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Raksha Bandhan ki Katha: रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक, ऎतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक कथाएं जानिए इस लेख में

Raksha Bandhan ki Katha
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रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक, ऎतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक कथाएं (Raksha Bandhan Se Judi Pauranik, Dharmik, Samajik Katha): रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का पर्व भारत में हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र और अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाई भी उन्हें उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पर्व के पीछे कई प्राचीन धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक कथाएं छिपी हुई हैं? (Raksha Bandhan ki Katha) इन कथाओं में भगवान कृष्ण और द्रौपदी, राजा बली और माता लक्ष्मी, इंद्र और इंद्राणी जैसे पौराणिक पात्रों के किस्से शामिल हैं। इतिहास के पन्नों में भी रक्षाबंधन से जुड़ी कई मनोरम कथाएं दर्ज हैं, जैसे रानी कर्णावती और हुमायूं, मुग़ल बादशाह और राजपूत स्त्री आदि की कहानियां। इसके अलावा समाज में भी भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाने वाली कई लोक-कथाएं प्रचलित हैं।

तो आइए, इस लेख में हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ी इन विभिन्न प्रकार की कथाओं की एक झलक दिखाते हैं। ये कथाएं न सिर्फ़ आपका मनोरंजन करेंगी बल्कि इस पर्व के महत्व और गहराई को भी समझने में मदद करेंगी। तो तैयार हो जाइए और इस लेख को पढ़िए अंत तक…

Alos Read:-क्या आप जानना चाहते हैं रक्षाबंधन की कहानी और इसके पीछे की पौराणिक कथाएं एवं इतिहास

Table Of Content 

S NO.प्रश्न
1रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथा
2रक्षाबंधन से जुड़ी ऐतिहासिक कथा
3रक्षाबंधन का धार्मिक आधार
4रक्षाबंधन का सामाजिक आधार
5रक्षाबंधन कब है 2024
6रक्षाबंधन के 10 अचूक उपाय
7रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
8रक्षाबंधन के गीत /गाना
9Rakshabandhan Kab Hai | पौराणिक कथा और इतिहासिक कथाएं

रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथा (Rakshabandhan Se Judi Pauranik katha)

Rakshabandhan Se Judi Pauranik katha

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पुराणों के अनुसार, रक्षा बंधन (Raksha Bandhan ki Katha) का पर्व देवी लक्ष्मी और राजा बलि की एक अद्भुत कथा से जुड़ा हुआ है। कहते हैं, जब दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे किए और स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा जताई, तो इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। अपनी चिंता लेकर इंद्र देव भगवान विष्णु के पास पहुंचे। उनकी सुरक्षा के लिए, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण वेश धारण कर बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। वामन रूप में, भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि की भिक्षा मांगी। राजा बलि ने अपने वचन का पालन करते हुए यह भूमि दान में दे दी। वामन रूपी भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को माप लिया। तीसरे पग के लिए स्थान न होने पर, बलि ने अपना सिर समर्पित कर दिया। भगवान ने बलि के सिर पर पैर रख उसे पाताल लोक में भेज दिया। बलि के इस वचन पालन से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने बलि को वरदान मांगने का अवसर दिया। बलि ने भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने की प्रार्थना की, जिसे विष्णु ने स्वीकार कर लिया और उसके द्वारपाल बन गए।

इस स्थिति से उबरने के लिए, नारद जी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांधी और उसे अपना भाई बनाया। उपहार स्वरूप, उन्होंने अपने पति विष्णु को मांगा और उन्हें अपने साथ ले आईं। यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन घटित हुई, और तभी से रक्षा बंधन का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।

रक्षाबंधन से जुड़ी ऐतिहासिक कथा (Raksha Bandhan Se Judi Aitihasik katha)

यह उस समय की बात है जब राजपूतों और मुगलों के बीच युद्ध की आग भड़क रही थी। चितौड़ के महाराजा की विधवा रानी कर्णवती ने अपने राज्य की सुरक्षा की खातिर मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी। राखी की यह पवित्र डोर इतनी प्रभावशाली थी कि हुमायूं ने इसे बहन का स्नेह मानकर अपनी सेनाओं को तुरंत वापस बुला लिया। रानी कर्णवती और हुमायूं के बीच इस स्नेहपूर्ण घटना ने भाई-बहन के रिश्ते को एक नया आयाम दिया और उनकी मित्रता की एक अमिट मिसाल पेश की। यह ऐतिहासिक घटना भारतीय संस्कृति में रक्षा बंधन के पर्व को मजबूती से स्थापित करती है, जो आज भी भाई-बहन के बीच स्नेह और विश्वास का प्रतीक है।

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एक और अन्य ऐतिहासिक कथा- 

राखी का पर्व भारतीय संस्कृति की एक प्राचीन परंपरा है, जो महाभारत काल तक जाती है और आज भी उसी उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का एक महत्वपूर्ण प्रसंग महाभारत (Mahabharata) में मिलता है। जब शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की तर्जनी अंगुली में चोट लग गई, तो उनकी अंगुली से रक्त बहने लगा। इस स्थिति को देखकर, द्रौपदी ने तत्काल अपनी साड़ी की किनारी फाड़कर कृष्ण की अंगुली पर बांध दी, ताकि रक्त को रोका जा सके। इस घटना ने द्रौपदी और कृष्ण के बीच एक गहरा संबंध स्थापित किया, जहां द्रौपदी ने अपनी बहन के कर्तव्य का निर्वहन किया और कृष्ण ने उसे अपने ऋण की तरह माना।

समय बीता और जब द्रौपदी (Draupadi) की चीर हरण की घटना घटी, तब कृष्ण ने अपने वचन को निभाते हुए द्रौपदी की लाज बचाई। यह घटना भी श्रावण मास की पूर्णिमा को घटी, जो राखी के पर्व का हिस्सा बनी। इस दिन कृष्ण ने द्रौपदी के प्रति अपनी कृतज्ञता और समर्पण प्रकट किया। राखी का यह पर्व केवल भाई-बहन के रिश्ते की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्राचीन परंपराओं और कृतज्ञता की भी एक महाकथा है, जो समय के साथ और भी सशक्त और प्रासंगिक हो गई है।

रक्षाबंधन का धार्मिक आधार (Raksha Bandhan ka Dharmik Aadhar)

Raksha Bandhan ka Dharmik Aadhar

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भारत के विभिन्न हिस्सों में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का पर्व विभिन्न नामों और रूपों में मनाया जाता है। उत्तरांचल में इसे “श्रावणी” के नाम से जाना जाता है, जहाँ यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन, ब्राह्मण वर्ग यज्ञोपवीत धारण कर इसे शुभ मानते हैं। ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत और राखी प्रदान कर दक्षिणा प्राप्त करते हैं। अमरनाथ (Amarnath Yatra) की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा भी इस दिन समाप्त होती है, जिससे रक्षा बंधन की पवित्रता और महत्व और भी बढ़ जाता है। इस तरह, रक्षा बंधन न केवल एक भाई-बहन के रिश्ते का पर्व है, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक समागम भी है, जो पूरे भारत में विविध रूपों में मनाया जाता है।

रक्षाबंधन का सामाजिक आधार (Raksha Bandhan ka Samajik Aadhar)

राजस्थान (Rajasthan) में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) की परंपरा बेहद अनूठी और विशिष्ट है। यहां पर “राम राखी” और “चूड़ा राखी” बांधने की विशेष परंपरा है। राम राखी केवल भगवान को बांधी जाती है, जबकि चूड़ा राखी भाभियों की चूडियों में बांधी जाती है। ये राखियां रेशमी डोर से बनाई जाती हैं और उन्हें बांधने से पहले कच्चे दूध से अभिमंत्रित किया जाता है। इस धार्मिक प्रक्रिया के बाद भोजन का आयोजन होता है, जो इस पर्व की परंपराओं को पूरा करता है। राजस्थान की ये विशेष राखी परंपराएं न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती हैं, बल्कि इस पर्व की गहराई और विविधता को भी उजागर करती हैं।

Conclusion:-Raksha Bandhan ki Katha

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है जिसमें प्रेम, विश्वास और सुरक्षा के भाव समाहित हैं। इस पर्व से जुड़ी विभिन्न कथाएं इस बंधन की महिमा और महत्ता को प्रकट करती हैं। ये कहानियां हमें संदेश देती हैं कि हमें अपने रिश्तों को निस्वार्थ भाव से निभाना चाहिए और एक-दूसरे की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए। रक्षाबंधन के त्योहार से जुड़ी यह सभी कथाएं अगर आपको पसंद आई हो तो कृपया इस लेख को अपने सभी प्रिय जनों के साथ भी साझा करें साथ ही साथ हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें

FAQ’s:-Raksha Bandhan ki Katha

Q. राजा बलि ने भगवान विष्णु को क्या दान किया था?

Ans. राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि का दान किया था। भगवान विष्णु ने पहले दो पग में स्वर्ग और पृथ्वी को मापा, और तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर समर्पित कर दिया।

Q. चितौड़ के महाराजा की विधवा रानी कर्णवती ने मुगल सम्राट हुमायूं को क्या भेजा था?

Ans. रानी कर्णवती ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी। इस राखी के प्रभाव से हुमायूं ने अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया।

Q. महाभारत में रक्षा बंधन से जुड़ी प्रमुख घटना कौन सी है?

Ans. महाभारत में, द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की अंगुली में लगी चोट को रोकने के लिए अपनी साड़ी की किनारी फाड़कर बांधी थी। बदले में, कृष्ण ने द्रौपदी की चीर हरण के समय उसकी लाज बचाई।

Q. भारत के उत्तरांचल में रक्षा बंधन को क्या कहते हैं?

Ans. उत्तरांचल में रक्षा बंधन को “श्रावणी” के नाम से जाना जाता है। इस दिन, ब्राह्मण यज्ञोपवीत धारण करते हैं और यजमानों को राखी बांधते हैं।

Q. राजस्थान में “राम राखी” और “चूड़ा राखी” की परंपरा क्या है?

Ans. राजस्थान में “राम राखी” केवल भगवान को बांधी जाती है, जबकि “चूड़ा राखी” भाभियों की चूडियों में बांधी जाती है। ये राखियां रेशमी डोर से बनाई जाती हैं और कच्चे दूध से अभिमंत्रित की जाती हैं।

Q. रक्षा बंधन का पर्व देवी लक्ष्मी और राजा बलि की कथा से कैसे जुड़ा है?

Ans. देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया। इसके बदले में, बलि ने भगवान विष्णु को अपनी सुरक्षा में रखा। यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को घटित हुई, और तभी से रक्षा बंधन मनाया जाने लगा।