Vastu Tips for Staircase: वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra), एक प्राचीन भारतीय विज्ञान, जो प्रकृति के साथ समरसता को बढ़ावा देने के लिए भवनों के डिजाइन और निर्माण के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है। इसका मानना है कि वास्तु सिद्धांतों का पालन करने से भवन के निवासियों को शांति, समृद्धि, और खुशी मिल सकती है। वास्तु का एक महत्वपूर्ण पहलु भवन में सीढ़ियों के डिजाइन और स्थान है।
सीढ़ियां, एक भवन की डिजाइन का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका स्थान अक्सर अनदेखा किया जाता है, लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार, इसका सही निर्माण और स्थान एक भवन की सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) को बढ़ावा देता है। एक गलत दिशा में या गलत तरीके से निर्मित सीढ़ियां नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, जैसे कि वित्तीय हानि, स्वास्थ्य समस्याएं, और विवाद।
इसलिए, यहां हम आपको घर की सीढ़ियों के लिए 10 वास्तु टिप्स (Vastu Tips) प्रदान कर रहे हैं, जिनका पालन करके आप अपने घर को प्रकृति के साथ समन्वय में ला सकते हैं और अपने घर के निवासियों के लिए शांति, समृद्धि, और खुशी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह टिप्स सीढ़ियों की दिशा, संख्या, सामग्री, आकार, डिजाइन, रंग, स्थान, लैंडिंग, ऊचाई, और लाइटिंग को शामिल करती हैं।
1. सीढ़ियों की दिशा
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, सीढ़ियों की दिशा का घर के वास्तु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। दक्षिण-पश्चिम दिशा सीढ़ियों के निर्माण के लिए सबसे शुभ मानी जाती है, जो सौभाग्य और समृद्धि लाती है। पश्चिम या दक्षिण दिशा में भी सीढ़ियाँ बनाई जा सकती हैं। हालाँकि, उत्तर-पूर्व दिशा में सीढ़ियाँ बनाने से बचना चाहिए क्योंकि यह आर्थिक नुकसान और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। इसके अलावा, सीढ़ियों को घर के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) घर में प्रवेश कर सकती है। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, एक वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श करके सीढ़ियों का निर्माण वास्तु सिद्धांतों के अनुसार सुनिश्चित करना चाहिए।
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2. सीढ़ियों के लिए वास्तु घर के पश्चिम या दक्षिण भाग
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, घर में सीढ़ियों का निर्माण घर के दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा में करना चाहिए। इन दिशाओं में बनी सीढ़ियाँ सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं और नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) को दूर करती हैं। इसके विपरीत, उत्तर या पूर्व दिशा में बनी सीढ़ियाँ अशुभ मानी जाती हैं क्योंकि वे नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) को आकर्षित कर सकती हैं।
सीढ़ियों की संख्या भी महत्वपूर्ण है। वास्तु के अनुसार, विषम संख्या में सीढ़ियाँ शुभ होती हैं, जैसे 11, 13 या 15 । सम संख्या वाली सीढ़ियाँ, खासकर 4, अशुभ मानी जाती हैं। सीढ़ियों को सीधी और चौड़ी होनी चाहिए तथा लकड़ी, पत्थर या संगमरमर जैसी प्राकृतिक सामग्री से बनी होनी चाहिए। इसके अलावा, सीढ़ियों (Stairs) को मुख्य द्वार, रसोई या पूजा कक्ष के सामने नहीं होना चाहिए। इन वास्तु नियमों का पालन करके, आप अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) और सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
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3. सीढ़ियों के लिए वास्तु के लिए सर्पिल डिजाइन
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, सीढ़ियों का डिजाइन सीधा और चौड़ा होना चाहिए। घुमावदार या सर्पिल सीढ़ियां ऊर्जा के प्रवाह को बाधित करती हैं और घर में नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) का संचार कर सकती हैं।सीधी और चौड़ी सीढ़ियां ऊर्जा के सुचारू प्रवाह को बढ़ावा देती हैं। इससे घर में सकारात्मक वाइब्रेशन फैलता है और निवासियों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा, सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए जैसे 7, 9, 11, 13 आदि। सम संख्या वाली सीढ़ियां नकारात्मकता (Negativity) को आकर्षित करती हैं।
4. सीढियों की संख्या
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, सीढ़ियों की संख्या एक विशेष महत्व रखती है। इसका ध्यान रखना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह घर के सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) को प्रभावित कर सकती है। वास्तु शास्त्र के हिसाब से, सीढ़ियों की संख्या विशेष रूप से विचारित की जानी चाहिए। सीढ़ियों की संख्या अज्ञात नहीं होनी चाहिए और यह अवश्यकतानुसार तय की जानी चाहिए। सीढ़ियों की संख्या विशम होनी चाहिए और जब उन्हें 3 से विभाजित किया जाता है, तो शेषफल 2 होना चाहिए। उदाहरण के लिए, 5, 11, और 17 ऐसी संख्याएं हैं जो यह सर्तें पूरी करती हैं। इस प्रकार, वास्तु (Vastu) के नियमों का पालन करके, आप अपने घर को सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) से भर सकते हैं।
5. सीढ़ियों के लिए वास्तु
सीढ़ियों (Stairs) की स्थिति वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के एक महत्वपूर्ण हिस्से को चिह्नित करती है। आदर्श रूप से, सीढ़ियाँ दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम, या दक्षिण दिशाओं में निर्मित की जानी चाहिए और उत्तर या पूर्व की ओर बढ़नी चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा में सीढ़ियाँ नहीं बनानी चाहिए क्योंकि यह वित्तीय और व्यापारी हानि का कारण बन सकती है। सीढ़ियाँ (Stairs) सीधे मुख्य प्रवेश द्वार की ओर नहीं जानी चाहिए, क्योंकि इससे मुख्य प्रवेश द्वार और पूरी इमारत में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) की कमी हो सकती है। यह भी सलाह दी गई है कि सीढ़ियाँ घर के बीच में नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि इसे ब्रह्मस्थान माना जाता है, जिसे खाली रखना चाहिए।
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6. सीढ़ियों का रंग
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, घर की सीढ़ियों का रंग हल्का होना चाहिए। गहरे और भड़कीले रंग नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकते हैं। सफेद, क्रीम, हल्का पीला, या हल्का गुलाबी जैसे पेस्टल शेड्स सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ावा देते हैं और घर के वातावरण को शांत और सौम्य बनाते हैं।
इसके अतिरिक्त, लकड़ी या पत्थर जैसी प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करना भी शुभ माना जाता है। धातु की सीढ़ियों से बचना चाहिए क्योंकि वे नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकती हैं। सीढ़ियों पर कालीन या रनर का उपयोग करते समय भी हल्के रंगों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
कुल मिलाकर, वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के सिद्धांतों का पालन करके और अपनी सीढ़ियों के लिए उचित रंग और सामग्री का चयन करके, आप अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) के प्रवाह को अधिकतम कर सकते हैं और एक सुखद वातावरण बना सकते हैं।
7. सीढ़ियों के लिए वास्तु के अनुसार ब्रह्मस्थान
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, सीढ़ियों का निर्माण ब्रह्मस्थान से दूर होना चाहिए। ब्रह्मस्थान घर का केंद्र बिंदु होता है और इसे पवित्र माना जाता है। सीढ़ियों को इस क्षेत्र से दूर रखने से ऊर्जा का प्रवाह सुचारू रहता है और घर में सकारात्मकता (Positivity) बनी रहती है।
वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार, सीढ़ियों को दक्षिण या पश्चिम दिशा में बनाना शुभ होता है। उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में सीढ़ियां (Stairs) बनाने से बचना चाहिए क्योंकि यह देवताओं की दिशा मानी जाती है। साथ ही, सीढ़ियों को सीधी और चौड़ी बनाना उचित होता है। घुमावदार सीढ़ियां ऊर्जा प्रवाह में बाधा डालती हैं।
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8. घर के बाहर की सीढ़ियां
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, छत की ओर जाने वाली बाहरी सीढ़ियों की दिशा दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम होनी चाहिए। उत्तर-पूर्व और पूर्व दिशा में सीढ़ियां बनाने से बचना चाहिए।सीढ़ियों का आकार आयताकार या वर्गाकार नहीं होना चाहिए। सर्पिल या वक्राकार आकार वाली सीढ़ियां वास्तु (Vastu) के अनुसार शुभ मानी जाती हैं। सीढ़ियों के पायदानों की संख्या विषम होनी चाहिए, जैसे 11, 13, 15 आदि। सम संख्या वाले पायदान अशुभ माने जाते हैं।
सीढ़ियों के निर्माण के लिए लकड़ी, पत्थर या मजबूत धातु का उपयोग करना चाहिए। कमजोर या टूटी-फूटी सामग्री का प्रयोग नहीं करना चाहिए। टूटी या क्षतिग्रस्त सीढ़ियों की तुरंत मरम्मत करवानी चाहिए। खराब हालत वाली सीढ़ियां परिवार की आर्थिक स्थिरता के लिए अशुभ मानी जाती हैं। सीढ़ियों को हमेशा साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखना चाहिए। गंदगी और अव्यवस्था से बचना चाहिए।
9. सीढ़ियों के नीचे की भंडारण वस्तु
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) के अनुसार, सीढ़ियों के नीचे की जगह का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए। यहां कुछ सामान रखने से बचना चाहिए जैसे जूते-चप्पल, बेकार का सामान, आग से जुड़ी चीजें या तिजोरी। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) का संचार बढ़ सकता है और बच्चों के स्वास्थ्य व घर के मालिक के जीवन में परेशानियां आ सकती हैं।
हालांकि, सीढ़ियों के नीचे की जगह का सही इस्तेमाल करके आप घर की सुंदरता और कार्यक्षमता बढ़ा सकते हैं। आप वहां गमले में पौधे लगा सकते हैं या एक स्टोरेज स्पेस बना सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि वहां पूजा घर, रसोई या बाथरूम ना बनाएं। समग्र रूप से, सीढ़ियों के नीचे की जगह का समझदारी से इस्तेमाल करके आप वास्तु दोषों से बच सकते हैं और अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का संचार कर सकते हैं।
10. सीढ़ियों के आस-पास के दरवाज़े
सीढ़ियाँ आवासीय संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, और इनके निर्माण के दौरान वास्तु नियमों का पालन करना आवश्यक है।
सीढ़ियाँ दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, या पश्चिम दिशा में निर्मित होनी चाहिए, जिससे धन, समृद्धि, और अच्छी स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यदि सीढ़ियाँ मुख्य द्वार के सामने होती हैं, तो यह ऊर्जा की प्रवाह को बाधित कर सकती है। सीढ़ियाँ उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह एक पवित्र स्थल माना जाता है। सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए, और इनके बीच में एक छोटा अंतर होना चाहिए। सीढ़ियाँ चढ़ते समय व्यक्ति का मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा में होना चाहिए। इन्हें पूजा कक्ष या स्नानगृह के पास नहीं बनाना चाहिए।
Conclusion:
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में सीढ़ियों का निर्माण और रखरखाव करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। सीढ़ियों की सही दिशा, उचित संख्या और उचित निर्माण न केवल घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करते हैं, बल्कि घर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य, समृद्धि और सफलता पर भी शुभ प्रभाव डालते हैं। इस लेख में दी गई वास्तु संबंधी टिप्स का पालन करके आप अपने घर को वास्तु सम्मत बना सकते हैं और सकारात्मक बदलावों का अनुभव कर सकते हैं। और अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो उसे कॉमेंट बॉक्स में जाकर जरुर पूछे, हम आपके सभी प्रश्नों का जवाब देने का प्रयास करेंगे। ऐसे ही अन्य लेख को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट janbhakti.in पर रोज़ाना विज़िट करें ।
FAQ’s:
Q. वास्तु शास्त्र क्या है?
Ans. वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो भवन निर्माण और वास्तुकला के सिद्धांतों का अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा के सकारात्मक प्रवाह को बढ़ावा देकर इमारतों में सद्भाव और समृद्धि लाना है।
Q. नए घर का निर्माण करते समय किन दिशाओं का ध्यान रखना चाहिए?
Ans. मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। पूजा कक्ष ईशान कोण में होना चाहिए। शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में और रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा में होना चाहिए।
Q. क्या घर का आकार वास्तु शास्त्र के अनुसार महत्वपूर्ण है?
Ans. हाँ, घर का आकार वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्ग या आयताकार आकार वाले घर शुभ माने जाते हैं। अनियमित आकार वाले घरों में वास्तु दोष हो सकते हैं।
Q. वास्तु दोषों को कैसे दूर किया जा सकता है?
Ans. कुछ वास्तु दोषों को वास्तु विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए उपायों, जैसे कि रंगों का उपयोग, फर्नीचर का पुनर्विन्यास, या यंत्रों की स्थापना द्वारा दूर किया जा सकता है।
Q. वास्तु शास्त्र के पालन से क्या लाभ होते हैं?
Ans. वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे घर में शांति, समृद्धि, और खुशी आती है।
Q. गृह प्रवेश करते समय किन रीति-रिवाजों का पालन करना चाहिए?
Ans. गृह प्रवेश करते समय, सबसे पहले घर की लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। फिर, घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से स्वस्तिक बनाना चाहिए और घर में प्रवेश करते समय दीप प्रज्वलित करना चाहिए।