शरद पूर्णिमा की कहानी (Sharad Purnima ki katha): शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जब चांद अपनी पूरी चमक के साथ आकाश में झिलमिलाता है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस शुभ अवसर पर, लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और मां लक्ष्मी को खीर, पूड़ी और अन्य पकवान अर्पित करते हैं। शरद पूर्णिमा की आरती में माता लक्ष्मी (Mata Laxmi) को भगवान चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष भजन व आरती की जाती है। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के पावन त्योहार से संबंधित बेहद प्रसिद्ध व पौराणिक कथा भी है जिसके बारे में हम आपको इस लेख में बताएंगे।
इस लेख में, हम शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के बारे में विस्तार से जानेंगे – इसका महत्व, आरती और कथा। साथ ही, हम शरद पूर्णिमा की कथा का पीडीएफ भी साझा करेंगे ताकि आप इस पवित्र कथा को गहराई से पढ़ और समझ सकें। तो चलिए शुरू करते हैं इस बेहद खास लेख को…
शरद पूर्णिमा क्या और कब है? (Sharad Purnima kya Aur kab Hai)
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) की रात को कृष्ण और ब्रज की गोपियों के बीच हुई अद्भुत रासलीला के लिए विशेष माना जाता है। इस दिव्य नृत्य में शामिल होने की इच्छा से भगवान शिव (Bhagwan Shiva) ने गोपीश्वर महादेव का रूप धारण किया था। इस महत्वपूर्ण रात का विस्तार से वर्णन ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण और लिंग पुराण में मिलता है, जहाँ इसे अत्यंत पवित्र और अद्वितीय घटना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) की यह रात्रि भक्तों के लिए अध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को देशभर में मनाई जाएगी।
शरद पूर्णिमा की कहानी (Sharad Purnima ki Kahani)
शरद पूर्णिमा की कथा: एक साहूकार के घर में दो सुंदर और सुशील कन्याएं थीं। बड़ी बहन धार्मिक रीतियों में निपुण थी, जबकि छोटी बहन इन सब में थोड़ी लापरवाह थी। दोनों बहनें बड़ी हुईं और उनका विवाह हो गया। शरद पूर्णिमा का पर्व आते ही, दोनों बहनों ने व्रत करने का निर्णय लिया। लेकिन छोटी बहन के सभी धार्मिक अनुष्ठान अधूरे रहते थे, जिसके परिणामस्वरूप उसकी संतान जन्म लेने के कुछ समय बाद ही मर जाती थी।
इस दुख से परेशान होकर, उसने एक महात्मा से सलाह ली। महात्मा ने उसे समझाया कि पूजा-पाठ में उसका मन नहीं लगा है। उन्होंने उसे सलाह दी कि वह शरद पूर्णिमा का व्रत विधि-विधान के अनुसार करे। महात्मा की बात सुनकर, छोटी बहन ने अपने मन से व्रत करने का निश्चय किया, लेकिन फिर भी उसका पुत्र जीवित नहीं रहा।
इस बार उसने अपनी मरी हुई संतान को एक चौकी पर रखकर, अपनी बहन को घर बुलाया और अनजाने में उसे उसी चौकी पर बैठने का आग्रह किया। जैसे ही बड़ी बहन ने उस चौकी पर बैठने की कोशिश की, बच्चे की आवाज सुनाई दी। वह चौंकी और बोली, “तू मुझे यहां क्यों बैठा रही थी? ये तो तेरा अपना ही बेटा है।” छोटी बहन ने बताया कि उसका पुत्र तो मर गया था, लेकिन बड़ी बहन के पुण्यों के कारण, उसके छुने मात्र से बच्चे के प्राण दोबारा लौट आए।
इस अद्भुत घटना के बाद, सभी गांववासियों ने प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करने का संकल्प लिया, जिससे सभी को पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होने लगा।
शरद पूर्णिमा की कथा पीडीएफ (Sharad Purnima Vrat katha PDF)
शरद पूर्णिमा की कहानी PDF Downloadइस विशेष लेख के जरिए हम आपसे शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima Katha) की कथा का संपूर्ण पीडीएफ साझा कर रहे हैं इस पीडीएफ को डाउनलोड करने के बाद आप शरद पूर्णिमा की कथा बेहद सरलता से श्रद्धापूर्वक पढ़ सकते हैं।
शरद पूर्णिमा की आरती (Sharad Purnima ki Aarti)
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।
दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी।रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी।
दीन दयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि।योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करें सेवा।वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।
प्रेमभाव से पूजें, सब जग के नारी।शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।
धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे।विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।
सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।
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Conclusion
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FAQ’s
शरद पूर्णिमा का महत्व क्या है?
शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो आश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत की बूंदें धरती पर गिरती हैं, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए लाभकारी होती हैं।
शरद पूर्णिमा की कथा क्या है?
शरद पूर्णिमा से जुड़ी प्रमुख कथा यह है कि एक समय, एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी के पास कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मां लक्ष्मी की उपासना शुरू की और मां लक्ष्मी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि शरद पूर्णिमा की रात को जागकर वे उन्हें धन और संतान दोनों का वरदान देंगी। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने मां लक्ष्मी की आराधना की और शरद पूर्णिमा की रात जागकर उनका स्वागत किया। इसके बाद उन्हें धन-संपत्ति और संतान का वरदान प्राप्त हुआ। इस कथा के आधार पर ही शरद पूर्णिमा की रात को जागरण का विशेष महत्व माना जाता है।
शरद पूर्णिमा की रात को क्या किया जाता है?
इस दिन, भक्तजन मां लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा करते हैं। खासतौर पर, खीर बनाकर उसे रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। यह मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा से अमृतमय किरणें निकलती हैं, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी होती हैं। इस खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
क्या शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखा जाता है?
हां, कई लोग शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखते हैं। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य मां लक्ष्मी और चंद्र देव की कृपा प्राप्त करना होता है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
शरद पूर्णिमा की आरती कैसे की जाती है?
शरद पूर्णिमा की आरती मां लक्ष्मी और चंद्र देव की स्तुति करने के लिए की जाती है। आरती के समय दीप जलाया जाता है, और “ॐ जय लक्ष्मी माता” या “ॐ जय जगदीश हरे” जैसी आरती गाई जाती है। इसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं।
शरद पूर्णिमा का ज्योतिषीय महत्व क्या है?
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी पूर्णता में होता है और कहा जाता है कि उसकी किरणें पृथ्वी पर विशेष प्रभाव डालती हैं। यह रात स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से मनुष्य के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि आती है।