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Meera Bai Temple Merta: राजस्थान के मेड़ता शहर में स्थित है मीराबाई मंदिर, जानिए इस मंदिर के इतिहास के बारे में ।

Meera Bai Temple
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Meera Bai Temple: मीराबाई के जीवन और उनकी कृष्ण भक्ति की गाथा आज भी लोगों को प्रेरित करती है। मेड़ता में स्थित मीरा मंदिर, मीराबाई की स्मृति में बनाया गया एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो उनके जीवन और विरासत को दर्शाता है। मीरा मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह मीराबाई के जीवन और उनके समय की एक झलक भी प्रस्तुत करता है। मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई नक्काशी और मूर्तियां मीराबाई (Meera Bai) के जीवन की कहानियों को दर्शाती हैं। यहां आप मीराबाई के बचपन से लेकर उनके जीवन के अंतिम क्षणों तक की यात्रा का अनुभव कर सकते हैं। मंदिर परिसर में मौजूद मीरा स्मारक, जो कभी मीराबाई के परिवार का किला हुआ करता था, अब एक संग्रहालय के रूप में उनके जीवन और कार्यों को समर्पित है। मेड़ता की यात्रा न केवल मीराबाई के भक्तों के लिए, बल्कि इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले लोगों के लिए भी एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकती है। यह लेख आपको मीरा मंदिर की यात्रा पर ले जाएगा, जहां आप मीराबाई के जीवन और उनकी भक्ति के बारे में गहराई से जान पाएंगे। साथ ही, आप मेड़ता के इतिहास और इस छोटे से नगर के महत्व को भी समझ पाएंगे। 

तो चलिए, इस आध्यात्मिक और ऐतिहासिक यात्रा पर निकलते हैं और मीराबाई की अद्भुत विरासत का अनुभव करते हैं…

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मीरा बाई मंदिर के बारे में (About Merta Meera Bai Temple)

मंदिर का मोबाइल नंबर01412371141
मंदिर का पताचारभुजा चोक मीरा मंदिर, मेड़ता, राजस्थान 341510
मंदिर की आधिकारिक वेबसाइटमंदिर की आधिकारिक वेबसाइट उपलब्ध नहीं है
मंदिर में प्रवेश शुल्कमंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है
बस स्टैंड से मंदिर की दूरी700 मीटर
निकटतम मेड़तारोड रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी15.3 किलोमीटर 
किशनगढ़ एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी95.1 किलोमीटर 

मीरा बाई मंदिर कहाँ है (Where is Meera Bai Temple)

मीरा बाई (Meera Bai) का मुख्य मंदिर मेड़ता, राजस्थान (Rajasthan) में स्थित है। यह मंदिर उनके विश्वास और अद्वितीय भक्ति की प्रतीक है। पर्यटक और भक्त इस मंदिर की सुंदरता और शांतिपूर्ण वातावरण को देखने और अनुभव करने के लिए दुनिया भर से आते हैं। मंदिर परिसर में मीरा बाई की मूर्ति है, जिसे भक्त पूजते हैं, और एक संग्रहालय भी है जो उनके जीवन और कार्यों को प्रदर्शित करता है। मंदिर नियमित रूप से भक्ति कार्यक्रमों और सांस्कृतिक आयोजनों की मेजबानी करता है, जो मीरा बाई की धरोहर और शिक्षाओं को बढ़ावा देते हैं।

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मीरा बाई मंदिर का इतिहास (History of Meera Bai Temple)

मीरा बाई (Meera Bai), भक्ति संत, कवियित्री, और भगवान श्री कृष्ण की अत्यंत भक्त, इनके नाम से जुड़े अनेक मंदिरों में से एक मंदिर मेड़ता, राजस्थान में स्थित है। मीराबाई का जन्म 1498 ई. में यहीं के राठौड़ राव दूदा के पुत्र रतन सिंह के यहां कुड़की गांव, मेड़ता में हुआ था। इनके जीवन के अंतिम समय डाकोर (अहमदाबाद) के निकट रणछोड़ जी मंदिर में बिताए।

मीरा बाई (Meera Bai) के जीवन की कहानी उनकी कविताओं में छुपी है, जो आज भी भक्तों द्वारा गुंजाई जाती है। यह एक कहानी है प्रेम की, भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपने अद्वितीय प्रेम की, जिसने उन्हें समाज और परिवार की बाधाओं से परे उठा लिया. उनकी कविताएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं, और उनकी भक्ति की गहराई को दर्शाती हैं। मीरा बाई मंदिर, मेड़ता उनके जन्म स्थल के नज़दीक स्थित है, और यह उनकी स्मृति को समर्पित है। यह मंदिर उनकी भक्ति और त्याग की कहानी को सुनाता है, और यात्रियों और भक्तों को उनके जीवन की यात्रा का एक झलक देता है. मंदिर में मीरा बाई की मूर्ति के साथ-साथ उनके प्रिय भगवान श्री कृष्ण की भी मूर्ति स्थापित है। 

मीरा बाई मंदिर, मेड़ता भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में भी जाना जाता है। यहां आने वाले यात्री अपने आप को एक अद्वितीय शांति और सुखद अनुभव में पाते हैं, जो उन्हें अपने दैनिक जीवन से दूर ले जाता है. यह वही शांति है जिसे मीरा बाई ने अपनी कविताओं में व्यक्त किया, और जिसका अनुभव वे अपने जीवन में करती थीं।

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मीरा बाई मंदिर की वास्तुकला (Architecture of Meera Bai Temple)

मीरा बाई मंदिर (Meera Bai Temple), मेड़ता, एक अद्वितीय वास्तुकला की कड़ी है जो राजस्थानी परंपरा को दर्शाती है। इसकी वास्तुकला में सूक्ष्म नक्काशी, जीवंत रंग और एक विशाल लेआउट शामिल है, जो भक्तों को धार्मिक अनुष्ठानों और भजन गाने में सहभागी होने की अनुमति देता है।

इस मंदिर में मीरा बाई की संगमरमर की एक आदमकद  प्रतिमा स्थापित है और ठीक उसी के सामने भगवान की आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। यह नक्काशी और मूर्तियां मंदिर की वास्तुकला की विशेषता को और अधिक प्रगट करती हैं।

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मीरा बाई मंदिर का महत्व (Importance of Meera Bai Temple)

मीरा बाई मंदिर (Meera Bai Temple) मेड़ता का महत्व अपार है। यह मंदिर भक्ति संत और कवयित्री मीरा बाई की जन्मभूमि में स्थित है। मीरा बाई भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। 

उन्होंने अपने जीवन को भगवान कृष्ण की उपासना में समर्पित कर दिया और सामाजिक मानदंडों की परवाह किए बिना अपने आध्यात्मिक मार्ग पर चलती रहीं। मेड़ता का चारभुजानाथ मंदिर, जहां मीरा बाई ने अपना बचपन बिताया और भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति विकसित की, एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थल है जो मीरा बाई की शिक्षाओं से जुड़ना और भक्ति के वातावरण में डूबना चाहते हैं। मंदिर में उनके भजन गाए जाते हैं जो उनकी अटल आस्था और भगवान कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम की याद दिलाते हैं। मीरा बाई के अंतिम समय मेड़ता के पास डाकोर (अहमदाबाद) के रणछोड़ जी मंदिर में बिताए, लेकिन उनका मुख्य मंदिर मेड़ता (नागौर) में ही स्थित है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान कृष्ण के साथ मीरा बाई की मूर्ति भी स्थापित है। यह मंदिर मीरा बाई की विरासत और भारत के आध्यात्मिक परिदृश्य पर उनके स्थायी प्रभाव का प्रतीक है।

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मीरा बाई मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach Meera Bai Temple)

वायु मार्ग से (By Air):

मेड़ता के मीराबाई मंदिर (Meera Bai Temple) में दर्शन करने का अगर आपका मन है तो आप सफलतापूर्वक यात्रा कर सकते हैं आपको बताने की मीराबाई मंदिर से महल 95 किलोमीटर दूर किशनगढ़ एयरपोर्ट है इस एयरपोर्ट पर उतरकर आप बस से टैक्सी से मंदिर के लिए रवाना हो सकते हैं।

रेल मार्ग द्वारा (By Railway): 

अगर रेल मार्ग की बात करें तो मंदिर से केवल 15 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन है जिसका नाम निकटतम मेड़तारोड रेलवे स्टेशन है और इस रेलवे मार्ग की मदद से आप मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वारा (By Road): 

मीराबाई मंदिर (Meera Bai Temple) से केवल 700 मीटर दूर एक बस स्टॉप है अगर आप चाहे तो बस स्टॉप से ऑटो या टैक्सी लेकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं या फिर अगर आप पैदल चलने में समर्थ हैं पैदल भी चल कर बस स्टॉप से मंदिर तक पहुंच सकते हैं क्योंकि बस स्टॉप से मंदिर की दूरी केवल 3 मिनट की है।

मीरा बाई मंदिर में प्रवेश शुल्क (Entry Fee At Meera Bai Temple)

मीरा बाई मंदिर (Meera Bai Temple) में दर्शन के लिए अगर आप जाते हैं तो आपको किसी भी तरह का प्रवेश शुल्क नहीं देना होगा, यदि आप दान इत्यादि करना चाहते हैं तो आप अपनी इच्छा अनुसार दान-दक्षिणा दे सकते हैं। 

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मीरा बाई मंदिर में दर्शन का समय क्या है (What Are The Darshan Timings At Meera Bai Temple)

मीराबाई मंदिर (Meera Bai Temple) में दर्शन का समय सुबह 4:30 से शुरू होगा और रात के 9:00 बजे तक यह दर्शन प्रक्रिया चलती रहेगी।

विशेष आयोजन (Special Event)

हर साल मंदिर में मीरा बाई के सम्मान में एक विशेष समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें मीरा द्वारा भगवान कृष्ण के सामने नृत्य और गायन करने की परंपरा का पालन किया जाता है। यह आयोजन मीरा की भक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कलाकृतियों का अवलोकन करते हैं।

Conclusion:-

मेड़ता मीरा बाई (Meera Bai Temple) के जीवन और कार्यों में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक अवश्य देखने वाला शहर है। मीरा बाई मंदिर एक सच्चा रत्न है, और इस महान संत और कवयित्री को सच्ची श्रद्धांजलि है। मीरा बाई मंदिर से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे इस लेख को अपने सभी प्रिय जनों के साथ अवश्य साझा करें साथ ही हमारे अन्य सभी आर्टिकल्स को भी एक बार जरूर पढ़े। इस लेख से उत्पन्न अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तो अपने प्रश्नों को कमेंट बॉक्स में जरूर पूछिए हम आपके सभी प्रश्नों के जवाब देने का हर संभव प्रयास करेंगे, ऐसे ही और फिर रोचक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें। 

FAQ’S 

Q. मीराबाई का निधन कब और कहाँ हुआ? 

Ans. कहा जाता है कि मीराबाई द्वारका में भजन गाते-गाते कृष्ण की मूर्ति में समा गईं। यह घटना सन 1546 की मानी जाती है। मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा प्रताड़ित होने के कारण उन्होंने मेवाड़ छोड़कर द्वारिका में कृष्ण भक्ति में जीवन व्यतीत किया।

Q. मीराबाई की कौन-कौन सी रचनाएँ प्रसिद्ध हैं? 

Ans. मीराबाई ने स्वयं कुछ नहीं लिखा, लेकिन उनके द्वारा कृष्ण-प्रेम में गाए गए भजन बाद में पदों में संकलित हो गए। उनकी प्रमुख रचनाओं में राग सोरठा, नरसीजी रो मायारा, मीरा की मल्हार, मीरा पदावली, राग गोविंद आदि शामिल हैं।

Q. मीराबाई का निधन कब और कहाँ हुआ?

Ans. कहा जाता है कि मीराबाई द्वारका में भजन गाते-गाते कृष्ण की मूर्ति में समा गईं। यह घटना सन 1546 की मानी जाती है। मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा प्रताड़ित होने के कारण उन्होंने मेवाड़ छोड़कर द्वारिका में कृष्ण भक्ति में जीवन व्यतीत किया।

Q. मीराबाई की कृष्ण भक्ति कैसे शुरू हुई? 

Ans. बचपन में मीराबाई अक्सर अपने पिता को मंदिर में विष्णु की मूर्ति को दूध अर्पित करते देखती थीं। यह मानते हुए कि देवता दूध पी रहे हैं, वह गहराई से प्रभावित हुईं और अपने पिता द्वारा यह जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद कृष्ण की पति के रूप में पूजा करने का निर्णय लिया।

Q. मीराबाई के जीवन और शिक्षाओं को मेड़ता में कैसे संरक्षित किया गया है? 

Ans. मीराबाई का जीवन और विरासत मेड़ता में मीराबाई मंदिर और मीराबाई संग्रहालय के माध्यम से संरक्षित है। मंदिर उनकी कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति का प्रमाण है, जबकि संग्रहालय विभिन्न शिलालेखों, कलाकृतियों और चित्रों के माध्यम से उनके जीवन और शिक्षाओं का विस्तृत विवरण प्रदान करता है।

Q. मीराबाई संग्रहालय में क्या-क्या देखने को मिलता है? 

Ans. मीराबाई संग्रहालय में आगंतुकों को मीराबाई की एक आदमकद प्रतिमा, उनकी कविताओं का विशाल संग्रह, और उनके जीवन से संबंधित पुस्तकों वाला एक पुस्तकालय देखने को मिलता है। संग्रहालय की दीवारों पर मिट्टी के टाइल्स पर मीराबाई की जीवनी का चित्रण किया गया है।