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Mata Chandraghanta ki kahani: नवरात्रि के तीसरे दिन क्यों की जाती है माता चंद्रघंटा की पूजा?, जानिए इनकी उत्पत्ति, स्तोत्र, मंत्र, प्रिय पुष्प आरती इत्यादि के बारे में l

Mata Chandraghanta ki kahani
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माता चंद्रघंटा की कहानी (Mata Chandraghanta ki Kahani): देवी माता चंद्रघंटा: नवरात्रि की तीसरी शक्ति। हिंदू धर्म में नवरात्रि (Navaratri) का पर्व बहुत महत्व रखता है, और इस पर्व में देवी माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों में से तीसरी शक्ति है माता चंद्रघंटा, माता चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) की महिमा और शक्ति के बारे में जानने के लिए, हमें उनकी उत्पत्ति, स्वरूप, और पूजा विधि के बारे में जानना होगा। 

माता चंद्रघंटा की कहानी वेद व पुराणों में वर्णित है, और उनकी पूजा करने से भक्तों को शक्ति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा का विशेष महत्व है, और इस दिन भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। माता चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और शक्ति की प्राप्ति होती है, और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। माता चंद्रघंटा की महिमा और शक्ति के बारे में जानने से हमें उनकी पूजा करने की प्रेरणा मिलती है, और हमें उनकी कृपा की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति कैसे हुई और उनकी प्रार्थना कैसे की जाती है? क्या आप जानते हैं कि माता चंद्रघंटा का स्वरूप वर्णन क्या है और उनका प्रमुख मंत्र क्या है? इस लेख में, हम माता चंद्रघंटा के बारे में विस्तार से जानेंगे और उनकी महिमा को समझेंगे। 

तो आइए, माता चंद्रघंटा के बारे में जानें और उनकी शक्ति का लाभ उठाएं। इस लेख के माध्यम से, हम माता चंद्रघंटा की महिमा को समझेंगे और उनकी पूजा करने की विधि को जानेंगे…

देवी माता चंद्रघंटा कौन हैं? (Devi Mata Chandraghanta kaun Hain)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) न्याय और अनुशासन की स्थापना के लिए संसार में अवतरित होती हैं। यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है, जो शिव जी से विवाह के पश्चात अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने लगीं, इसी कारण उन्हें चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) कहा जाने लगा। उनके इस स्वरूप में शक्ति, साहस, और करुणा का अद्वितीय संगम दिखाई देता है। मां चंद्रघंटा का यह रूप समर्पण और संतुलन का प्रतीक है, जो अपने भक्तों की हर बाधा को दूर कर जीवन में शांति और सौहार्द स्थापित करती हैं।

देवी माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति कैसे हुई? (Devi Mata Chandraghanta ki Utpatti kaise Hui)

महिषासुर के आतंक से जब देवता भयभीत हुए, तो उन्होंने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण ली। देवताओं की व्यथा सुनकर, तीनों देवताओं के क्रोध से एक अद्भुत ऊर्जा का प्रकट होना हुआ, और उस ऊर्जा से एक शक्तिशाली देवी प्रकट हुईं। भगवान शिव ने उन्हें त्रिशूल भेंट किया, भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया, इंद्र ने घंटा सौंपा, सूर्य ने अपने तेज और तलवार प्रदान की, और उन्हें एक सिंह की सवारी दी। इस प्रकार देवी चंद्रघंटा का जन्म हुआ, जिन्होंने अपने अद्वितीय शौर्य से महिषासुर का अंत कर देवताओं को संकट से मुक्त किया। उनकी वीरता और शक्ति से समस्त संसार में शांति स्थापित हुई।

नवरात्रि पूजा (Navaratri Puja)

नवरात्रि (Navaratri) के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) की विधिपूर्वक पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। माता को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप और पुष्प अर्पित करें और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इस दिन मां की कृपा प्राप्त करने के लिए नियम से दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa) और दुर्गा आरती का पाठ अवश्य करें। मां चंद्रघंटा की आराधना से जीवन में शांति, साहस, और समृद्धि की प्राप्ति होती है, इसलिए भक्त श्रद्धा से उनका पूजन करते हैं।

शासनाधीन ग्रह (Shashnadheen Grah)

मान्यताओं के अनुसार, देवी चंद्रघंटा (Devi Chandraghanta) शुक्र ग्रह की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं, जो अपने भक्तों के जीवन में प्रेम, सौंदर्य और समृद्धि का संचार करती हैं।

स्वरूप वर्णन (Swaroop Varnan)

मां चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) का अलौकिक स्वरूप अत्यंत दिव्य है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है, जिससे उन्हें “चंद्रघंटा” कहा जाता है। स्वर्ण के समान चमकते उनके शरीर पर दस भुजाएँ हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं, और वे सिंह पर आरूढ़ होकर भक्तों की रक्षा करती हैं।

प्रिय पुष्प (Priya Pushp)

ऐसी मान्यता है कि माता चंद्रघंटा (Mata Chandraghanta) को सफेद कमल और पीले गुलाब की माला अर्पित करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। 

मन्त्र (Mantra)

  • ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना (Prarthana)

  • पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥ 

स्तुति (stuti)

  • या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥

स्तोत्र (Stotra)

ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।

खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।

मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्घ
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।

कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ
स्तोत्र आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम।

अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ्
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम।

धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम।

सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ्
कवच रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं।

स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।

आरती (Aarti)

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।

चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।

क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।

मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।

सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।

शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटूं महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।

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Conclusion

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया (नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा) यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपके मन में किसी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर दर्ज करें, हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे। बाकि ऐसे ही रोमांचक लेख के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर दोबारा विज़िट करें, धन्यवाद 

FAQ’s

1. मां चंद्रघंटा कौन हैं?

मां चंद्रघंटा मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में से तीसरा स्वरूप हैं। उनका यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र की आकृति है, जिससे उनका नाम “चंद्रघंटा” पड़ा। वे शांति और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं।

2. मां चंद्रघंटा की कथा क्या है?

कथाओं के अनुसार, मां चंद्रघंटा का यह रूप तब सामने आया जब भगवान शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था। भगवान शिव विवाह के लिए घोर तपस्वी रूप में पहुंचे थे, जिससे सभी देवता और लोक भयभीत हो गए। तब मां पार्वती ने अपने चंद्रघंटा स्वरूप में आकर इस स्थिति को संभाला और शिव को शांत रूप में आने के लिए प्रेरित किया। यह रूप धारण कर मां पार्वती ने शांति और समर्पण का संदेश दिया।

3. मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व क्या है?

मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को साहस, शक्ति और आत्मविश्वास मिलता है। वे अपने भक्तों के जीवन से नकारात्मकता और भय को दूर करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। उनकी कृपा से भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि आती है।

4. मां चंद्रघंटा की पूजा कैसे की जाती है?

मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। उन्हें लाल फूल, दूध, दही, और घी अर्पित करें। मां के मंत्र “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः” का जाप करें और उनसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।

5. मां चंद्रघंटा का स्वरूप कैसा है?

मां चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली देवी हैं। उनके हाथों में अस्त्र-शस्त्र, कमल और माला होती है। वे सिंह पर सवार रहती हैं, जो उनकी वीरता और शक्ति का प्रतीक है। उनके माथे पर चंद्र का घंटाकार निशान होता है, जिससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।

6. मां चंद्रघंटा की पूजा के लाभ क्या हैं?

मां चंद्रघंटा की पूजा से जीवन में साहस और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। वे भक्तों की हर प्रकार की बाधाओं से रक्षा करती हैं और जीवन को शांति और संतुलन प्रदान करती हैं। उनकी कृपा से मन और शरीर दोनों में शांति का अनुभव होता है।