Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) – एक ऐसा व्रत जो हर विवाहित हिंदू महिला के जीवन का अभिन्न अंग है। यह व्रत न केवल सुहाग का प्रतीक है, बल्कि पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास का भी प्रतीक है। हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह व्रत, महिलाओं के लिए अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करने का एक अवसर है।
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है, जितना कि इस व्रत का महत्व। सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम कहानी हर किसी को रोमांचित करती है। सावित्री के अटूट प्रेम और समर्पण ने मृत्यु के देवता यमराज को भी प्रभावित किया और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। इस व्रत के दौरान, महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हैं। वे व्रत कथा सुनती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन का उपवास भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वट सावित्री व्रत का महत्व सिर्फ पति की लंबी उम्र तक ही सीमित नहीं है? यह व्रत दांपत्य जीवन में खुशियों और समृद्धि को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह व्रत महिलाओं को आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
तो आइए, इस लेख में हम वट सावित्री व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं – इसका महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा और इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें। यह लेख आपको इस व्रत के बारे में एक नई अंतर्दृष्टि देगा और आपके जीवन में इसके महत्व को और भी बढ़ा देगा।
वट सावित्री व्रत – Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | वट सावित्री व्रत कब है? |
2 | वट सावित्री क्या है? |
3 | वट सावित्री का महत्व? |
4 | वट सावित्री के फायदे |
5 | वट सावित्री व्रत नियम |
6 | वट सावित्री व्रत की कथा |
7 | वट सावित्री व्रत कथा का पीडीएफ |
8 | वट सावित्री पारण समय |
वट सावित्री व्रत कब है? (Vat Savitri Kab Hai)
वट सावित्री व्रत, जिसे हिन्दी पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है, यह व्रत पति की दीर्घायु की कामना के लिए मनाया जाता है।
वट सावित्री क्या है? (What is Vat Savitri)
वट सावित्री व्रत एक परंपरागत हिंदू व्रत है जिसे सुखी वैवाहिक जीवन और पतियों की दीर्घायु की कामना करने वाली विवाहित महिलाओं द्वारा पालन किया जाता है। व्रत के दौरान वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है और सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर मनाया जाता है। इस व्रत में वह महिलाएं जो व्रत रखती हैं, वे निर्जला व्रत (बिना पानी का उपवास) रखती हैं और व्रत का उल्लंघन सूर्यास्त के बाद करती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व? (Vat Savitri Significance
- पति की लंबी आयु और कल्याण के लिए प्रार्थना: वट सावित्री व्रत का मुख्य उद्देश्य विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और कल्याण के लिए प्रार्थना करना है। यह व्रत मृत्यु के देवता यमराज और त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से पति के जीवन और भलाई के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करने और उनके वैवाहिक जीवन में खुशी, समृद्धि और दीर्घायु लाने का विश्वास है।
- वट वृक्ष का महत्व: वट सावित्री व्रत में वट (बरगद) के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। हिंदू पौराणिक कथाओं में वट वृक्ष को पवित्र और शुभ माना जाता है और इसे कई देवताओं और दंत कथाओं से जोड़ा जाता है। वट वृक्ष जीवन की अनंत और अविनाशी प्रकृति का प्रतीक माना जाता है और इसे दिव्य शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है। वट सावित्री व्रत वट वृक्ष के नीचे किया जाता है, जिसे यमराज देवता का निवास माना जाता है और भक्तों की इच्छाओं और आशीर्वाद को पूरा करने का विश्वास है।
वट सावित्री व्रत के फायदे (Vat Savitri Benefits)
वट सावित्री व्रत, हिंदू धर्म में विशेष महत्वपूर्ण अवसर है, जिसे पत्नियों द्वारा अपने पतियों के दीर्घायु एवं स्वयं की दाम्पत्य सुख के लिए मनाया जाता है। यह व्रत, सावित्री और सत्यवान की कहानी पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने अपने पति की आत्मा को वापस पाने के लिए यमराज से सफलतापूर्वक वार्तालाप किया। वट (बरगद) वृक्ष की पूजा इस व्रत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो सभी देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है, व्रत का पालन करने से मान्यता है कि दाम्पत्य सुख, दीर्घायु और खुशहाली मिलती है। व्रत का पालन करने की प्रक्रिया घर की सफाई, स्नान, और पूर्ण समर्पण के साथ व्रत का पालन करने में शामिल है। व्रत का उद्देश्य पति और परिवार की सुख-समृद्धि, खुशहाली और दीर्घायु होती है, अंत में, वट सावित्री व्रत प्रेम, भक्ति, और अस्थिर विश्वास की शक्ति का आचरण है।
वट सावित्री व्रत नियम (Vat Savitri Fasting Rules)
वट सावित्री व्रत के नियम और महत्व:
- तिथि: वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 6 जून 2024, दिन गुरुवार को है।
- व्रत विधि: सुहागिन महिलाएं व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके निर्जला उपवास रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं।
- पौराणिक कथा: वट सावित्री व्रत की कथा सत्यवान और सावित्री से जुड़ी है। सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाए थे।
- पूजा सामग्री: वट वृक्ष की पूजा के लिए रोली, अक्षत, फल, मिठाई, सिंदूर, कुमकुम आदि की आवश्यकता होती है।
- महत्व: इस व्रत को करने से पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है। यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
- वट वृक्ष का महत्व: हिंदू धर्म में वट वृक्ष को पवित्र माना जाता है। इसमें त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास होता है। वट वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन देता है और वातावरण को शुद्ध करता है।
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह पति-पत्नी के अटूट बंधन और प्रेम का प्रतीक है। इस व्रत को श्रद्धा और निष्ठा से करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
वट सावित्री व्रत की कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
वट सावित्री व्रत कथा सत्यवान और सावित्री के अटूट प्रेम और पति-पत्नी के पवित्र बंधन की शक्ति का प्रतीक है। यह कथा हमें बताती है कि एक पत्नी का अपने पति के प्रति समर्पण और निष्ठा कितनी महान होती है।
कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और उनकी एक पुत्री हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उसने स्वयं सालव देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना पति चुना। हालांकि सत्यवान गरीब था और उसके माता-पिता अंधे थे, लेकिन सावित्री सत्यवान से ही प्रेम करती थी। देवर्षि नारद ने राजा अश्वपति को बताया कि आपकी पुत्री जिस व्यक्ति से विवाह करना चाहती है वह अल्पायु है, और विवाह के एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर लिया। सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। सत्यवान की मृत्यु के दिन सावित्री उसके साथ वन में गई। जब यमराज सत्यवान की आत्मा लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे तीन वर दिए। सावित्री ने अपने सास-ससुर को दृष्टि और खोया हुआ राज्य वापस दिलाने तथा सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा।
यमराज (Yamraj) ने सावित्री (Savitri) के सभी वर पूरे किए और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। सावित्री के साथ सत्यवान घर लौटा और उन्होंने खुशहाल जीवन बिताया। इस प्रकार सावित्री ने अपनी अटूट पति-भक्ति से यमराज को भी परास्त कर दिया। वट सावित्री व्रत हिंदू महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, वट वृक्ष की पूजा करती हैं और सावित्री व्रत कथा सुनती हैं। इस व्रत को करने से पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।
वट सावित्री व्रत कथा का पीडीएफ (Vat Savitri Vrat Katha PDF)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) से संबंधित कथा हम आपसे इस पीडीएफ (PDF) के जरिए साझा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करके वट सावित्री कथा कभी भी और कहीं भी पढ़ सकते हैं।
वट सावित्री पारण समय (Vat Savitri Parana Time)
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर मनाया जाता है। इस साल अमावस्या तिथि 5 जून की शाम 5:54 बजे शुरू होकर 6 जून 2024 की शाम 6:07 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 11:52 बजे से दोपहर 12:48 बजे तक है।
Conclusion:
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करता है और समाज में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। वट सावित्री व्रत से संबंधित यह बेहद विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो ऐसे ही और भी व्रत एवं प्रमुख हिंदू त्योहार से संबंधित विशेष लेख हमारी वेबसाइट पर आकर जरूर पढ़ें और हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in पर भी रोजाना विजिट करें।
FAQ’s:
Q. वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
Ans. वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 6 जून 2024 को पड़ रहा है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को भी यह व्रत रखा जाता है।
Q. वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है?
Ans. इस व्रत को रखने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की प्राप्ति होती मानी जाती है। यह व्रत दांपत्य जीवन में मधुरता बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
Q. वट सावित्री व्रत की कथा क्या है?
Ans. वट सावित्री व्रत सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाने के लिए यमराज से वरदान मांगा था, जिसे यमराज ने वट वृक्ष के नीचे प्रदान किया।
Q. वट सावित्री व्रत में क्या पूजा की जाती है?
Ans. इस व्रत में विवाहित महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर की भी पूजा की जाती है।
Q. वट सावित्री व्रत के दिन क्या किया जाता है?
Ans. वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला उपवास रखती हैं। दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को पारण किया जाता है। इस दिन बरगद वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाया जाता है।
Q. वट सावित्री व्रत की पूजा में कौन सी सामग्री लगती है?
Ans. इस व्रत की पूजा में सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, लाल कलावा, बरगद के फल-पत्ते, धूप, दीपक, फल, फूल, बताशे, रोली, सुपारी, पान, नारियल, लाल कपड़ा, सिंदूर आदि का इस्तेमाल होता है।