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अमावस्या 2024 लिस्ट: हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2024 में कौन सी अमावस्या कब मनाई जाएगी? इस लेख में जाने विस्तार से।

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2024 अमावस्या तिथियाँ (Amavasya 2024 date and time) : हिंदू धर्म में अमावस्या (Amavasya) का विशेष महत्व है। यह वह दिन होता है जब चंद्रमा की कला पूरी तरह से गायब हो जाती है और आकाश में अंधकार छा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अंधेरी रात में भी एक अद्भुत शक्ति छिपी होती है?

साल 2024 में कुल 13 अमावस्या (Amavasya) पड़ेंगी, जिनमें से प्रत्येक का अपना एक खास महत्व है। ये अमावस्याएं न सिर्फ आपके आध्यात्मिक जीवन को प्रभावित करेंगी, बल्कि आपके दैनिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। चाहे वह पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए की जाने वाली पूजा हो या फिर मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रखा जाने वाला व्रत, अमावस्या के दिन किए गए हर कर्म का अपना एक विशेष महत्व होता है। तो आइए जानते हैं साल 2024 में कब-कब पड़ेंगी ये अमावस्याएं और इन्हें कैसे बना सकते हैं हम अपने जीवन में खुशियों को आमंत्रित करने का एक शुभ अवसर। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे प्रत्येक अमावस्या के धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व के बारे में। साथ ही जानेंगे कि इस दिन कौन से काम करने चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए।

तो तैयार हो जाइए एक रोमांचक आध्यात्मिक यात्रा के लिए। आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाली इन अमावस्याओं (Amavasya) के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ते रहिए ये लेख…

Amavasya 2024 List | अमावस्या 2024 लिस्ट

S.NOअमावस्या तिथि
1पौष अमावस्या10 जनवरी 2024
2माघ अमावस्या9 फरवरी 2024
3फाल्गुन अमावस्या9 मार्च 2024
4चैत्र अमावस्या8 अप्रैल 2024
5वैशाख अमावस्या8 मई 2024
6ज्येष्ठ अमावस्या5 जून 2024
7आषाढ़ अमावस्या5 जुलाई 2024
8श्रावण अमावस्या3 अगस्त 2024
9भाद्रपद अमावस्या2 सितंबर 2024
10आश्विन अमावस्या1 अक्टूबर 2024
11कार्तिक अमावस्या1 नवंबर 2024
12मार्गशीर्ष अमावस्या1 दिसंबर 2024
13पौष अमावस्या31 दिसंबर 2024

1. पौष अमावस्या (10 जनवरी 2024) Paush Amavasya

अमावस्या (Amavasya) का हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन को अमावस्या (Amavasya) कहा जाता है क्योंकि इस दिन चंद्रमा आकाश में नहीं दिखाई देता। हर महीने आने वाली अमावस्या में पौष अमावस्या विशेष मानी जाती है, जब पौष माह में चंद्रमा का दर्शन नहीं होता। 2024 की पहली अमावस्या पौष माह में पड़ रही है, जो पितृ पूजा के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की पूजा, पितृ तर्पण और पिंडदान करते हैं।

अमावस्या को धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस दिन, पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने और उनके लिए प्रार्थना करने का विशेष महत्व होता है। यह दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण होता है और इसे परिवार के लोग मिलकर मनाते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों और आध्यात्मिक क्रियाओं के लिए अमावस्या को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस प्रकार, अमावस्या का दिन हिंदू समाज में गहरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।

2. माघ अमावस्या (9 फरवरी 2024) Magha Amavasya

हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या (Amavasya) का विशेष महत्व है, जिसे इस वर्ष 9 फरवरी को मनाया जाएगा। इस दिन लोग मौन व्रत रखते हैं और पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं। माघ माह की इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान अवश्य करना चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन मुनि ऋषि का जन्म हुआ था, जिससे ‘मुनि’ शब्द से ‘मौनी’ की उत्पत्ति मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी का जल अमृत के समान हो जाता है और इसमें देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार, मन के देवता चंद्रदेव हैं और अमावस्या के दिन चंद्रमा के दर्शन न होने से मन की स्थिति बिगड़ने लगती है। इसलिए, मौनी अमावस्या पर मौन व्रत का पालन किया जाता है।

मौनी अमावस्या का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, माघ माह में जब चंद्रमा और सूर्य मकर राशि में एक साथ होते हैं, तब यह दिन मनाया जाता है। सूर्य और चंद्रमा दोनों की ऊर्जा के प्रभाव से इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। ज्योतिष में सूर्य को पिता और धर्म का कारक माना गया है, इसलिए मकर में सूर्य और चंद्र के एकत्र होने पर मौनी अमावस्या मनाई जाती है। 

3. फाल्गुन अमावस्या (9 मार्च 2024) phalguna amavasya

धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अमावस्या तिथि का अत्यधिक महत्व होता है। इस दिन को पितृ कार्यों के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है। तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी अमावस्या तिथि बहुत फलदायी होती है। 

इस दिन की गई साधनाओं से साधकों को विशिष्ट लाभ प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या के दिन कुछ उपाय बताये गए हैं, जिनसे विभिन्न दोषों का निवारण होता है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। फाल्गुन मास की अमावस्या, जिसे फाल्गुनी अमावस्या या फागुन अमावस्या कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह तिथि पितरों की पूजा और आराधना के लिए समर्पित मानी जाती है। 

फाल्गुन अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान, ध्यान, और दान का विशेष विधान होता है। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों से पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन कुछ विशेष वस्तुओं का दान करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। यह तिथि पितृ दोष से मुक्ति पाने और पितरों को प्रसन्न करने के लिए अति महत्वपूर्ण होती है। इस दिन के कार्य और दान से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और समृद्धि आती है।

4. चैत्र अमावस्या (8 अप्रैल 2024) Chaitra Amavasya

अमावस्या का धार्मिक महत्व अत्यधिक माना गया है, विशेषकर चैत्र महीने की अमावस्या को, जो इस बार 8 अप्रैल 2024, सोमवार को पड़ रही है। इस दिन को पितृ दोष से मुक्ति और स्नान-दान के लिए विशेष माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, अमावस्या के दिन पूर्वज अपने वंशजों के घर भोजन ग्रहण करने आते हैं। 

इस वर्ष चैत्र अमावस्या का संयोग और भी विशेष है क्योंकि यह साल 2024 की पहली सोमवती अमावस्या है। इसके अतिरिक्त, इस दिन एक दुर्लभ खगोलीय घटना, सूर्य ग्रहण, भी घटित होगी। इस दिन को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय होती हैं। पंचांग के अनुसार, चैत्र अमावस्या की शुरुआत 8 अप्रैल 2024 को सुबह 3:21 बजे होगी और इसका समापन उसी दिन रात 11:50 बजे होगा। 

इस महत्वपूर्ण दिन पर धार्मिक कर्मकांडों का आयोजन करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में शांति और समृद्धि का संचार होता है। चैत्र अमावस्या के दिन स्नान-दान और पितृ तर्पण का विशेष महत्व है, और इसे विधिपूर्वक करने से समस्त परिवार को लाभ होता है। इस अद्वितीय दिन पर सभी को अपने पूर्वजों का स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।

5. वैशाख अमावस्या (8 मई 2024) Vaishakh Amavasya

वैशाख माह की अमावस्या तिथि को विशेष पितृ पूजन के लिए समर्पित माना जाता है, जो इस वर्ष 8 मई 2024 को पड़ रही है। हर माह की अमावस्या पितरों को तृप्त करने के लिए मानी जाती है, परंतु वैशाख अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। 

इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा है, जिससे पितरों को संतुष्टि मिलती है। विशेष मान्यता है कि इस दिन शाम के समय दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। अमावस्या के दिन स्नान, दान, व्रत और पूजा का भी विशेष महत्व है, परंतु पितरों के लिए यह तिथि सर्वोपरि है। अमावस्या को पितरों का पर्व कहा जाता है, क्योंकि इस दिन पितृ अमृतपान करते हैं और पूरे माह तृप्त रहते हैं। 

मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद पितृ वायु रूप में घर की चौखट पर निवास करते हैं, और अपने परिजनों से श्राद्ध व तर्पण की अपेक्षा रखते हैं। इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण या पितृ पूजन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे प्रसन्न होकर अपने परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए, वैशाख अमावस्या पर अपने पितरों का सम्मान और तृप्ति के लिए विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

6. ज्येष्ठ अमावस्या (5 जून 2024) Jyestha Amavasya

हिंदू धर्म में ज्येष्ठ अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन कोई नया कार्य प्रारंभ करने की मनाही है, लेकिन धार्मिक कार्यों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, सालभर में 12 अमावस्या तिथियां होती हैं, और इनमें ज्येष्ठ माह की अमावस्या का अपना अलग ही महत्त्व है। इसे वट अमावस्या भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन वट सावित्री व्रत का पालन किया जाता है। 

इस वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या का दिन और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तिथि पर वट सावित्री व्रत के साथ ही शनि जयंती का पर्व भी मनाया जाएगा। इस वर्ष यह शुभ दिन 6 जून गुरुवार को पड़ रहा है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। ज्येष्ठ अमावस्या पर वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्त्व है। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन शनि देव की भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे जीवन में शांति और समृद्धि का वास होता है। 

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन व्रत, पूजा और दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए, इस पावन दिन का लाभ उठाकर पितरों की पूजा-अर्चना और दान-पुण्य करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

7. आषाढ़ अमावस्या (5 जुलाई 2024) Ashadh Amavasya

सावन का पवित्र महीना भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है और इस माह की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या या श्रावणी अमावस्या के रूप में जाना जाता है। यह दिन धार्मिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। 

श्रावण अमावस्या के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर पितरों के निमित्त पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि सूर्य देव का कर्क राशि में प्रवेश होता है, जिससे कर्क राशि में बुधादित्य नामक राजयोग बनता है। इस विशेष योग के प्रभाव से सूर्य देव की कृपा बरसती है और भक्तों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हरियाली अमावस्या का पर्यावरण की दृष्टि से भी विशेष महत्व है। इस दिन वृक्षारोपण और विशेष वृक्षों की पूजा करने से ग्रह दोष दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस अमावस्या पर पूजा-पाठ, स्नान-दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।  इस प्रकार, हरियाली अमावस्या एक ऐसा पर्व है जो हमें धार्मिकता, पर्यावरण संरक्षण और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की प्रेरणा देता है। यह दिन हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की अनुभूति कराता है।

8. श्रावण अमावस्या (3 अगस्त 2024) Shravan Amavasya

हरियाली अमावस्या का पर्व, जो कृषि और प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता को दर्शाता है, कई शहरों और गांवों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर हर उम्र और वर्ग के लोग, विशेषकर युवा, मेलों में सम्मिलित होकर उत्सव और आनंद से भरपूर दिन बिताते हैं। 

इन मेलों में गुड़ और गेहूं की धानी का प्रसाद वितरित किया जाता है, जो मिठास और संपन्नता का प्रतीक है। इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है गेहूं, ज्वार, चना, और मक्का की सांकेतिक बुआई। पुरुष और स्त्रियां मिलकर इस बुआई में भाग लेते हैं, जिससे आने वाले कृषि उत्पादन की संभावनाओं का अनुमान लगाया जाता है। यह अनुष्ठान न केवल कृषि के प्रति आशा और विश्वास को मजबूत करता है, बल्कि हमें प्रकृति के साथ हमारे अटूट संबंधों की याद भी दिलाता है। हरियाली अमावस्या का यह उत्सव विशेष रूप से मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्रों, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर इलाकों, उत्तरप्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी भागों, और हरियाणा तथा पंजाब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हमें प्रकृति की गोद में जीवन के विविध रंगों का आनंद लेने और समुदाय के साथ मिलकर खुशियां बांटने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।

9. भाद्रपद अमावस्या (2 सितंबर 2024) Bhadrapada Amavasya

हिंदू धर्म में भाद्रपद अमावस्या (Amavasya) का अत्यधिक महत्व है, जिसे भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है। इस पवित्र दिन को पितरों को प्रसन्न करने का उत्तम अवसर माना जाता है, जिसमें स्नान-दान की परंपरा निभाई जाती है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में अमावस्या की तिथि आती है, लेकिन भाद्रपद अमावस्या का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। मारवाड़ी समुदाय के लिए भाद्रपद अमावस्या अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे वे भादी अमावस्या या भादो अमावस्या के नाम से जानते हैं। इस दिन का महत्व इस मान्यता पर आधारित है कि भगवान विष्णु ने इस दिन सभी व्यक्तियों को उनके गुनाहों और कुकर्मों से मुक्ति का वरदान दिया था। मारवाड़ी समाज का विश्वास है कि भादो अमावस्या पर सभी नकारात्मक भावनाओं को त्याग कर, प्रेम और सौहार्द के साथ नए जीवन की शुरुआत की जानी चाहिए।

इस प्रकार, भाद्रपद अमावस्या एक आध्यात्मिक पर्व है जो आत्मशुद्धि, पितृ तर्पण और जीवन के नवीनीकरण का संदेश देता है, जिससे समाज में सामंजस्य और शांति की स्थापना होती है।

10. आश्विन अमावस्या (1 अक्टूबर 2024) Ashwin Amavasya

अमावस्या (Amavasya) का दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होता है और पितृलोक से आए हुए पितृजन अपने लोक लौट जाते हैं। इस दिन किए गए श्राद्ध कर्म, ब्राह्मण भोजन, और दान से पितृजन तृप्त होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देकर वापस जाते हैं। 

ऐसा माना जाता है कि इस दिन के श्राद्ध-पूजन से कुंडली में मौजूद पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितृ ऋण समाप्त हो जाता है। इस पावन अवसर पर नदी, जलाशय, या कुंड में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें। संध्या के समय दीपक जलाएँ और दरवाजे पर पूड़ी-मिठाई जैसे खाद्य पदार्थ रखें, ताकि पितरों को अपने लोक जाने का रास्ता मिले और वे भूखे न जाएं। यदि पूरे पितृपक्ष में तर्पण नहीं कर पाए हों, या किसी पूर्वज की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो इस दिन किया गया तर्पण सभी पितरों को मुक्ति प्रदान करता है। पितरों की शांति के लिए दान दें और गरीबों को भोजन कराएं, जिससे उनके पुण्य में वृद्धि होती है और परलोक की यात्रा सुगम होती है। अमावस्या का श्राद्धकर्म के साथ-साथ तांत्रिक साधना में भी विशेष महत्व है। इस दिन रात्रिकालीन पूजा से देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसके अगले ही दिन से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होता है, जो इस पर्व की महत्ता को और भी बढ़ा देता है।

11. कार्तिक अमावस्या (1 नवंबर 2024) Kartik Amavasya

अमावस्या (Amavasya) के दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होता है, जब पितृ लोक से आए पितृजन अपने लोक लौट जाते हैं। इस विशेष दिन पर श्राद्ध कर्म, ब्राह्मण भोजन और दान करने से पितर तृप्त होते हैं और परिवार के लोगों को आशीर्वाद देकर विदा होते हैं। 

अमावस्या (Amavasya) पर किए गए श्राद्ध-पूजन से कुंडली में मौजूद पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितृ ऋण समाप्त होता है। इस दिन नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करना चाहिए और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें। संध्या के समय दीपक जलाएं और दरवाजे पर पूड़ी-मिठाई जैसे खाद्य पदार्थ रखें, ताकि पितरों को अपने लोक जाने का मार्ग दिखे और वे भूखे न जाएं। अगर पूरे पितृपक्ष में तर्पण नहीं किया गया हो, या किसी पूर्वज की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो इस दिन तर्पण करने से सभी पितरों को मुक्ति मिल जाती है। पितरों की शांति के लिए दान और गरीबों को भोजन कराने से उनके पुण्य में वृद्धि होती है और परलोक की यात्रा सुगम होती है। अमावस्या का श्राद्धकर्म के साथ-साथ तांत्रिक साधना में भी विशेष महत्व है। इस दिन रात्रिकाली पूजा से देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसके अगले दिन से शारदीय नवरात्रि का आरंभ होता है, जो पवित्रता और श्रद्धा का पर्व है।

12.  मार्गशीर्ष अमावस्या (1 दिसंबर 2024) Margashirsha Amavasya

मार्गशीर्ष माह का महाभारत में विशेष महत्व बताया गया है, और इसकी अमावस्या (Amavasya) का महत्व अन्य अमावस्यों से अलग है। इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान, स्नान, और दान करने का विशेष महत्व है। 

मान्यता है कि इस दिन तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है। इस दिन व्रत रखने से जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। यदि व्रत नहीं रख पा रहे हैं, तो पेड़ या पौधे में जल अर्पित करें। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ और पूजा करने से भी पितरों को शांति प्राप्त होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या को माता लक्ष्मी की पूजा भी अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन व्रत रखकर किसी पवित्र तालाब, कुंड या नदी में स्नान करना भी महत्वपूर्ण है। स्नान के बाद बहती हुई नदी में तिल प्रवाहित करें और गायत्री मंत्र का पाठ करें। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन तर्पण, पिंडदान, स्नान एवं दान करने से पितरों को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन की पूजा-पाठ और दान-पुण्य से जीवन में नए अध्याय का आरंभ होता है, जो उन्नति और खुशहाली से भरपूर होता है।

13. पौष अमावस्या (31 दिसंबर 2024) Paush Amavasya

पौष अमावस्या (Paush Amavasya) का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह दिन पितरों को समर्पित है। इस दिन विशेष कार्य करने से पितरों को यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और वे स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। पौष अमावस्या पर श्राद्ध करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। 

मान्यता है कि इस दिन दोपहर के समय पितर अपने वंशजों से जल और अन्न की अपेक्षा करते हैं। इस समय किया गया श्राद्ध सात पीढ़ियों के पितरों को तृप्त करता है और वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। पौष अमावस्या पर सुपात्र को दिया गया दान व्यक्ति को यश, सफलता और सौभाग्य प्रदान करता है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए इस दिन अन्न, चावल, दूध, घी, कंबल और धन का दान करना चाहिए। यह माना जाता है कि पितृ दोष के कारण जीवन में अनेक संकट आते हैं, लेकिन अमावस्या पर किया गया श्राद्ध कर्म इनसे मुक्ति दिलाता है और वंश में वृद्धि होती है। पूर्वजों की नाराजगी के कारण परिवार की तरक्की रुक जाती है और मांगलिक कार्यों में बाधाएं आती हैं। 

इससे निपटने के लिए पौष अमावस्या पर पीपल के वृक्ष को जल में दूध, चावल और काले तिल मिलाकर सींचना चाहिए और शाम को पीपल के नीचे तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे जीवन के अंधकार का अंत होता है, शनि देव प्रसन्न होते हैं और पूर्वजों के आशीर्वाद से परिवार उन्नति करता है।

Summary 

अमावस्या (Amavasya) केवल एक खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि यह परिवर्तन, आत्म-परीक्षण और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक भी है। यह अंधकारमय रात हमें अपने अंदर के प्रकाश को खोजने और नकारात्मकता को दूर करने का अवसर प्रदान करती है। साल 2024 की सभी अमावस्या की प्रमुख तिथियां से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे इस अपने सभी परिवारजनों एवं मित्र गणों के साथ जरूर साझा करें। ऐसे ही और भी ज्ञानवर्धक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in/  पर रोजाना विजिट करें।

FAQ’s

Q. अमावस्या क्या है? 

Ans. अमावस्या वह तिथि होती है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आता है और पूर्ण रूप से अदृश्य हो जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जो हर महीने में एक बार आती है। इस दिन चंद्रमा की कोई कला नहीं दिखाई देती है।

Q. अमावस्या के प्रमुख प्रकार क्या हैं?  

Ans. कुछ प्रमुख अमावस्याएं हैं – सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, महालय अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या और कुशग्रहणी अमावस्या। ये अमावस्याएं धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं और इन पर विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

Q. वैशाख अमावस्या का क्या महत्व है? 

Ans. वैशाख अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों की शांति, ग्रह और कालसर्प दोष निवारण हेतु खास उपाय किए जाते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करने या सुनने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

Q. अमावस्या के दिन किन देवताओं की पूजा की जाती है? 

Ans. अमावस्या के देवता अर्यमा हैं जो पितरों के प्रमुख हैं। इस दिन पितृगणों की पूजा करने से वे प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु और बल-शक्ति प्रदान करते हैं। अमावस्या बलप्रदायक तिथि मानी जाती है।

Q. अमावस्या के दिन क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? 

Ans. अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। शराब, भांग, गांजा आदि नशीली चीजों से दूर रहना चाहिए। इस दिन व्यक्ति में नकारात्मक सोच बढ़ जाती है, इसलिए पूजा-पाठ में समय बिताना और भावुक न होना उचित है।

Q. अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए? 

Ans. अमावस्या के दिन हो सके तो उपवास रखना चाहिए और पूजा-पाठ आदि में समय बिताना चाहिए। चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा इन तीन दिनों को पवित्र बने रहने में ही भलाई मानी जाती है। इस दिन पितृ तर्पण, दान-पुण्य और तीर्थ स्नान का भी महत्व है।