Nirjala Ekadashi: हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है निर्जला एकादशी, जिसे ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसका पालन करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। यह व्रत करने से भक्त भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के मन को शांति मिलती है और वह नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाता है। निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है।
यह व्रत करने से भक्त भगवान के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रदर्शित करता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है और अपने कर्मों को सुधार सकता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि इससे शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। इस व्रत को करने से शरीर की गर्मी कम होती है और पाचन तंत्र मजबूत होता है। साथ ही, इस व्रत को करने से मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है।
तो आइए, इस लेख में हम निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के बारे में विस्तार से जानते हैं – इसका महत्व, इसे करने का तरीका, और इससे होने वाले लाभ। आपको यह जानकारी जरूर पसंद आएगी और आप भी इस पवित्र व्रत को अवश्य करना चाहेंगे…
निर्जला एकादशी– Table Of Content
निर्जला एकादशी कब है? (Nirjala Ekadashi Kab Hai)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) 2024 में 18 जून, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 08:53 से दोपहर 02:07 बजे तक रहेगा। व्रत का पारण 19 जून को सुबह 07:28 बजे से पहले करना चाहिए।
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त | सुबह 08:53 से दोपहर 02:07 बजे तक रहेगा |
व्रत का पारण | 19 जून को सुबह 07:28 बजे |
निर्जला एकादशी क्या है? (What is Nirjala Ekadashi)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा के लिए समर्पित है। इसे ‘ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है और आमतौर पर गंगा दशहरा के बाद मनाया जाता है। ‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना पानी के’, इसलिए इस एकादशी को बिना पानी या भोजन के मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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निर्जला एकादशी का महत्व (Nirjala Ekadashi Significance)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसका विशेष महत्व माना जाता है। इसके मनाने का महत्व निम्नलिखित तीन बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- आध्यात्मिक लाभ: निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का फल इस एक एकादशी व्रत से मिल जाता है। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के बाद विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
- भौतिक लाभ: निर्जला एकादशी व्रत करने से भौतिक जीवन में भी सुख-समृद्धि मिलती है। इससे धन-संपत्ति, यश, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। जीवन में सकारात्मकता और धार्मिकता आती है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: निर्जला एकादशी का व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक माना जाता है। इस दिन भोजन और जल का त्याग करके शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त किया जाता है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। साथ ही मन को एकाग्र करके ईश्वर की भक्ति में लगाया जाता है जिससे मानसिक शांति मिलती है।
निर्जला एकादशी के फायदे (Nirjala Ekadashi Benefits)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र व्रतों में से एक है। इस व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। निर्जला का अर्थ है “बिना पानी के”, और इस व्रत में भक्त भोजन और पानी दोनों का त्याग करते हैं। श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करने से समृद्धि, मोक्ष, सुख, दीर्घायु, यश और सफलता मिलती है। मान्यता है कि जो इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति से करते हैं, उनकी मृत्यु के बाद यमराज के दूतों के बजाय भगवान विष्णु के दूत उन्हें वैकुंठ ले जाते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत करने से शरीर की विषाक्त पदार्थों से मुक्ति मिलती है, पाचन में सुधार होता है और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।
निर्जला एकादशी व्रत नियम (Nirjala Ekadashi Fasting Rules
निर्जला एकादशी व्रत करने के मुख्य नियम इस प्रकार हैं:
- निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा-अर्चना करते हैं।
- इस व्रत में भक्त पूरे दिन निर्जला यानि बिना पानी के उपवास रखते हैं। न तो कोई खाना खाते हैं और न ही एक बूंद पानी पीते हैं। केवल श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान का ध्यान करते हैं।
- भक्तों को दिन में सोना नहीं चाहिए और भगवान के भजन-कीर्तन में लीन रहना चाहिए। रात्रि जागरण करना और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की संध्या से होती है। इस दिन संध्यावंदन अनुष्ठान किया जाता है। भक्त पीले वस्त्र धारण करते हैं और भगवान विष्णु की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर पीले फूल, चावल, फल आदि अर्पित करते हैं।
- पूजा के दौरान भक्त “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” , “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” मंत्र का जाप करते हैं। एकादशी व्रत कथा का पाठ किया जाता है और अंत में भगवान की आरती की जाती है।
- इस दिन बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना और प्याज-लहसुन का सेवन वर्जित माना जाता है। भक्तों को काले रंग के वस्त्र पहनने से भी बचना चाहिए।
- यदि किसी कारणवश पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार या एक समय का भोजन किया जा सकता है। हालांकि चावल का सेवन सख्त मना है। बीमार व्यक्ति भी आंशिक उपवास कर सकते हैं।
- व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंद लोगों को भोजन और दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। श्रद्धा और निष्ठा के साथ निर्जला एकादशी व्रत करने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद और अनंत सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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निर्जला एकादशी व्रत कथा क्या है? (What is Nirjala Ekadashi vrat katha)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होती है और इसे बिना जल ग्रहण किए व्रत रखने के लिए जाना जाता है। इस एकादशी के व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के व्रतों का पुण्य फल प्राप्त होता है। इसके पीछे की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
कथा के अनुसार, पांडवों में से भीमसेन (Bhimsen) को भोजन का बहुत शौक था और वह कभी भूखे नहीं रह सकते थे। उनकी माता कुंती, भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत रखते थे, परंतु भीमसेन को भूख के कारण यह संभव नहीं था। उन्होंने इस बारे में ऋषि वेदव्यास से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे वे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर सकें। ऋषि वेदव्यास ने भीमसेन को बताया कि यदि वे ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निराहार और निर्जल रहकर व्रत करें, तो उन्हें सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त हो सकता है। इस व्रत को निर्जला एकादशी कहा जाता है क्योंकि इसमें जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। भीमसेन ने इस व्रत को करने का निश्चय किया। उन्होंने व्रत के दिन जल, भोजन, और फल तक नहीं ग्रहण किया। व्रत की रात को भीमसेन को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा, परंतु उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत पूरा किया। अगले दिन, द्वादशी के दिन, उन्होंने व्रत का पारण किया। भीमसेन के इस कठिन तप और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्रदान किया।
इस व्रत की धार्मिक महत्ता को देखते हुए, इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति हो सके।
निर्जला एकादशी व्रत कथा पीडीएफ (Nirjala Ekadashi vrat katha PDF)
निर्जला एकादशी की व्रत कथा महाभारत कल के मुख्य पात्र भीम और ऋषि वेद व्यास से जुड़ी हुई है। इस व्रत कथा को हम आपसे पीडीएफ के जरिए सजा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड करके निर्जला एकादशी की व्रत कथा सरलता पूर्वक पढ़ सकते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत कथा PDF Download | View Kathaनिर्जला एकादशी पारण समय (Nirjala Ekadashi Parana Time)
निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले सभी व्यक्ति 18 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखेंगे, और इस व्रत का पालन वे 19 जून को पारण करेंगे। व्रत का पारण समय 19 जून को सुबह 05:24 बजे से 07:28 बजे तक है। इस समय के दौरान व्रत तोड़कर पारण करना चाहिए। 07:28 बजे के बाद द्वादशी समाप्त हो जाएगी, इसलिए पारण इसी समयावधि में करना जरूरी है। व्रतधारियों को इस समयावधि का ध्यान रखना चाहिए ताकि व्रत सही तरीके से पूरा हो सके।
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Conclusion
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत एक आत्मानुशासन और समर्पण का प्रतीक है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए भी लाभकारी माना जाता है। निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के पावन त्योहार से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया इस लेख को अपने सभी मित्र गणों के साथ-साथ जरूर साझा करें और ऐसे ही रोचक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. निर्जला एकादशी का व्रत कब किया जाता है?
Ans. निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। यह व्रत हिंदू कैलेंडर में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। निर्जला एकादशी 2024 में 18 जून को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है।
Q. निर्जला एकादशी को निर्जला क्यों कहा जाता है?
Ans. निर्जला का अर्थ है बिना जल के। इस व्रत में पूरे दिन भर न तो कुछ खाया जाता है और न ही पानी पिया जाता है। इसलिए इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से सभी एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है।
Q. निर्जला एकादशी का महत्व क्या है?
Ans. निर्जला एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर पुण्य मिलता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
Q. निर्जला एकादशी व्रत की कथा क्या है?
Ans. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीमसेन को भूख के कारण एकादशी का व्रत करने में परेशानी होती थी। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें सलाह दी कि वे केवल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला व्रत करें जिससे उन्हें पूरे वर्ष की एकादशी व्रतों का फल मिल जाएगा।
Q. निर्जला एकादशी के दिन क्या किया जाता है?
Ans. निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन तुलसी के पत्ते, फूल और धूप से पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप किया जाता है और हरे कृष्ण महामंत्र का 108 बार जाप करने की सलाह दी जाती है।
Q. निर्जला एकादशी व्रत के क्या नियम हैं?
Ans. निर्जला एकादशी के दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है। इस दौरान न तो कुछ खाया जाता है और न ही पानी पिया जाता है। इस दिन किसी भी तरह का मनोरंजन या विलासिता का सेवन नहीं करना चाहिए। ध्यान, प्रार्थना और पवित्र ग्रंथों के पाठ पर ध्यान देना चाहिए। दान-पुण्य करना भी शुभ माना जाता है।