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Satyanarayan Katha 2024 । सत्यनारायण भगवान की कथा कब करनी चाहिए : क्या है सत्यनारायण कथा का महत्व, रहस्य, हवन मंत्र?

Satyanarayan Katha 2024
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सत्यनारायण भगवान की कथा कब करनी चाहिए (Satyanarayan Katha 2024): श्री सत्यनारायण भगवान, हिंदू धर्म के महान देवताओं में से एक, उनके अनूठे महत्व और लोकप्रियता के कारण सदियों से भक्तों के बीच पूजा और श्रद्धा का केंद्र बने हुए हैं। भगवान सत्यनारायण को विष्णु का एक प्रमुख रुप माना जाता है, जिनका उद्देश्य सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वालों की रक्षा करना और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाना है। उनकी पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहन आदर्शों और मूल्यों को भी दर्शाती है जो हर व्यक्ति के जीवन को प्रेरित कर सकते हैं। सत्यनारायण भगवान की कथा में हमें जीवन के अद्भुत रहस्यों और सच्चाइयों का साक्षात्कार होता है। यह कथा हमें सिखाती है कि कैसे सत्य और धर्म के पथ पर चलकर हम जीवन की सभी कठिनाइयों को पार कर सकते हैं। उनकी पूजा से न केवल मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है, बल्कि यह जीवन की सुख-समृद्धि और समर्पण की भावना को भी प्रबल बनाती है।

इस लेख में, हम श्री सत्यनारायण भगवान की कथा की गहराइयों में उतरेंगे, उनके महत्व और उनकी पूजा की विधियों को विस्तार से समझेंगे। 2024 में होने वाली प्रमुख सत्यनारायण पूजा की तिथियों की जानकारी भी साझा करेंगे, ताकि आप समय पर पूजा कर सकें और उसके फल प्राप्त कर सकें। साथ ही, हम उन मुख्य मंत्रों की भी जानकारी प्रदान करेंगे, जो इस पूजा में उपयोगी होते हैं और भगवान सत्यनारायण की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं। तो चलिए इस लेख को शुरू करते हैं…

सत्यनारायण भगवान की कथा कब करनी चाहिए 2024? (Satyanarayan Bhagwan ki Katha kab karni Chahiye)

भगवान सत्यनारायण की कथा (Bhagwan Satyanarayan Katha) किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन विशेष रूप से पूर्णिमा तिथि पर इस कथा का आयोजन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। पूर्णिमा, जिसे चंद्रमा की पूर्ण अवस्था में मनाया जाता है, इस कथा के लिए आदर्श समय है क्योंकि यह धार्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है। कथा का आयोजन व्रत, खासकर सत्यनारायण व्रत के दिन, घर के सभी सदस्य मिलकर करते हैं। यह व्रत आमतौर पर हर पूर्णिमा को, विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा, चैत पूर्णिमा और आषाढ़ पूर्णिमा को किया जाता है। कथा सुनने और सुनाने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

सत्यनारायण भगवान की कथा (प्रथम अध्याय) (Satyanarayan Bhagwan ki Katha (Pratham Adhyay)

नैषिरण्य तीर्थ की धरती पर, एक काल की बात है जब शौनिक और अठ्ठासी हजार ऋषि-मुनि श्री सूतजी से ज्ञान प्राप्त करने की लालसा लिए उपस्थित हुए। वे प्रश्न उठाते हैं, “हे प्रभु! इस कलियुग में वेद-विद्या से अज्ञानी लोगों को भगवान की भक्ति कैसे मिल सकती है और उनका उद्धार किस प्रकार होगा? कोई ऐसा तप बताइए जिससे जल्दी पुण्य प्राप्त हो सके और मनवांछित फल भी प्राप्त हो।” इस पर श्री सूतजी ने कहा, “हे पुण्यात्माओं! आपके प्रश्न सर्वप्राणियों के हित के हैं, इसलिए मैं आपको एक अद्भुत व्रत के बारे में बताऊंगा। यह व्रत नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने नारद जी को इसका उत्तर दिया था। आप ध्यानपूर्वक सुनिए।”

एक दिन, योगीराज नारद जी, जो सबके हित की कामना लेकर विभिन्न लोकों में भ्रमण कर रहे थे, मृत्युलोक में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि मनुष्य विभिन्न योनियों में जन्म लेकर अपने कर्मों के कारण अनेकों दुखों से पीड़ित हैं। उनका दुःख देख नारद जी ने सोचा कि ऐसा क्या किया जाए जिससे मानवों के दुख समाप्त हो जाएं। इसी सोच में डूबे हुए, उन्होंने विष्णुलोक का मार्ग पकड़ा। वहाँ जाकर उन्होंने भगवान नारायण की स्तुति की, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म था। भगवान की असीम शक्ति और उनकी सच्चाई की सराहना करते हुए नारद जी ने कहा, “हे भगवान! आप अनंत हैं, न तो आपकी सृष्टि की कोई सीमा है और न ही आपके गुणों की। आप भक्तों के दुखों को दूर करने वाले हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।”

भगवान नारायण ने नारद जी की स्तुति सुनी और कहा, “हे मुनिश्रेष्ठ! तुम्हारे मन में क्या विचार हैं? तुम किस उद्देश्य से आए हो? कृपया बेझिझक बताओ।” नारद जी ने कहा, “मृत्युलोक में मनुष्य अपने कर्मों के कारण विभिन्न दुखों से पीड़ित हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर कृपा करें, तो बताएं कि वे मनुष्य थोड़े प्रयास से अपने दुखों से कैसे मुक्ति पा सकते हैं?”

भगवान नारायण ने कहा, “तुमने भलाई की बात पूछी है। मैं तुम्हें एक ऐसा व्रत बताता हूँ जो मनुष्य को मोह से मुक्त करता है और उसका कल्याण करता है। यह व्रत स्वर्ग और मृत्युलोक दोनों में अत्यंत दुर्लभ और उत्तम है, जो पुण्य देने वाला है। यह व्रत श्रीसत्यनारायण का है। इसे विधिपूर्वक करने से मनुष्य को इस जीवन में सुख और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है।”

नारद जी ने व्रत के फलों और विधान के बारे में विस्तार से पूछा। भगवान ने कहा, “यह व्रत दुःख और शोक को दूर करता है और सब जगह विजय दिलाता है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मणों और परिवारजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराना चाहिए। नेवैद्य में केला, घी, दूध और गेहूं का आटा मिलाकर भोग अर्पित करें। गेहूं के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर और गुड़ का भी उपयोग कर सकते हैं। भगवान को भोग अर्पित करने के बाद, ब्राह्मणों और परिवारजनों को भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन करें। भजन और कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं। इस व्रत से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और यही कलियुग में मोक्ष का सरल उपाय है।”

इस प्रकार, श्री सत्यनारायण व्रत की कथा का प्रथम अध्याय समाप्त होता है।

सत्यनारायण कथा का महत्व (Satyanarayan Katha ka Mahatva)

सत्यनारायण कथा (Satyanarayan Katha) का महत्व निम्नलिखित तीन प्रमुख बिंदुओं में विस्तार से समझा जा सकता है:

  • आध्यात्मिक शांति और श्रद्धा: सत्यनारायण कथा का पाठ या श्रवण मन में शांति और संतुलन लाने का कार्य करता है। इस कथा को सुनने से व्यक्ति के मन में भगवान सत्यनारायण और उनके गुणों के प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न होती है। यह कथा व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर मार्गदर्शन करती है और जीवन की समस्याओं से उबरने में सहायता करती है।
  • सत्य और धर्म के अनुसरण की प्रेरणा: सत्यनारायण कथा के माध्यम से व्यक्ति को सत्य और धर्म के महत्व को समझने का अवसर मिलता है। यह कथा न केवल सत्य की महत्वता को उजागर करती है, बल्कि सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देती है। कथा में बताए गए उपदेश और धर्मसिद्धांत व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म और नैतिकता को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • सुख-समृद्धि और भगवान की कृपा: सत्यनारायण कथा का आयोजन परिवार में सुख और समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। इस कथा के माध्यम से भगवान सत्यनारायण की कृपा प्राप्त करने की आशा की जाती है। कथा के नियमों और विधियों का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में भगवान की कृपा प्राप्त कर सकता है और समस्याओं से मुक्ति पा सकता है। यह कथा पुण्य प्राप्त करने और भगवान की विशेष आशीर्वाद पाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

सत्यनारायण की कथा का रहस्य (Satyanarayan ki katha ka Rahasya)

  1. नारायण ही हैं एकमात्र सत्य:

वेद व्यास के अनुसार, भगवान नारायण ही सृष्टि का एकमात्र सत्य हैं। अन्य सभी वस्तुएं और जीव मिथ्या हैं और भगवान नारायण ही उनके कारण और अंतःस्थ हैं। यह सत्य न केवल सृष्टि के निर्माण में, बल्कि इसके अंत और स्थिति में भी विद्यमान रहता है। भगवान नारायण ही सच्चे और स्थायी सत्य हैं, और उनकी उपासना से जीवन में शांति और दिव्यता प्राप्त होती है।

  1. नारायण शब्द का अर्थ:

‘नारायण’ शब्द में ‘नार’ का अर्थ पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और ‘आयण’ का मतलब है ‘रहना’ या ‘विवस्थित होना’। इससे तात्पर्य है कि भगवान नारायण इन पंच महाभूतों में सत्य के रूप में निवास करते हैं। इसलिए, सत्य और नारायण एक-दूसरे के अभिन्न हैं। सत्य को अपनाने से व्यक्ति अपने जीवन में भगवान के गुणों को समाहित करता है, जबकि सत्य से दूर रहने पर वह पाप और क्लेश में घिरा रहता है।

सत्यनारायण पूजा की डेट लिस्ट 2024 (Satyanarayan Puja Date List 2024)

पौष पूर्णिमा 25 जनवरी, 2024
माघ पूर्णिमा 24 फरवरी, 2024
फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च, 2024
चैत्र पूर्णिमा 23 अप्रैल, 2024
वैशाख पूर्णिमा 23 मई, 2024
ज्येष्ठ पूर्णिमा 21 जून, 2024 पूर्णिमा
आषाढ़ पूर्णिमा 21 जुलाई 2024
श्रावण पूर्णिमा 19 अगस्त, 2024
भाद्रपद पूर्णिमा 17 सितंबर, 2024
अश्विन पूर्णिमा 17 अक्टूबर, 2024
कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर, 2024 पूर्णिमा
मार्गशीर्ष पूर्णिमा 15 दिसंबर, 2024 पूर्णिमा

सत्यनारायण पूजा हवन मंत्र (Satyanarayan Puja Havan Mantra)

सत्यनारायण पूजा में 16 अनुष्ठान होते हैं और प्रत्येक अनुष्ठान के लिए एक मंत्र समर्पित होता है।

ध्यानम (पूजा प्रारम्भ करते समय)
ध्यायेत् सत्यं गुणतितम गुणत्रयसमन्वितम्।

लोकनाथं त्रिलोकेशं कौस्तुभभरणं हरीम्॥
नीलवर्ण पीतवस्त्रं श्रीवत्सपादभूषितम्।
गोविंदं गोकुलानंदं ब्रह्माद्यैरपि पूजितम्॥

आवाहनम (मूर्ति के सामने खड़े होकर)
दामोदर समागच्छ लक्ष्म्य सह जगत्पते।

इमाम माया कृतं पूजं गृहाणा सुरसत्तमा॥
श्री लक्ष्मी सहिता श्री सत्यनारायणाय अवाहयामि।

आसन (भगवान को आसन देते समय)
नानारत्न समाकीर्ण कर्तास्वरविभूषितम्।

असनम देवदेवेश! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः आसनं समर्पयामि।

पद्यम (भगवान सत्यनारायण के पैर धोना)
नारायणः नमस्तेस्तु नरकर्णावतारकाः।

पद्यं गृहाणा देवेशा! मम सौख्यं विवर्धय॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः पदयोः पद्यं समर्पयामि।

अर्घ्यम (अभिषेक करते समय)
व्यक्तव्यक्तस्वरूपाय ऋषिकपतये नमः।

मया निवेदितो भक्त्या अर्घ्योयं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।

आचमनीयम (जल अर्पित करना)
व्यक्तव्यक्तस्वरूपाय ऋषिकपतये नमः।

मया निवेदितो भक्त्या अर्घ्योयं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।

पंचामित्र स्नानम (भगवान सत्यनारायण को पंचामृत से स्नान कराना)
स्नानं पंचामृतैरदेवा गृहाणा सुरसत्तमा।

अनाथनाथ सर्वज्ञ गिर्वाना प्रणतप्रिय॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।

शुद्धोदक स्नानम (पंचामृत के बाद शुद्ध जल से स्नान कराना)
नानातीर्थसमनितं सर्वपापा हरं शुभम्।

तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

वस्त्रम (नए कपड़े भेंट करते समय)
शीतवतोष्णं समत्राणं लज्जायः रक्षणं परम्।

देहलंकरणं वस्त्रं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः वस्त्र युग्मम समर्पयामि।

यज्ञोपवीत (पवित्र धागा चढ़ाना)
ब्रह्माविष्णुमहेषेण निर्मितं सूत्रमुत्तमम्।

गृहाणा भगवान विष्णु सर्वेष्टा फलदो भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

चंदन

श्रीखंड चंदनं दिव्यं गंधाध्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः चन्दनं समर्पयामि।

पुष्पा

माल्यादिनी सुगंधिनी मालत्यादिनी वै प्रभो।
मया हृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः पुष्पम समर्पयामि।

धुपम

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धध्यो गन्ध उत्तमः।
अघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः धुपं अघ्रपयामि।

दीपम

सज्यं च वर्ती संयुक्तं वह्निना दीपितां मया।
दीपं गृहाण देवेश मम सौख्यप्रदो भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः दीपं दर्शयामि।

नैवेद्यम (भगवान सत्यनारायण को मिठाई चढ़ाते समय)
घृतपक्वं हविष्यान्नं पायसं च सशार्करम्।

नानाविधं च नैवेद्यं गृहिणीन्व सुरसत्तम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।

ताम्बुला (पान चढ़ाते समय)
लवांगकर्पूरसंयुतं ताम्बूलं सुरा पूजितम्।

एलादिचूर्णसंयुक्तं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यतम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

फला

इदं फलं मया देवा! स्थापितम् पुरतस्तव।
तेन मे सफलवाप्तिर्भवेज्जनमानी जन्मनि॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः फलं समर्पयामि।

आरती (अंतिम आरती के लिए दीये जलाते समय)
चतुर्वर्ती समयुक्तं गोघृतेन च पुरितम्।

अरार्तक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः मंगला आरतीम् समर्पयामि।

प्रदक्षिणम

यानि कानि च पापानि जन्मन्तरा कृतानि च।
तानि तानि विनाश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि।

मंत्र पुष्पांजलि (भगवान को पुष्प अर्पित करते समय)
यन्मया भक्ति युक्तेन पत्रं पुष्पं फलं जलम्।

निवेदितं च नैवेद्यं तद् गृहानुकमपाय॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।

यत्पूजितं मायादेव परिपूर्ण तदस्तु मे॥
अनया पूजया श्रीविष्णुः प्रसीदतु॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।

यहाँ पढ़े सत्यनारायण भगवान के प्रमुख लेख:- आरती मंत्र | कथापूजा विधि | व्रत कथा गीता प्रेस

Conclusion

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया (सत्यनारायण भगवान की कथा) यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपके मन में किसी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर दर्ज करें, हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे। बाकि ऐसे ही रोमांचक लेख के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर दोबारा विज़िट करें, धन्यवाद

FAQ’s

Q.सत्यनारायण कथा क्या है?

Ans.सत्यनारायण कथा एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से परिवार में सुख-समृद्धि, शांति, और समस्याओं से मुक्ति के लिए की जाती है। इस पूजा में सत्यनारायण भगवान की महिमा का बखान किया जाता है और उनकी कथा का पाठ किया जाता है।

Q.सत्यनारायण पूजा कब और कैसे की जाती है?

Ans.सत्यनारायण पूजा किसी भी शुभ अवसर पर की जा सकती है, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या किसी अन्य मांगलिक कार्य के बाद। यह पूजा किसी भी दिन की जा सकती है, लेकिन पूर्णिमा (पूरे चंद्रमा के दिन) को इसे करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान, सत्यनारायण भगवान की प्रतिमा या चित्र के सामने प्रसाद, फूल, और धूप से पूजा की जाती है और कथा का वाचन किया जाता है।

Q.सत्यनारायण व्रत का क्या महत्व है?

Ans.सत्यनारायण व्रत का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत उन लोगों के लिए भी किया जाता है जो किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं। माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से सत्यनारायण व्रत और कथा का पालन करता है, उसके जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं का अंत हो जाता है।

Q.सत्यनारायण कथा की उत्पत्ति क्या है?

Ans.सत्यनारायण कथा की उत्पत्ति पुराणों से मानी जाती है। स्कंद पुराण और रेवाखंड में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। कथा में कई उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे इस व्रत को करने से लोगों को उनके संकटों से मुक्ति मिली और उनके जीवन में सुख-शांति स्थापित हुई।

Q.सत्यनारायण कथा में कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?

Ans.सत्यनारायण कथा के लिए आवश्यक सामग्री में मुख्य रूप से भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र, पांच प्रकार के फल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर), फूल, धूप, दीपक, पान के पत्ते, सुपारी, नारियल, और प्रसाद के रूप में हलवा या पंचामृत का उपयोग किया जाता है।

Q.सत्यनारायण कथा को कौन कर सकता है?

Ans.सत्यनारायण कथा को कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। यह कथा सभी के लिए खुली है और इसमें भाग लेने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। इस पूजा में मुख्यत: भक्त का श्रद्धा और विश्वास ही प्रमुख होता है।

Q.क्या सत्यनारायण कथा को घर पर भी किया जा सकता है?

Ans.हाँ, सत्यनारायण कथा को घर पर भी किया जा सकता है। इसके लिए आपको एक पंडित की आवश्यकता हो सकती है, जो कथा का वाचन कर सके। यदि आप स्वयं कथा कर सकते हैं, तो आप परिवार के साथ मिलकर भी यह पूजा संपन्न कर सकते हैं।

Q.क्या सत्यनारायण कथा विशेष दिनों पर ही की जाती है?

Ans.सत्यनारायण कथा को किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन पूर्णिमा, एकादशी, और विशेष पर्वों जैसे कि दीपावली, अक्षय तृतीया, और श्रावण मास में इसे करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।