बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास (Baba Ramdev ji ka Purana Itihas): बाबा रामदेव – एक नाम जो हर किसी की जुबान पर है। राजस्थान के इस महान संत और लोक देवता ने अपने जीवन से पूरे देश को प्रेरित किया है। उनका जन्म, उनका जीवन और उनके चमत्कार – सब कुछ इतना रोमांचक और प्रेरणादायक है कि सुनने वाला दंग रह जाता है।
बाबा रामदेव जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया, गरीबों और पीड़ितों की सेवा की, और अपने अद्भुत कार्यों से लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई। आज भी उनके भक्त देश-विदेश में फैले हुए हैं और श्रद्धा से उनका नाम लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा रामदेव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? उनके माता-पिता कौन थे? बचपन में उन्होंने क्या-क्या लीलाएं कीं? युवा अवस्था में उन्होंने क्या महान कार्य किए जिनसे वो लोकदेवता कहलाए? और अंत में उन्होंने संसार से विदा कैसे ली? इस लेख में हम बाबा रामदेव जी के पूरे जीवन का सफर करेंगे। उनके इतिहास और जीवनी को विस्तार से जानेंगे। साथ ही उनसे जुड़ी कुछ मनोरम कथाओं और किवदंतियों का भी आनंद लेंगे।
तो चलिए, शुरू करते हैं यह अद्भुत लेख महान संत श्री रामदेव जी के बारे में…
Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | बाबा रामदेव जी कौन हैं? |
2 | बाबा रामदेव जी का जीवन परिचय |
3 | बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास |
4 | बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास पीडीएफ डाउनलोड |
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बाबा रामदेव जी कौन हैं? (Baba Ramdev ji kaun Hain)
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राजस्थान के बाड़मेर जिले के ऊंडु काशमीर गांव में जन्मे रामदेव जी (Baba Ramdev ji), जिन्हें बाबा रामदेव, रामसा पीर, और पीरो के पीर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रतिष्ठित लोक देवता हैं। वे मेघवाल परिवार के सायर जी मेघवाल के वंशज थे और उनकी माता का नाम मगनी पवार था। रामदेवजी (Baba Ramdev ji)की पूजा केवल राजस्थान और गुजरात में ही नहीं, बल्कि भारत के कई अन्य राज्यों में भी श्रद्धा के साथ की जाती है। उनकी भक्ति में संलग्न होने से लोग उनके दिव्य आशीर्वाद और शक्ति का अनुभव करते हैं।
बाबा रामदेव जी का जीवन परिचय (Baba Ramdev ji ka Jeevan Parichay)
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बाबा रामदेव जी (Baba Ramdev ji) एक प्रसिद्ध लोकदेवता हैं जो 15वीं शताब्दी में राजस्थान में अवतरित हुए। उनका जन्म विक्रम संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को पोकरण के निकट रुणिचा में तोमरवंशीय राजपूत शासक राजा अजमल जी के घर हुआ था। कहा जाता है कि उनके जन्म के समय सभी मंदिरों में घंटियां स्वयं बजने लगीं, महल का पानी दूध में बदल गया और कुमकुम के पदचिन्ह दिखाई दिए।
उस काल में भारत में लूट-खसोट, छुआछूत, हिन्दू-मुस्लिम झगड़े आदि के कारण स्थितियां अराजक थीं और भेरव नामक राक्षस का आतंक था। ऐसे विकट समय में बाबा रामदेव ने अवतार लिया। उन्होंने समाज में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष और छुआछूत का विरोध किया तथा अछूतोद्धार का सफल आंदोलन चलाया। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बने – हिंदुओं के लिए देवता और मुसलमानों के लिए रामसा पीर।
उनके द्वारा कई अलौकिक चमत्कार और परचे दिए जाने का उल्लेख मिलता है। एक कथा के अनुसार मक्का से आए पांच पीरों के सामने उन्होंने उनकी खोई हुई खाने की सीपियां प्रकट कर दीं जिससे प्रभावित होकर उन पीरों ने बाबा रामदेव को पीरों का महापीर स्वीकार किया। बाबा रामदेव ने विक्रम संवत् 1442 में समाधि ली। समाधि लेने से पहले उन्होंने लोगों को उपदेश दिया कि प्रतिमाह शुक्ल पक्ष की दूज को उनकी पूजा करें, जन्मोत्सव और समाधि दिवस पर मेला लगाएं और पूजन में भेदभाव न रखें। उन्होंने वचन दिया कि वे सदैव अपने भक्तों के साथ रहेंगे।
आज भी बाबा रामदेव (Baba Ramdev ji) राजस्थान (Rajasthan) के सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। उनके भक्तों में दलित समुदाय के लोगों की संख्या अधिक है। उनका स्मारक रामदेवरा में स्थित है जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। बाबा रामदेव का जीवन समरसता, करुणा और सामाजिक समानता का संदेश देता है।
बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास (Baba Ramdev ji ka Purana Itihas)
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बाबा रामदेवजी (Baba Ramdev ji), भारत के एक महान लोक देवता, सम्पूर्ण देश में अपनी अनुपम प्रसिद्धि के लिए जाने जाते हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में उन्हें ‘रामसापीर’, ‘रुणीचा रा धणी’, और ‘बाबा रामदेव’ जैसे कई नामों से सम्मानित किया जाता है। बाबा रामदेवजी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे छूआ-छूत और जातिवाद को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया। हिन्दू धर्म में उन्हें कृष्ण का अवतार माना जाता है, जबकि मुस्लिम समाज उन्हें ‘रामसा पीर’ के रूप में पूजा करता है।
उनके बड़े भाई वीरमदेवजी को बलराम भगवान का अवतार माना जाता है, जबकि स्वयं बाबा रामदेवजी को विष्णु का अवतार माना जाता है। उन्होंने कामड़िया पंथ की स्थापना की और बालीनाथ से शिक्षा प्राप्त की। मान्यता है कि बाल्यावस्था में ही उन्होंने सातलमेर के मरु क्षेत्र में तांत्रिक भैरव राक्षस का वध कर उसकी आतंक को समाप्त किया।
बाबा रामदेवजी (Baba Ramdev ji) ने अपने समय में जनता को अनेक कष्टों से मुक्त किया और पोकरण कस्बे को पुनर्जीवित किया। उन्होंने रामदेवरा (रुणेचा) में रामसरोवर का निर्माण करवा कर अपने भक्तों को एक स्थायी स्थल प्रदान किया। उनकी धर्म बहन डाली बाई ने उनकी आज्ञा से जलसमाधि ली थी और उनका मंदिर उनकी समाधि के पास स्थित है। उनकी सगी बहन सुगना बाई का विवाह पुंगलगढ़ के राजपूत परिहार राव किशन सिंह से हुआ था। उनके वंशज मृतक को दफनाने की परंपरा निभाते हैं। हर साल भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रामदेवजी का मेला भव्य रूप से मनाया जाता है, जिसमें भक्त उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास पीडीएफ डाउनलोड (Baba Ramdev ji ka Purana Itihas PDF Download)
बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास PDF Downloadइस विशेष लेख के जरिए हम आपसे परम पूज्य लोक देवता बाबा रामदेव जी (Baba Ramdev ji) के ऐतिहासिक जीवन से संबंधित यह बेहद खास पीडीएफ साझा कर रहे हैं इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड करके आप बाबा रामदेव जी के ऐतिहासिक जीवन के बारे में विस्तार से सरलतापूर्वक पढ़ सकते हैं।
Conclusion
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FAQ’s
Q. बाबा रामदेव जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
Ans. बाबा रामदेव जी का जन्म विक्रम संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को पोकरण के निकट रुणिचा में हुआ था।
Q. बाबा रामदेव जी ने कौन सा पंथ स्थापित किया?
Ans. बाबा रामदेव जी ने कामड़िया पंथ की स्थापना की थी।
Q. बाबा रामदेव जी ने किस राक्षस का वध किया?
Ans. बाबा रामदेव जी ने बाल्यावस्था में तांत्रिक भैरव राक्षस का वध किया।
Q. बाबा रामदेव जी की पूजा किन-किन राज्यों में होती है?
Ans. बाबा रामदेव जी की पूजा राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में होती है।
Q. बाबा रामदेव जी ने कब और कहां समाधि ली?
Ans. बाबा रामदेव जी ने विक्रम संवत् 1442 में रामदेवरा (रुणेचा) में समाधि ली।
Q. बाबा रामदेव जी के साथ किस धार्मिक समरसता का प्रतीक बने?
Ans. बाबा रामदेव जी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बने और हिंदुओं के लिए देवता और मुसलमानों के लिए रामसा पीर के रूप में पूजे जाते हैं।