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Mahesh Navami: क्या है महेश नवमी की व्रत कथा के नियम और महत्व? जानिए इस लेख में

Mahesh Navami
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Mahesh Navami: हिंदू धर्म में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व है – महेश नवमी। यह भगवान शिव की आराधना का दिन है, जब शिवभक्त पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से महादेव की पूजा अर्चना करते हैं। महेश नवमी का यह पावन पर्व ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।

महेश नवमी (Mahesh Navami) का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे जिन्हें एक बार ऋषियों के श्राप से भगवान शिव ने मुक्त किया था। महादेव (Lord Shiva) ने उन्हें अहिंसा का मार्ग दिखाया और अपनी कृपा से ‘माहेश्वरी’ नाम प्रदान किया। महेश नवमी (Mahesh Navami) के दिन शिवभक्त व्रत रखते हैं और भोलेनाथ का विशेष रूप से जलाभिषेक करते हैं। शिवलिंग पर बेलपत्र, फूल, धतूरा आदि अर्पित करके उनका पूजन किया जाता है। शिव मंत्रों और चालीसा के पाठ से भगवान शंकर को प्रसन्न किया जाता है। इस पावन दिन का श्रद्धालुओं के जीवन में गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि शिव तत्व के प्रति समर्पण और आत्मिक उत्थान का प्रतीक भी है। महेश नवमी हमें भगवान शिव की असीम कृपा और उनके प्रति अटूट भक्ति का स्मरण कराती है।

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इस लेख में हम महेश नवमी (Mahesh Navami) के धार्मिक-सांस्कृतिक पहलुओं और इसे मनाने के विधि-विधानों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे…

Table Of Content 

S.NOप्रश्न
1महेश नवमी कब है
2महेश नवमी क्या है
3महेश नवमी का महत्व
4महेश नवमी के फायदे
5महेश नवमी व्रत नियम
6महेश नवमी व्रत कथा
7महेश नवमी व्रत कथा पीडीएफ
8महेश नवमी पारण समय

महेश नवमी कब है? (Mahesh Navami kab Hai)

महेश नवमी (Mahesh Navami), महेश्वरी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण दिन, हिन्दू मास ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस वर्ष, यह उत्सव 15 जून 2024 को मनाया जाएगा। इस दिवस, भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है और महेश्वरी समाज की उत्पत्ति का समारोह किया जाता है।

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महेश नवमी क्या है? (What is  Mahesh Navami)

महेश नवमी (Mahesh Navami), ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मनाया जाने वाला पर्व, महेश्वरी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का दिन है और समुदाय की उत्पत्ति को चिन्हित करता है। साल 2024 में, महेश नवमी 15 जून को मनाई जाएगी, इस दिन विशेष प्रार्थनाएं और अनुष्ठान होते हैं, और महेश्वरी समुदाय के सदस्य “बाबा की झांकी” भी करते हैं।

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महेश नवमी का महत्व (Mahesh Navami Significance) 

महेश नवमी (Mahesh Navami) के त्यौहार का महत्व निम्नलिखित दो बिंदुओं में समझाया जा सकता है:

  • माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का दिन: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माहेश्वरी वंश की उत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी। कथा के अनुसार राजा खड्गलसेन के पुत्र सुजान कुँवर पर एक ऋषि ने क्रोधवश श्राप दे दिया था, जिससे वह और उनके सैनिक पत्थर हो गए थे। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से उन्हें पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज का उद्भव हुआ । तब से हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को महेश नवमी के रूप में माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस मनाया जाता है। यह दिन माहेश्वरी समुदाय के लोगों के लिए एकता और सम्मान का प्रतीक है।
  • शिव-पार्वती की आराधना का पर्व: महेश नवमी (Mahesh Navami) का त्योहार मुख्य रूप से भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। इस दिन भक्त शिव मंदिरों में जाकर भगवान महेश की महाआरती करते हैं और महेश वंदना का गायन करते हैं। महेश नवमी पर विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं तथा शोभायात्रा निकाली जाती है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सेवा, त्याग और धार्मिकता का संदेश फैलाना है। शिव-पार्वती की कृपा से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

अतः महेश नवमी (Mahesh Navami) का त्योहार एक ओर जहाँ माहेश्वरी समाज के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है, वहीं दूसरी ओर यह शिव-शक्ति की आराधना का पावन पर्व भी है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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महेश नवमी के फायदे (Mahesh Navami Benefits)

  • महेश नवमी (Mahesh Navami) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। 
  • इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • महेश नवमी के दिन शिवलिंग पर जल, दूध, भांग और बेलपत्र चढ़ाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। 
  • इस दिन 21 बेलपत्र पर ‘ॐ’ लिखकर चढ़ाने से इच्छित फल प्राप्त होता है। 
  • महेश नवमी का व्रत करने से शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। 
  • इस दिन दान-पुण्य करने से भी पुण्य फल मिलता है।

महेश नवमी व्रत नियम (Mahesh Navami Fasting Rules)

महेश नवमी व्रत (Mahesh Navami Vrat) को मनाने के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं:

  • प्रातः स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • निकटतम शिव मंदिर जाकर भगवान शिव को दूध, फूल, बेल पत्र अर्पित करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
  • व्रत के दौरान एक समय भोजन करें। भोजन में फलाहार या सात्विक आहार लें। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का सेवन न करें।
  • दिन भर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करें। शिव चालीसा, शिव पुराण आदि का पाठ करें।
  • महेश नवमी की कथा सुनें। महेश नवमी की व्रत कथा सुनने से आपको भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होगी।
  • सायंकाल शिव मंदिर जाकर महाआरती में शामिल हों। शिव जी की वंदना का गायन करें।
  • रात्रि में जागरण करें। भगवान शिव के गुणों का स्मरण करते हुए भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन प्रातः स्नान के बाद व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।

महेश नवमी (Mahesh Navami) के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Goddess Parvati) की विधिवत पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत विशेष रूप से माहेश्वरी समाज के लिए महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का आविर्भाव हुआ था, इसलिए इसे महाशिवजयंती भी कहा जाता है।

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महेश नवमी व्रत कथा (Mahesh Navami Vrat katha)

बहुत समय पहले खडगलसेन नामक एक प्रतापी राजा राज करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। पुत्रकामेष्टी यज्ञ से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम कुंवर सुजान रखा गया। ऋषियों ने राजा को चेतावनी दी कि 20 वर्ष तक पुत्र को उत्तर दिशा में न जाने दें।

एक दिन राजकुमार शिकार खेलते हुए उत्तर दिशा में सूरज कुण्ड की ओर चला गया। वहां कुछ ऋषियों को यज्ञ करते देख वह क्रोधित हो गया और सैनिकों से यज्ञ में विघ्न डलवाया। इससे क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दे दिया जिससे राजकुमार और सभी सैनिक पत्थर बन गए। यह समाचार सुनकर राजा खडगलसेन का निधन हो गया और सभी रानियां विधवा हो गईं। राजकुमार की पत्नी चंद्रावती अन्य सैनिकों की पत्नियों के साथ ऋषियों के पास गई और क्षमा याचना की। ऋषियों ने उन्हें उमापति भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा करने को कहा। रानी चंद्रावती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषियों के श्राप को निष्फल कर दिया और उसे अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया। राजकुमार सुजान ने सभी सैनिकों के साथ क्षत्रिय धर्म त्याग दिया और व्यापार करने लगे। वे भगवान शिव के नाम पर माहेश्वरी कहलाने लगे। तभी से माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का पर्व मनाया जाने लगा।

महेश नवमी (Mahesh Navami) माहेश्वरी समाज का प्रमुख पर्व है जो हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के आशीर्वाद से माहेश्वरी समाज की स्थापना हुई थी। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तों का विश्वास है कि पूरी श्रद्धा और निष्ठा से इस व्रत को करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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महेश नवमी व्रत कथा पीडीएफ (Mahesh Navami vrat katha PDF)

महेश नवमी (Mahesh Navami) की पावन व्रत कथा से संबंधित यह विशेष पीडीएफ (PDF) हम आपसे साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करके आप महेश नवमी की व्रत कथा का आनंद ले सकते हैं।

महेश नवमी पारण समय (Mahesh Navami Parana Time)

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 15 जून को रात 12:03 बजे शुरू होगी और 16 जून को रात 2:32 बजे समाप्त होगी। 15 जून को महेश नवमी (Mahesh Navami) मनाई जाएगी। इसी दिन सूर्य देव का राशि परिवर्तन भी होगा। इसके बाद, 16 जून को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। महेश नवमी का पर्व भगवान शिव के उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है, जबकि गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी की पूजा और स्नान का विशेष महत्व है।

Conclusion:-

शिव और माहेश्वरी समुदाय के महत्व का प्रतीक है। यह पवित्र अवसर भक्तों को भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद का अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है। महेश नवमी की पावन त्योहार से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो हमारे अन्य सभी त्योहार और व्रत से संबंधित लेख भी जरूर पढ़िए और ऐसे ही ज्ञानवर्धक लेख के लिए हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in पर रोजाना विजिट भी करिए।

FAQ’s

Q. महेश नवमी क्या है? 

Ans. महेश नवमी (Mahesh Navami) हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला एक पावन त्योहार है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। माहेश्वरी समाज में यह दिन उनकी वंशोत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है।

Q. महेश नवमी कब मनाई जाती है? 

Ans. महेश नवमी (Mahesh Navami) प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह तिथि मई या जून के महीने में पड़ती है। इस वर्ष 2022 में महेश नवमी 9 जून को मनाई गई।

Q. महेश नवमी का क्या महत्व है? 

Ans. महेश नवमी (Mahesh Navami) का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करने से जीवन में सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। माहेश्वरी समाज के लिए यह दिन उनके पूर्वजों की उत्पत्ति का प्रतीक है।

Q. महेश नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है? 

Ans. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय थे जिन्हें एक बार शिकार के दौरान ऋषियों ने श्राप दे दिया था। भगवान शिव ने इस दिन उन्हें श्राप से मुक्त किया और उनकी रक्षा की। शिव जी ने उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग दिखाया और अपनी कृपा से उन्हें माहेश्वरी नाम दिया।

Q. महेश नवमी पर कैसे की जाती है पूजा? 

Ans. महेश नवमी के दिन प्रातः स्नान के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की जाती है। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाया जाता है। शिव मंत्रों और स्तोत्रों का पाठ किया जाता है। भक्तिभाव से महेश वंदना की जाती है।

Q. महेश नवमी पर कौन से मंत्रों का जाप किया जाता है? 

Ans. महेश नवमी पर भगवान शिव के इन मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है – ॐ नमः शिवाय, ॐ नमो भगवते रुद्राय, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा।