Poornima vrat ka udyapan: हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। हर महीने की पूर्णिमा (Purnima) को भी शुभ माना जाता है और इस दिन व्रत रखने का विधान है। पूर्णिमा व्रत रखकर भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की कामना करते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ व्रत रखना ही काफी नहीं होता? व्रत का विधिवत उद्यापन करना भी उतना ही जरूरी है। कहा जाता है कि व्रत का उद्यापन न करने से व्रत अधूरा रह जाता है, और इससे व्रत का पूरा फल नहीं मिल पाता। इसलिए व्रत रखने के साथ-साथ उसका शास्त्रोक्त विधि से उद्यापन करना भी अति आवश्यक है। पूर्णिमा व्रत का उद्यापन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और उस पर देवी-देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है। लेकिन बहुत से लोगों को पूर्णिमा व्रत के उद्यापन की सही विधि पता नहीं होती। वे अनजाने में कुछ गलतियां कर बैठते हैं जिससे व्रत का असर कम हो जाता है। इसलिए हम आपको इस लेख के माध्यम से पूर्णिमा व्रत उद्यापन की पूरी विधि, नियम, सामग्री और महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे। तो चलिए शुरू करते हैं ये सफर पूर्णिमा व्रत के उद्यापन का…!!
पूर्णिमा व्रत का उद्यापन – Overview
क्या होता है पूर्णिमा व्रत का उद्यापन (What is Poornima Vrat Udyapan)
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का उद्यापन पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। इस दिन भक्त चंद्र देव और भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूर्णिमा व्रत में सुबह स्नान करने के बाद चंद्र देव और शिव जी को अर्घ्य देते हैं। ‘ॐ सोम सोमाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करते हुए चंद्र देव को प्रार्थना करते हैं और ‘ॐ उमाय नमः’ मंत्र से शिव जी की आराधना करते हैं। इससे शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति मिलने का विश्वास है। इस दिन लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। पितृ तर्पण, दान और यज्ञ जैसे अन्य अनुष्ठान भी किए जाते हैं। पूर्णिमा व्रत को विवाह, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों के लिए भी उत्तम माना जाता है।
क्या है, उद्यापन का महत्व (Udyapan Importance)
आध्यात्मिक उन्नति: पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का पालन करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है और मन को शांत रखने का प्रयास किया जाता है। व्रत के दौरान ईश्वर का ध्यान करने और मंत्रों का जाप करने से आत्मा को शुद्ध करने में मदद मिलती है। पूर्णिमा पर किए गए उपवास और पूजा-पाठ से मन की शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मनोकामनाओं की पूर्ति: पूर्णिमा (Purnima) के दिन व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास किया जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा का पाठ करने से सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कथा में एक गरीब ब्राह्मण शतानंद द्वारा सत्यनारायण व्रत करने से उसे समृद्धि और मुक्ति मिलने का उल्लेख है। इसी प्रकार लकड़हारा और राजा उल्कामुख ने भी व्रत कर अपने कष्टों से मुक्ति पाई थी।
सामाजिक एकता को बढ़ावा: पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का पालन करने से सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। इस दिन लोग एक साथ मिलकर व्रत का पालन करते हैं और एक-दूसरे को मिठाइयां और उपहार देकर शुभकामनाएं देते हैं। इससे समाज में प्रेम और सद्भाव का माहौल बनता है। व्रत में सभी वर्ग और लिंग के लोग भाग ले सकते हैं, जिससे सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलता है।
क्यों किया जाता है, पूर्णिमा व्रत का उद्यापन (Why is Udyapan of Purnima Fast Done)
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का उद्यापन कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा को विशेष धार्मिक महत्व दिया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा (Purnima) के दिन व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने से सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किये गए सभी शुभ कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है।]
पूर्णिमा व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए (When To Do Purnima Vrat Udyapan)
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का उद्यापन प्रत्येक हिंदू कैलेंडर के महीने की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। विशेष रूप से मार्गशीर्ष, माघ, वैशाख या आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को इस व्रत को शुरू करने का शुभ समय माना जाता है। व्रत 16 लगातार पूर्णिमा तक किया जाता है और अंतिम दिन हवन का आयोजन किया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu), शिव (Lord Shiva) और माता लक्ष्मी (Goddess Laxmi) की पूजा से जुड़ा हुआ है।
पूर्णिमा व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है (Poornima Vrat kaise kiya Jata Hai)
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat), हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण और पवित्र रिवाज है। यह व्रत मासिक रूप से चांद की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे मनाने की प्रक्रिया निम्नलिखित है:
पूजा की तैयारी: पूर्णिमा (Purnima) के दिन सुबह जल्दी उठें और नहाएं। स्वच्छ कपड़े पहनें और सुनिश्चित करें कि आप जिस स्थान पर पूजा कर रहे हैं, वह स्वच्छ और सुव्यवस्थित है।
पूजा थाली की स्थापना: एक पान के पत्ते, एक नारियल, कुछ फूल, अगरबत्ती, एक छोटी दीया (तेल की लौ), और कुछ मिठाई एक थाली पर रखें। यह आपकी पूजा थाली होगी।
देवताओं का आह्वान: पूजा शुरू करने के लिए देवताओं का आह्वान करें। अगरबत्ती और दीया जलाएं, और देवताओं को फूल और मिठाई चढ़ाएं। निम्नलिखित मंत्र का जाप करें: “ॐ सोम सोमाय नमः।”
चांद को जल अर्पित करें: पूजा के बाद, बाहर जाएं और चांद को जल अर्पित करें। एक छोटे बर्तन में जल भरें और उसमें गंगाजल (गंगा नदी का पवित्र जल) की कुछ बूंदें डालें। निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए चम्मच से चांद पर जल चढ़ाएं: “ॐ चन्द्रय विद्महे, अमृत तत्वाये धीमहि, तन्नो चन्द्र प्रचोदयात।
तर्पण करें: चांद को जल चढ़ाने के बाद, अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करें, जिसे मान्यता है कि यह स्वर्गीय आत्माओं को शांति और खुशी प्रदान करता है।
व्रत तोड़ें: अंत में, एक साधारण भोजन करके व्रत तोड़ें। इस दिन शाकाहारी भोजन करने की सिफारिश की जाती है।
पूर्णिमा व्रत उद्यापन विधि (Poornima Vrat Udyapan Vidhi)
पूर्णिमा (Purnima) के दिन व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। फिर चंद्रमा देव की पूजा करें, उन्हें फूल, चंदन और अक्षत अर्पित करें। ब्राह्मणों को भोजन और दान दें। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करें। कुछ लोग इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा और पूजा भी करते हैं। श्रावण पूर्णिमा पर उपनयन और यज्ञोपवीत संस्कार किए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में काजरी पूर्णिमा और नारियल पूर्णिमा भी मनाई जाती है। पूर्णिमा व्रत का उद्यापन करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है।
पूर्णिमा व्रत उद्यापन सामग्री (Poornima Vrat Udyapan Samagri List)
S.NO | उद्यापन सामग्री |
1 | पूजा थाली |
2 | देवता की तस्वीर या मूर्ति |
3 | धूप, कपूर और दीपक |
4 | गंगाजल या पवित्र जल |
5 | पुष्प, फल और मिठाई |
6 | पवित्र धागा या माला |
7 | घंटी |
8 | चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत |
9 | नारियल और पान के पत्ते |
11 | व्रत कथा पुस्तक |
पूर्णिमा व्रत उद्यापन नियम (Poornima Vrat Udyapan Niyam)
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) के उद्यापन के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं:
स्नान और पूजा: उद्यापन के दिन प्रातः काल स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। फिर भगवान शिव (Lord Shiva), विष्णु (Lord Vishnu) और चंद्रमा की पूजा-अर्चना करें। पूजा में फूल, फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं और मन से उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करें।
दान-पुण्य: व्रत के उद्यापन पर जरूरतमंद लोगों को अन्न, वस्त्र, दवाई आदि दान करना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मन प्रसन्न रहता है।
प्रसाद ग्रहण: उद्यापन के दिन व्रती को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। प्रसाद में खीर, पूड़ी, हलवा आदि बनाकर सबको बांटना शुभ माना जाता है।
व्रत कथा श्रवण: पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) की समाप्ति पर व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे व्रत का महत्व और फल की प्राप्ति का ज्ञान होता है।
भोग-विलास त्याग: व्रत के दौरान और उद्यापन के दिन भोग-विलास का त्याग करना चाहिए। संयमित जीवन जीकर पवित्र भावों से व्रत का पालन करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा व्रत का उद्यापन किस महीने में करना चाहिए
पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat) का उद्यापन विशेषत: मार्गशीर्ष (अगहन), माघ, वैशाख के महीनों में करना इच्छित होता है। यह व्रत चुने हुए पूर्णिमा दिवस से शुरू होता है और अगले 15 दिनों तक चलता है, अगले पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस व्रत के दौरान, भक्तगण प्रतिदिन भगवान शिव (Lord Shiva) और देवी पार्वती (Goddess Parvati) की पूजा करते हैं, और इसके अंतिम दिन परिवार के सभी सदस्यों के साथ एक शानदार पूजा का आयोजन करते हैं।
Conclusion
पूर्णिमा (Purnima Vrat) का व्रत आध्यात्मिक विकास और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का एक शानदार अवसर है। यह व्रत हमें अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने, मन को शुद्ध करने और पुण्य अर्जित करने की प्रेरणा देता है। वैशाख पूर्णिमा से संबंधित यह विशेष लेख अपने सभी मित्र गणों एवं प्रिय जनों के साथ भी साझा करें ताकि यह जानकारी उन तक पहुंच सके। ऐसे ही और भी विभिन्न व्रत कथा और व्रत से संबंधित जानकारियां प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर भी रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. वैशाख पूर्णिमा व्रत का उद्यापन कब किया जाता है?
Ans. वैशाख पूर्णिमा व्रत का उद्यापन सामान्यतः 32 पूर्णिमा व्रत पूरे होने के बाद ज्येष्ठ माह या किसी भी पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इसमें चतुर्दशी के दिन उपवास रखा जाता है और रात्रि में जागरण किया जाता है।
Q. उद्यापन में किन देवताओं की पूजा की जाती है?
Ans. उद्यापन में भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है। इसके लिए मिट्टी के कलश में जल भरकर उसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है और षोडशोपचार विधि से उनका पूजन किया जाता है।
Q. उद्यापन में क्या क्या सामग्री चढ़ाई जाती है?
Ans. उद्यापन में शिव-पार्वती को धूप, दीप, नैवेद्य, फल-फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके अलावा तिल, जौ, चावल, शक्कर, घी तथा चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों से हवन भी किया जाता है।
Q. उद्यापन में किन मंत्रों का जाप किया जाता है?
Ans. उद्यापन में ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र से 108 बार और ‘ॐ उमाय नमः’ मंत्र से भी 108 बार आहुति दी जाती है। इसके बाद दश दिग्पालों को बलि दी जाती है और पूर्णाहुति दी जाती है।
Q. उद्यापन के दिन क्या दान किया जाता है?
Ans. उद्यापन के दिन ब्राह्मणों को उनकी पत्नियों सहित भोजन कराया जाता है। साथ ही आचार्य को दक्षिणा और दूध देने वाली गाय बछड़े के साथ दान में दी जाती है।
Q. उद्यापन से क्या लाभ होता है?
Ans. मान्यता है कि उद्यापन करने वाली स्त्रियां जन्म-जन्मांतर में कभी विधवा नहीं होतीं। वे इस लोक में उत्तमोत्तम भोगों को भोगकर अंत में स्वर्ग को प्राप्त होती हैं।