीली चीजों का प्रयोग और पशु-पक्षियों को परेशान नहीं करना चाहिए।

Q. कालाष्टमी पर काल भैरव को प्रसन्न करने के क्या उपाय हैं? 

Ans. कालाष्टमी पर काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें सरसों का तेल अर्पित करें, कुत्तों को खाना खिलाएं, कम जाने वाले भैरव मंदिर में जाएं, और उन्हें मिठाई, चंदन और सिंदूर अर्पित करें।

Q. कालाष्टमी पर भगवान शिव की पूजा के क्या लाभ हैं? 

Ans. कालाष्टमी पर भगवान शिव की पूजा करने से असीम धन-संपदा और समृद्धि मिलती है। उन्हें सफेद वस्त्र और सफेद मिठाई अर्पित करने से लाभ बढ़ जाता है। बिल्वपत्र अर्पित करने से कोर्ट केस जीतने और शत्रुओं को शांत करने में मदद मिलती है।

Q. कालाष्टमी की पौराणिक कथा क्या है? 

Ans. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। ब्रह्मा ने शिव को अपशब्द कहे जिससे क्रोधित होकर शिव ने भैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा के 5 में से एक मुख काट दिया। इससे भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा और उन्हें दंड भुगतना पड़ा।