मोरयाई छठ व्रत कथा (Moriyai Chhath Vrat Katha): मोरयाई छठ (Moriyai Chhath Vrat) – एक ऐसा पर्व जो हिंदू धर्म में अपनी अटूट आस्था और महिमा के लिए जाना जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और इसका संबंध देवी ललिता से माना जाता है।
मोरयाई छठ को संतान सुख और उनकी लंबी आयु के लिए विशेष महत्व दिया गया है। इस व्रत को करने से भक्तों पर माता की कृपा बनी रहती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि मोरयाई छठ व्रत की उत्पत्ति कैसे हुई? देवी ललिता का इस व्रत से क्या संबंध है? और इस व्रत को करने का क्या महत्व है? आइए इस लेख में हम इन सभी सवालों के जवाब जानने का प्रयास करते हैं और समझते हैं कि क्यों हर साल लाखों श्रद्धालु इतनी श्रद्धा और निष्ठा के साथ मोरयाई छठ व्रत को करते हैं। इस व्रत की पौराणिक कथा बेहद रोचक है और इससे जुड़ी कई मान्यताएं हैं जो इस पर्व को और भी खास बनाती हैं।
तो चलिए शुरू करते हैं मोरयाई छठ की इस अद्भुत यात्रा को और जानते हैं इससे जुड़े रहस्यों के बारे में…
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मोरयाई छठ व्रत क्या है? (Moriyai Chhath Vrat Kya Hai)
मोरयाई छठ व्रत (Moriyai Chhath Vrat) एक विशेष हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान है जिसे भारत में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इसे सूर्य षष्ठी व्रत या मोर छठ के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन भगवान सूर्य की उपासना और व्रत रखने के लिए विशेष महत्व रखता है। इस व्रत के दिन, भक्त भगवान सूर्यदेव को लाल रंग अधिक प्रिय होने के कारण, गुलाल, लाल चंदन, लाल पुष्प, केसर, लाल कपड़ा, लाल फल, लाल रंग की मिठाई अर्पित करते हैं।
मोरयाई छठ व्रत कथा (Moriyai Chhath Vrat Katha)
पौराणिक कथाओं में देवी ललिता को आदिशक्ति का स्वरूप माना गया है, जिनका उल्लेख देवी पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार, नैमिषारण्य में एक महायज्ञ का आयोजन हो रहा था, जहां दक्ष प्रजापति के आगमन पर सभी देवता सम्मान में उठ खड़े हुए, परंतु भगवान शंकर ने ऐसा नहीं किया। इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब मां सती को इसका पता चला, तो वे बिना भगवान शंकर की अनुमति के अपने पिता दक्ष के घर पहुंच गईं। यज्ञ के दौरान अपने पिता द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनने के बाद, मां सती ने स्वयं का अपमान महसूस किया और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान शंकर को जब इस दुखद घटना का पता चला, तो वे मां सती के वियोग में व्याकुल हो उठे। उन्होंने मां सती के शरीर को अपने कंधे पर रखकर पूरे ब्रह्मांड में उन्मत्त अवस्था में घूमना शुरू कर दिया। उनके इस उन्माद से सृष्टि की समूची व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरकर शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा, जो लिंगधारिणी शक्तिपीठ के रूप में पूजित है, जहां भगवान शिव भी लिंग स्वरूप में विराजमान हैं। इस स्थल पर मां ललिता देवी का मंदिर स्थित है, जहां प्रवेश द्वार पर पंचप्रयाग तीर्थ भी मौजूद है। इस मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर को ह्रदय में धारण करने के कारण मां सती को यहां ललिता देवी के नाम से जाना जाने लगा।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, देवी ललिता तब प्रकट हुईं जब ब्रह्माजी द्वारा छोड़े गए चक्र से पाताल का अंत होने लगा। यह दृश्य देखकर ऋषि-मुनि घबरा गए, क्योंकि संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगी थी। तब उन्होंने देवी ललिता की उपासना की, और उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं और विनाशकारी चक्र को रोक दिया।
मोरयाई छठ व्रत कथा पीडीएफ (Moriyai Chhath Vrat Katha PDF)
मोरयाई छठ व्रत कथा PDF Download | View Kathaमोरयाई छठ (Moriyai Chhath) व्रत से संबंधित इस लेख के जरिए हम आपसे मोरयाई छठ व्रत की संपूर्ण कथा पीडीएफ में साझा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड करके मोरयाई छठ व्रत कथा को सरलता पूर्वक पढ़ सकते हैं।
Conclusion:-Moriyai Chhath Vrat Katha
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FAQ’s
Q. मोरियाई छठ व्रत कथा क्या है?
Ans.मोरियाई छठ व्रत कथा एक पौराणिक कथा है जो मोरियाई देवी के शक्ति और करुणा को दर्शाती है। इस कथा के अनुसार, एक बार एक गाँव में एक दंपति को संतान सुख नहीं था। उन्होंने देवी मोरियाई की पूजा की और श्रद्धा के साथ व्रत किया। देवी की कृपा से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई। इस कथा का श्रवण करने और व्रत का पालन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
Q. मोरियाई छठ व्रत में क्या खाना चाहिए?
Ans.मोरियाई छठ व्रत में फल, दूध, और सादे खाने का सेवन किया जा सकता है। कई लोग इस व्रत में सिर्फ जल का सेवन करते हैं, जबकि कुछ लोग फलाहार लेते हैं। पूजा के बाद व्रत खोलने के लिए प्रसाद का सेवन किया जाता है।
Q. मोरियाई छठ व्रत का समापन कैसे होता है?
Ans.मोरियाई छठ व्रत का समापन देवी की आरती और प्रसाद वितरण के साथ होता है। पूजा के बाद व्रतधारी देवी की कथा सुनते हैं और उन्हें धूप, दीप, और फूल अर्पित करते हैं। इसके बाद प्रसाद का सेवन किया जाता है और व्रत समाप्त होता है।
Q. मोरयाई छठ व्रत किस दिन मनाया जाता है?
Ans. मोरयाई छठ व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
Q. मोरयाई छठ व्रत को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
Ans. मोरयाई छठ व्रत को सूर्य षष्ठी व्रत या मोर छठ के नाम से भी जाना जाता है।
Q. मोरियाई छठ व्रत की महत्ता क्या है?
Ans.मोरियाई छठ व्रत का धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह व्रत करने से देवी की कृपा से भक्तों को संतान सुख, लंबी आयु, और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान भी होता है।