गुरु प्रदोष व्रत कथा 2024 (Guru Pradosh Vrat Katha 2024): गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)- एक ऐसा व्रत जो आपको ऐश्वर्य और विजय का वरदान दे सकता है। यह व्रत न केवल आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है, बल्कि आपके सभी कष्टों और पापों को भी दूर करता है। प्रदोष काल में किया गया यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक अनूठा अवसर है। प्राचीन काल से ही गुरु प्रदोष व्रत को मंगलकारी और शिव की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना गया है। यह व्रत आपके शत्रुओं को शांत करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने में भी सहायक है। इस लेख में हम आपको गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) की पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे। साथ ही, हम आपके साथ एक PDF भी साझा कर रहे हैं जिसमें गुरु प्रदोष व्रत की विधि विस्तार से बताई गई है। इस PDF की सहायता से आप अपने घर पर ही इस पवित्र व्रत को आसानी से कर सकते हैं और भगवान शिव एवं माता पार्वती की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
तो आइए, जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत की कथा Guru Pradosh Vrat Katha) और इस व्रत को करने की विधि के बारे में विस्तार से। इस लेख को अंत तक पढ़ने के बाद आप इस व्रत के महत्व और लाभों को समझ पाएंगे और इसे अपने जीवन में अवश्य शामिल करेंगे…
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Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | गुरु प्रदोष व्रत कथा |
2 | गुरु प्रदोष व्रत कथा पीडीएफ |
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)
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Guru Pradosh Vrat: एक बार इन्द्र (Lord Indra) और वृत्रासुर (Vritrasura) की सेनाओं के बीच एक भयंकर युद्ध छिड़ गया। देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया। यह देख कर, वृत्रासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हुआ। उसने अपनी आसुरी माया का उपयोग कर एक विकराल रूप धारण कर लिया। भयभीत देवता गुरुदेव बृहस्पति (Guru Brihaspati) की शरण में गए। बृहस्पति महाराज बोले, “पहले मैं तुम्हें वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दूं। वृत्रासुर एक बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ व्यक्ति है। उसने गन्धमादन पर्वत पर देवों के देव महादेव के लिए घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। अपने पूर्व जन्म में वह राक्षस चित्ररथ नामक राजा हुआ करता था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख उसने उपहासपूर्वक कहा, ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, पर देवलोक में ऐसा नहीं होता कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।’
चित्ररथ (Chitrarath) के यह वचन सुनकर सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले, अरे मूर्ख मेरा अपना अलगदृष्टिकोण है। मैंने समुद्र मंथन से निकले विश्व को अपने कंठ में धारण किया है, और तुम मेरा ही उपहास करते हो।’ माता पार्वती (Goddess Parvati) क्रोधित होकर चित्ररथ से बोलीं, ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर और मेरा भी उपहास उड़ाया है। अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों का उपहास करने का दुस्साहस नहीं करेगा। अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर।’ माता पार्वती के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि में जन्मा और त्वष्टा ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले, ‘वृत्रासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है। अतः हे इन्द्र, तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’
देवराज इन्द्र ने गुरु बृहस्पति के कहे कथन का पालन किया और फिर उनसे आशीर्वाद लेकर गुरु प्रदोष व्रत का पालन विधिवत किया। इस व्रत की फल स्वरुप इंद्र को अपार शक्ति और भगवान शिव का आशीर्वाद मिला जिसके कारण इंद्र ने पर अपनी विजय प्राप्त कर ली और फिर देवलोक में शांति स्थापित हो गई।
गुरु प्रदोष व्रत कथा पीडीएफ (Pradosh Vrat Katha PDF)
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गुरु प्रदोष की व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha) से संबंधित यह बेहद खास पीडीएफ हम आपसे इस लेख के जरिए साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड करने के बाद आप गुरु प्रदोष की व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha) को श्रद्धा पूर्वक पढ़ सकते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत कथा PDF DownloadConclusion:-
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गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) की यह कथा हमें बताती है कि भगवान शिव Lord Shiva और गुरु की कृपा से कोई भी कठिन से कठिन कार्य को पूरा किया जा सकता है। इस व्रत को करने से न केवल मनोकामनाएं पूरी होती हैं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) के पावन त्योहार से संबंधित यह विशेष लेखा अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे इस लेख को अपने सभी परिजनों के साथ अवश्य साझा करें। व्रत एवं त्योहार से संबंधित और भी लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. गुरु प्रदोष व्रत किस दिन मनाया जाता है और इसे क्यों मंगलकारी माना जाता है?
Ans. गुरु प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है जब यह गुरुवार के दिन पड़ता है। इस व्रत को करने से भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होती है और यह 100 गाय दान करने के समान पुण्य देता है।
Q. गुरु प्रदोष व्रत की कथा में इंद्र और वृत्रासुर के युद्ध का क्या महत्व है?
Ans. कथा के अनुसार, एक बार इंद्र और वृत्रासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें दैत्य सेना पराजित हो गई। इस पर क्रोधित होकर वृत्रासुर ने विकराल रूप धारण कर लिया जिससे भयभीत होकर देवता गुरु बृहस्पति की शरण में गए।
Q. वृत्रासुर पहले कौन था और उसे शाप कैसे मिला?
Ans. वृत्रासुर पहले चित्ररथ नामक एक राजा था। एक बार वह कैलाश पर्वत पर गया जहां उसने शिव-पार्वती का उपहास किया। इससे क्रोधित होकर पार्वती ने उसे शाप दिया कि वह दैत्य योनि को प्राप्त करेगा। इस प्रकार वह वृत्रासुर बना।
Q. गुरु प्रदोष व्रत की कथा सुनने या पढ़ने का क्या महत्व है?
Ans. गुरु प्रदोष व्रत की कथा को सुनने या पढ़ने मात्र से ही ऐश्वर्य और विजय का शुभ वरदान प्राप्त होता है। यह कथा शत्रुओं का विनाश करने वाली मानी जाती है और सभी प्रकार के कष्ट एवं पापों को नष्ट करने का माध्यम है।
Q. गुरु प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है?
Ans. गुरु प्रदोष व्रत की पूजा विधि में पूजा स्थल की सफाई, शिवलिंग और अन्य पूजन सामग्री की स्थापना, भगवान शिव और माता पार्वती को फूल, धूप आदि अर्पित करना और मंत्रों व प्रार्थनाओं का पाठ करना शामिल है। भक्त पूजा के दौरान शिव तांडव स्तोत्रम और महा मृत्युंजय मंत्र का भी जाप करते हैं।
Q. गुरु प्रदोष व्रत करने से क्या लाभ होते हैं?
Ans. गुरु प्रदोष व्रत करने से आशीर्वाद, समृद्धि और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। यह जीवन की बाधाओं और चुनौतियों को पार करने तथा शत्रुओं पर विजय पाने में भी मददगार होता है। विवाहित महिलाएं सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए शिव-पार्वती का आशीर्वाद पाने हेतु यह व्रत करती हैं।