Guru Purnima Vrat 2024: गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)- एक ऐसा पावन त्योहार जो हमारी आध्यात्मिक और शैक्षणिक यात्रा में मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले गुरुजनों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
यह वह दिन है जब हम अपने जीवन में ज्ञान के प्रकाश फैलाने वाले गुरुओं को नमन करते हैं और उनके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देते हैं। चाहे वह हमारे आध्यात्मिक गुरु हों, अकादमिक शिक्षक हों या फिर जीवन के किसी भी क्षेत्र में हमें सही दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक – गुरु पूर्णिमा उन सभी को सम्मानित करने का दिन है। गुरु शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है अंधकार या अज्ञान को दूर करने वाला। वास्तव में, एक सच्चा गुरु हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। वह हमारे भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानता है, हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और हमारे जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है। ऐसे में, गुरु पूर्णिमा का त्योहार हमें अपने गुरुजनों के प्रति आभार प्रकट करने और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान व मार्गदर्शन को याद करने का अवसर देता है।
इस लेख में, हम गुरु पूर्णिमा के महत्व, इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं, और इस दिन को मनाने के विभिन्न तरीकों पर गहराई से चर्चा करेंगे…
Also Read:- साल की सभी पूर्णिमा का है बेहद खास महत्व, जानिए कब-कब मनाया जाएगा यह बेहद खास त्यौहार
Table Of Content
गुरु पूर्णिमा क्या है? (Guru Purnima kya Hai)
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण दिवस है, जिसे आध्यात्मिक गुरुओं और ज्ञान की खोज के प्रति आदर के रूप में मनाया जाता है। यह दिन गुरुओं की महत्ता का सम्मान करने और आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास की ओर मार्गदर्शन के लिए उनके महत्व को मान्यता देने के लिए समर्पित होता है। गुरु पूर्णिमा के दिन, शिष्य अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन की कामना करते हैं। इसे अदियोगी शिव, पहले योगी और पहले गुरु के रूप में मनाया जाता है।
Also Read:- क्या होती वैशाख पूर्णिमा? इसे क्यों मनाया जाता है? जाने इसका महत्व
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? (Why Guru Purnima is Celebrated)
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) भारत में अपने आध्यात्मिक या अकादमिक गुरुओं के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व है। हिंदू परंपरा के अनुसार आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था और उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरु पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) ने सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था। बौद्ध धर्म में भी इसे भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के पहले उपदेश की याद में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है? (When Is Guru Purnima Celebrated)
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima), एक श्रद्धापूर्ण और आध्यात्मिक हिन्दू त्योहार है, जिसे आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है। यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए समर्पित होता है। 2024 में, गुरु पूर्णिमा का आयोजन 21 जुलाई को होगा। इस दिन, भक्तगण अपने गुरुओं को पूजा और प्रार्थना द्वारा सम्मानित करते हैं, उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन की कामना करते हैं। यह दिन नई यात्राओं की शुरुआत, दान करने, और गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है।
Also Read:- अगर वैशाख पूर्णिमा पर करेंगे ये उपाय तो मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा और होगी धन की वर्षा
गुरु पूर्णिमा का महत्व (Guru Purnima Significance)
गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका विशेष महत्व है। इसका महत्व निम्नलिखित दो बिंदुओं से समझा जा सकता है:
आध्यात्मिक महत्व:
- गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का सबसे बड़ा महत्व इसके आध्यात्मिक पक्ष में निहित है। यह दिन आदि गुरु भगवान शिव को समर्पित है, जिन्होंने योग विज्ञान की शुरुआत की थी। मान्यता है कि इस दिन मानव प्रणाली में ऊर्जा का प्रवाह अलग होता है जो आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए आदर्श होता है। साधगुरु के अनुसार, “गुरु पूर्णिमा के दिन, सात ऋषियों या सप्तर्षियों को भगवान शिव (Lord Shiva) द्वारा योग विज्ञान में दीक्षित किया गया था।” इसलिए यह दिन आध्यात्मिक विकास और ज्ञानोदय के लिए शुभ माना जाता है। शिष्य अपने गुरु की पूजा करके, कृतज्ञता व्यक्त करके और आशीर्वाद लेकर इस दिन मनाते हैं।
शैक्षणिक महत्व:
- गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण है। प्राचीन भारत में इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को सम्मान स्वरूप उपहार देते थे। आज भी यह परंपरा जारी है। विद्यार्थी अपने शिक्षकों को सम्मानित करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। “गुरु पूर्णिमा नई पाठ्यक्रम या परियोजनाओं को शुरू करने के लिए शुभ मानी जाती है। कई शैक्षणिक संस्थान इस अवसर को चिह्नित करने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं।” इस प्रकार यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा और ज्ञान प्रदान करने में गुरुओं की भूमिका का जश्न मनाता है।
गुरु पूर्णिमा पर क्या करें? (What To Do On Guru Purnima)
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के पावन अवसर पर हमें अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। इसके लिए हम गुरु की पूजा कर सकते हैं, उनका आशीर्वाद ले सकते हैं और श्रद्धा से उनकी शिक्षाओं को सुन सकते हैं। गुरु की पूजा करते समय मंत्रोच्चारण, स्तुति और प्रार्थना भी करनी चाहिए। साथ ही सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक स्वरूप गुरु को उपहार भी दे सकते हैं। इस दिन व्रत रखना भी शुभ माना जाता है जिससे आशीर्वाद और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। संक्षेप में, गुरु पूर्णिमा गुरु-शिष्य संबंध को मनाने और एक संतुष्ट एवं प्रबुद्ध जीवन के लिए गुरु का आशीर्वाद पाने का दिन है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास क्या है? (History of Guru Purnima)
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व महर्षि वेद व्यास के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वे भगवान विष्णु के अंश माने जाते हैं। उनके पिता ऋषि पराशर और माता सत्यवती थीं। बाल्यकाल से ही अध्यात्म के प्रति गहन रुचि रखते हुए, वेद व्यास ने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा व्यक्त की। उनकी माता ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन वेदव्यास के हठ के आगे झुककर उन्होंने अनुमति दे दी, बशर्ते वेदव्यास घर की याद आते ही वापस लौट आएं। वन में जाकर कठोर तपस्या करने के पश्चात, वेदव्यास lको संस्कृत भाषा में प्रवीणता प्राप्त हुई। इस अद्वितीय ज्ञान के फलस्वरूप उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया, महाभारत और अठारह महापुराणों की रचना की, तथा ब्रह्मास्त्र का वरदान प्राप्त किया।
ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास आज भी किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं। हिंदू धर्म में वेदव्यास को भगवान के रूप में पूजा जाता है और वेदों का अध्ययन करने से पहले उनका स्मरण किया जाता है। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर, महर्षि वेदव्यास की पूजा करके उनके महान कार्यों को याद करें। उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें आपके भविष्य को बेहतर बना सकती हैं। इस दिन, महर्षि वेदव्यास के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करें और उनके योगदानों को समझें, जो आज भी हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में अद्वितीय स्थान रखते हैं।
Also Read:- वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा क्या है? जानें व्रत कथा नियम, मुहूर्त, पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा की कहानी (Guru Purnima Story)
कहते हैं कि सृष्टि के पहले गुरु भगवान देवाधिदेव महादेव हैं। एक बार, जब भगवान शिव गहन ध्यान में मग्न थे, सप्तऋषि उनके पास पहुँचे। उन्होंने शिव से प्रार्थना की कि वे उन्हें योग का मार्ग सिखाएं ताकि वे संसार को निरोगी और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखा सकें। इस पर शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें योग के चार प्रमुख मार्ग बताए: कर्मयोग, भक्ति योग, राजयोग, और ज्ञान योग। जिस दिन शिव ने उन्हें योग की शिक्षा देनी शुरू की, वह पूर्णिमा की तिथि थी। तभी से, अपने गुरु को सम्मानित करने के लिए, इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
भगवान आदियोगी शिव ने अपनी ध्यान मुद्रा से जागृत होकर सप्तऋषियों को योग के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। इन चार मार्गों ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया। कर्मयोग ने कर्म में कुशलता और निस्वार्थ सेवा का महत्व बताया, भक्ति योग ने ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण सिखाया, राजयोग ने मन को नियंत्रित करने की कला सिखाई और ज्ञान योग ने सत्य की खोज में बुद्धि और विवेक का मार्ग दिखाया।
गुरु पूर्णिमा का दिन, तब से आज तक, ज्ञान और गुरु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक बन गया है, जब आदि गुरु शिव ने अपने शिष्यों को आध्यात्मिकता का अमूल्य ज्ञान दिया।
Also Read:- बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर अपने परिजनों को भेजें ये शुभकामनाएं संदेश
गुरु पूर्णिमा का समय (Guru Purnima Time)
आषाढ़ पूर्णिमा का पावन पर्व इस वर्ष 20 जुलाई को भारतीय समयानुसार शाम 5 बजकर 59 मिनट से आरंभ होकर 21 जुलाई को संध्याकाल 3 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगा। पंचांग के अनुसार, इस अवधि में उदया तिथि का विशेष महत्व होता है, जिसके चलते गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा और व्यास जयंती का यह महोत्सव 21 जुलाई को मनाया जाएगा।
20 जुलाई | 5 बजकर 59 मिनट |
21 जुलाई | 3 बजकर 46 मिनट |
गुरु पूर्णिमा उत्सव (Guru Purnima Celebration)
गुरु पूर्णिमा का उत्सव भारत में हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करते हैं। वे गुरु के चरणों में बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें फूल-माला चढ़ाते हैं। शिष्य गुरु को उपहार देते हैं और उनके उपदेशों का स्मरण करते हैं। मंदिरों और आश्रमों में विशेष पूजा और प्रवचन का आयोजन किया जाता है। गुरु पूर्णिमा को योग साधना और ध्यान के लिए विशेष शुभ माना जाता है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा का प्रतीक है और ज्ञान के प्रसार का उत्सव है।
Also Read:- बुद्ध पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती हैं? जानें इतिहास और महत्व
Conclusion:-
गुरु पूर्णिमा का यह त्योहार हमें अपने गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का शुभ अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें स्मरण दिलाता है कि हमारे जीवन में गुरुओं का स्थान अद्वितीय है और उनके मार्गदर्शन के बिना सफलता का पथ प्रशस्त नहीं हो सकता। गुरु पूर्णिमा के पावन त्यौहार से संबंधित यह बेहद विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो ऐसे ही और भी व्रत एवं प्रमुख हिंदू त्योहार से संबंधित विशेष लेख हमारी वेबसाइट पर आकर जरूर पढ़ें और हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर भी रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. गुरु पूर्णिमा क्या है?
Ans. गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है जो आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं को सम्मान देने के लिए समर्पित है। यह हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में पड़ता है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
Q. गुरु पूर्णिमा 2024 कब है?
Ans. 2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी।
Q. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा क्यों कहा जाता है?
Ans. हिंदू मिथकों के अनुसार, गुरु पूर्णिमा प्राचीन ऋषि महर्षि वेद व्यास का जन्मदिन माना जाता है, जिन्होंने महाभारत की रचना की और चार वेदों को लिपिबद्ध किया। इस दिन को उनके सम्मान में व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
Q. गुरु पूर्णिमा का हिंदू धर्म में क्या महत्व है?
Ans. हिंदू धर्म में गुरु को भगवान के समान माना जाता है। गुरु को अज्ञानता के अंधकार को दूर करने और शिष्य को ज्ञान प्रदान करने वाला माना जाता है। गुरु पूर्णिमा गुरु की पूजा करने और अपने शिक्षकों व मार्गदर्शकों के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है।
Q. गुरु का भारतीय दर्शन में क्या महत्व है?
Ans. भारतीय दर्शन में गुरु की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है। यह माना जाता है कि गुरु के मार्गदर्शन के बिना सच्चा ज्ञान और बुद्धि प्राप्त करना असंभव है। कबीर के दोहे में इस विचार पर जोर दिया गया है कि गुरु के बिना ज्ञान उत्पन्न नहीं होता, मोक्ष प्राप्त नहीं होता, सत्य को पहचाना नहीं जा सकता और दोष मिटाए नहीं जा सकते।
Q. गुरु पूर्णिमा बौद्ध परंपरा में कैसे मनाई जाती है?
Ans. बौद्ध परंपरा में गुरु पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण की याद में मनाया जाता है। माना जाता है कि बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ, उत्तर प्रदेश में अपना पहला उपदेश दिया था।