देवशयनी एकादशी व्रत पूजा विधि (Devshayani Ekadashi Vrat Pooja vidhi): देवशयनी एकादशी – एक ऐसा पावन दिन जब स्वयं भगवान विष्णु (Lord Vishnu) चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं। यह दिन हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ माह में आता है और इस वर्ष 2024 में यह 17 जुलाई, दिन बुधवार को पड़ेगा। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी, शयनी और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
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इस दिन से चातुर्मास का प्रारंभ होता है, जो कि धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों से भरा होता है। देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) का व्रत करने से न सिर्फ आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि आप भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा भी प्राप्त करते हैं। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से व्रती को सौभाग्य, संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस व्रत को कैसे किया जाता है? क्या इसके कोई नियम हैं? व्रत का पारण कब और कैसे करना चाहिए?
यदि आप भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो हमारा यह लेख आपके लिए ही है। इस लेख में हम आपको देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi Vrat Pooja Vidhi) व्रत से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें विस्तार से बताएंगे। साथ ही व्रत के नियम, पूजा विधि और पारण के बारे में भी जानकारी देंगे। तो चलिए, जानते हैं देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के इस महापर्व के बारे में सबकुछ…
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Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | देवशयनी एकादशी व्रत |
2 | देवशयनी एकादशी व्रत पारण |
3 | देवशयनी एकादशी व्रत नियम |
देवशयनी एकादशी व्रत (Devshayani Ekadashi Vrat)
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देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) चार महीने के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा में जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और विष्णु भगवान की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता और रात को जागरण किया जाता है। यह व्रत आत्मसंयम, भक्ति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
देवशयनी एकादशी व्रत पारण (Devshayani Ekadashi Fasting)
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देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) का पावन त्योहार 17 जुलाई 2024 को मनाया जाएगा हालांकि देवशयनी एकादशी का प्रारंभ 16 जुलाई को रात में 8:33 से शुरू होगा और 17 जुलाई को रात 9:00 तक मनाया जाएगा इसलिए उदय तिथि के हिसाब से देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी और इस व्रत का पारण 18 जुलाई को सुबह 5:33 से 8:20 के बीच में किया जाएगा।
तिथि प्रारंभ | 16 जुलाई को रात में 8:33 से शुरू |
तिथि समापन | 17 जुलाई को रात 9:00 तक |
देवशयनी एकादशी व्रत नियम (Devshayani Ekadashi fasting rules)
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देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) व्रत के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं:
- निर्जला व्रत: देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के दिन भक्तगण पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं अर्थात् बिना पानी पिए व्रत का पालन करते हैं। कुछ लोग फलाहार या सिर्फ दूध पीकर भी व्रत रखते हैं। व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
- जागरण: इस दिन रात्रि में जागरण करना शुभ माना जाता है। भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हुए रात्रि जागरण करते हैं और भगवान के भजन-कीर्तन में लीन रहते हैं।
- पवित्र स्नान: देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के दिन प्रातः स्नान करना अति आवश्यक होता है। भक्त गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यदि संभव न हो तो घर पर ही स्नान करके पवित्र हो जाते हैं।
- दान-पुण्य: इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देना पुण्य का कार्य माना जाता है। अन्न, वस्त्र, पुस्तक आदि का दान करना शुभ होता है। इससे व्रत का फल बढ़ जाता है।
- विष्णु पूजन: देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का विशेष पूजन किया जाता है। भक्तगण उनकी मूर्ति या चित्र को स्थापित करके उनकी आराधना करते हैं। तुलसी के पत्ते, फूल, चंदन आदि से पूजन किया जाता है।
- कथा-पुराण श्रवण: इस दिन विष्णु पुराण, भागवत पुराण आदि ग्रंथों का पाठ सुनना और पढ़ना शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़ी कथाएं सुनना व सुनाना पुण्य प्रदान करता है।
- सात्विक आहार: देवशयनी एकादशी के अगले दिन व्रत का पारण करते समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसमें हरी सब्जियां, फल, मीठा, घी आदि का सेवन किया जाता है। मांस-मदिरा का सेवन वर्जित होता है।
भगवान विष्णु को सुलाने का मंत्र (Bhagwan Vishnu ko Sulane ka Mantra)
धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भक्तगण भगवान विष्णु को शयन कराते हैं। भगवान को शयन कराने के लिए एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए, इस दिन भगवान को शयन कराते समय “सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जनत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचम्” इस मंत्र का जाप करके भगवान को विधिपूर्वक सुलाया जाता है।
Conclusion:- Devshayani Ekadashi Vrat Pooja Vidhi
देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) का त्योहार हिंदू धर्म में अस्थिर आस्था, भक्ति और दान का प्रतीक है। यह विश्वास की एक अद्वितीय प्रतिष्ठापना है कि एकादशी के व्रत का पालन करने से और विष्णु की उपासना से सुख, समृद्धि और खुशहाली मिलती है। देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया अन्य सभी एकादशी से संबंधित लेख भी हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, आप चाहे तो उन्हें पढ़ सकते हैं। ऐसे ही और भी ज्ञानवर्धक और धार्मिक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. देवशयनी एकादशी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?
Ans. देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) हिन्दुओं का महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। यह त्योहार भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
Q. देवशयनी एकादशी पर उपवास करने का महत्व क्या है?
Ans. देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) पर उपवास करने से मान्यता है कि व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष मिलता है।
Q. योग निद्रा क्या है?
Ans. योग निद्रा वह गहरी योगिक नींद है जिसमें भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से शुरू होकर चार महीने तक रहते हैं।
Q. क्या चातुर्मास्य के दौरान कोई शुभ कार्य किया जा सकता है?
Ans. नहीं, चातुर्मास्य के दौरान सभी शुभ कार्यों को रोक दिया जाता है।
Q. चातुर्मास्य कब शुरू होता है और कब समाप्त होता है?
Ans. चातुर्मास्य देवशयनी एकादशी के दिन शुरू होता है और प्रबोधिनी एकादशी, हिन्दू मास कार्तिक के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन पर समाप्त होता है।
Q. देवशयनी एकादशी कैसे मनाई जाती है?
Ans. भक्त देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं, स्वच्छ कपड़े पहनते हैं, और उपवास और पूजा करने का संकल्प लेते हैं। उन्हें पूजा स्थल को स्वच्छ करना होता है, फिर वह भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को एक चौकी पर रखते हैं। इसके बाद वे देवता को फूल, फल, और अगरबत्ती चढ़ाते हैं और देवशयनी एकादशी व्रत कथा पढ़ते हैं।