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महालक्ष्मी चालीसा | Mahalaxmi Chalisa

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धन और समृद्धि की देवी, माँ महालक्ष्मी, भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती हैं। उनकी चालीसा, जो भक्तिमय स्तोत्र है, उनकी कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह चालीसा सदियों से भक्तों द्वारा प्रचलित है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। । महा लक्ष्मी की चालीसा, एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो हिन्दू धर्म में आदि शक्ति, लक्ष्मी देवी की पूजा में प्रयुक्त होता है। यह चालीसा महालक्ष्मी को धन, समृद्धि, और सौभाग्य की देवी मानती है और उसकी पूजा भक्तों को आर्थिक और आध्यात्मिक समृद्धि में सहायक होती है। इस लेख में हम इस चालीसा के महत्व, इसके स्थानीय और सांस्कृतिक परंपरा में योगदान, और महालक्ष्मी देवी के रूपों और गुणों की चर्चा करेंगे। यह प्रशंसा भरा स्तोत्र भक्तों को सजग और ध्यानार्ह बनाता है जो लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

॥ दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा,

करो हृदय में वास ।

मनोकामना सिद्घ करि,

परुवहु मेरी आस

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास,

हाथ जोड़ विनती करुं ।

सब विधि करौ सुवास,

जय जननि जगदंबिका ॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही ।

ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी ।

सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा ।

सबकी तुम ही हो अवलम्बा ॥

तुम ही हो सब घट घट वासी।

विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी ।

दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी ।

कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।

सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी ।

जगजननी विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता ।

संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो ।

चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥ 10

चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।

सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा ।

रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।

लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं ।

सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी ।

विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।

कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई ।

मन इच्छित वांछित फल पाई ॥

तजि छल कपट और चतुराई ।

पूजहिं विविध भांति मनलाई ॥

और हाल मैं कहौं बुझाई ।

जो यह पाठ करै मन लाई ॥

ताको कोई कष्ट नोई ।

मन इच्छित पावै फल सोई ॥ 20

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि ।

त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै ।

ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥

ताकौ कोई न रोग सतावै ।

पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना ।

अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै ।

शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा ।

ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।

कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा ।

तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही ।

उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं ॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई ।

लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥ 30

करि विश्वास करै व्रत नेमा ।

होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।

सब में व्यापित हो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं ।

तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।

संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी ।

दर्शन दजै दशा निहारी ॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।

तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में।

सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण ।

कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।

ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई ॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी,

हरो वेगि सब त्रास ।

जयति जयति जय लक्ष्मी,

करो शत्रु को नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित,

विनय करत कर जोर ।

मातु लक्ष्मी दास पर,

करहु दया की कोर ॥

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FAQ’S 

Q. देवी महालक्ष्मी का वाहन क्या है?

Ans. देवी महालक्ष्मी का वाहन उल्लू है, जो ज्ञान और विवेक का प्रतीक है।

Q. देवी महालक्ष्मी का प्रिय रंग कौन सा है?

Ans. देवी महालक्ष्मी का प्रिय रंग लाल है, जो समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है।

Q. देवी महालक्ष्मी की पूजा का क्या महत्व है?

Ans.देवी महालक्ष्मी की पूजा धन, समृद्धि, सौभाग्य और वैभव प्राप्ति के लिए की जाती है।

Q. देवी महालक्ष्मी की पूजा कब की जाती है?

Ans. देवी महालक्ष्मी की पूजा शुक्रवार को विशेष रूप से की जाती है। दीपावली, धनतेरस और नवरात्रि के दौरान भी देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।

Q. देवी महालक्ष्मी की पति कौन है?

Ans. देवी महालक्ष्मी पति भगवान विष्णु हैं। भगवान विष्णु हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति में से एक हैं और उन्हें संरक्षक माना जाता है।