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Guru Purnima Mantra: गुरु पूर्णिमा मंत्र का जाप करने से मिलेगी सभी समस्याओं से मुक्ति, अभी पढ़ें इस लेख में सर्वश्रेष्ठ मंत्र! दूर होंगे सभी दुख 

Guru Purnima Mantra
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गुरु पूर्णिमा मंत्र (Guru Purnima Mantra): गुरु हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमें ज्ञान प्रदान करते हैं, हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमें जीवन के सही मार्ग पर चलना सिखाते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में गुरु के महत्व को बार-बार रेखांकित किया गया है। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का त्योहार हमारे गुरुओं के प्रति हमारी श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का एक अवसर है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हम अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हम गुरु मंत्रों का जाप करते हैं, गुरु वंदना करते हैं और उनके लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

इस लेख में हम गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima Mantra) के महत्व को समझेंगे। हम जानेंगे कि गुरु मंत्र क्या हैं और उनका क्या महत्व है। हम गुरु स्तुति और गुरु वंदना के कुछ चुनिंदा श्लोकों और कविताओं का आनंद लेंगे। हम कुछ गुप्त गुरु मंत्रों के बारे में भी जानेंगे जो आपके आध्यात्मिक विकास में सहायक हो सकते हैं। साथ ही, हम गुरु के महत्व को दर्शाने वाले कुछ प्रेरणादायक दोहों का भी आस्वादन करेंगे।

तो चलिए, गुरु पूर्णिमा की इस अद्भुत लेख को..

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Table Of Content :-Guru Purnima Mantra

S.NOप्रश्न
1गुरु मंत्र 
2गुरु मंत्र लिखा हुआ
3गुरु स्तुति गुरु वंदना
4गुरु के लिए दोहे
5गुरु मंत्र श्लोक
6गुरु स्तुति श्लोक
7गुरु वंदना पर कविता
8गुरु पूर्णिमा श्लोक हिंदी में
9गुप्त गुरु मंत्र
10गुरु मंत्र को गुप्त क्यों रखना चाहिए
11गुरु मंत्र श्लोक अर्थ सहित

गुरु मंत्र (Guru Mantra)

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“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
“तमसो मा ज्योतिर्गमय।”
“विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥”
विद्या से विनय आता है, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।

गुरु मंत्र लिखा हुआ (Guru Mantra Written)

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ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।
ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

गुरु स्तुति गुरु वंदना (Guru Praise Guru Vandana)

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अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥1

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । 
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥2

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । 
गुरुरेव परम्ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥3

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥4

चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
 तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥5

त्सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुजः । 
वेदान्ताम्बुजसूर्योयः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥6

चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतो निरञ्जनः ।
 बिन्दुनाद कलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥7

ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः ।
 भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥8

अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने ।
 आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥9

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसम्पदः । 
गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥10

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
 तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥11

मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
 मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥12

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
 गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥13

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
 त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥14

गुरु के लिए दोहे (Guru Purnima Mantra)

आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक, गुरु की महिमा अपरंपार रही है और सदैव रहेगी। गुरु समाज के आलोक स्तंभ होते हैं, जो शिक्षा के प्रकाश से किसी भी राष्ट्र की आधारशिला रखते हैं। अति पूजनीय ऐसे गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए प्रस्तुत हैं कुछ सुंदर दोहे:

  • गुरु अमृत है जगत में, बाकी सब विषबेल,

सतगुरु संत अनंत हैं, प्रभु से कर दें मेल।

  • गीली मिट्टी अनगढ़ी, हमको गुरुवर जान,

ज्ञान प्रकाशित कीजिए, आप समर्थ बलवान। 

  • शिष्य वही जो सीख ले,

शिष्य वही जो सीख ले, गुरु का ज्ञान अगाध,

भक्तिभाव मन में रखे, चलता चले अबाध।

  • गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,

गुरु अध्यात्म की ज्योति है, गुरु हैं चारों धाम।

  • अंधकार से खींचकर

अंधकार से खींचकर, मन में भरे प्रकाश,

ज्यों मैली चुनरी धुले, सोहत तन के पास।

  • गुरु की कृपा हो शिष्य पर, पूरन हों सब काम,

गुरु की सेवा करत ही, मिले ब्रह्म का धाम।

  • गुरु अनंत तक जानिए, गुरु की ओर न छोर,

गुरु प्रकाश का पुंज है, निशा बाद का भोर।

गुरु मंत्र श्लोक (Guru Mantra Shloka)

1. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।

2. ॐ गुरुभ्यो नम:।

3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।

4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।

5. गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।

गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

गुरु स्तुति श्लोक (Guru Stuti Shloka)

1-गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

   गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

अर्थात् गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है। उन सद्गुरु को प्रणाम है।

2- अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।

     तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

अर्थात् जो अखण्ड है, सकल ब्रह्माण्ड में समाया है, चर-अचर में तरंगित है। उस (प्रभु) के तत्व रूप को जो मेरे भीतर प्रकट कर मुझे साक्षात दर्शन करा दे, उन गुरु को मेरा शत् शत् नमन है। अर्थात् वही पूर्ण गुरु है ।

गुरु पूर्णिमा श्लोक हिंदी में (Guru Purnima Shlok In Hindi)

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम्। मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥

  • अर्थ: ध्यान का मूल गुरु का स्वरूप है, पूजा का मूल गुरु के चरण हैं। मंत्र का मूल गुरु के वचन हैं और मोक्ष प्राप्ति का मूल गुरु की कृपा है।

अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

  • अर्थ: जिन्होंने अखंड मंडलाकार ब्रह्म का ज्ञान कराया, जिन्होंने चराचर जगत में व्याप्त उस ब्रह्म का साक्षात्कार कराया, मैं उन श्री गुरु को नमन करता हूँ।

गुरु वंदना पर कविता (Poem On Guru Vandana)

गुरु को नमन

गुरु के चरणों में है वंदन,

गुरु को करूँ मैं प्रथम प्रणाम,

गुरु से ही शिक्षा मिलती है,

गुरु से मिले अपरिमित ज्ञान;

मात-पिता के श्री चरणों में,

शत-शत नमन हमारा है,

जीवन की पहली शिक्षा से,

संपूर्ण चरित्र संवारा है;

गुरु ही जीवन की धारा को,

नई दिशा दिखलाता है,

कठिन,कंटीले,वक्र मार्ग से,

सरल राह ले जाता है;

परमपिता परमेश्वर सद्गुरू के,

प्रति हो समर्पित ध्यान,

हर-क्षण, हर-पल प्रगति करें हम,

गुरु का बढ़े मान-सम्मान।

गुप्त गुरु मंत्र (Secret Guru Mantra)

1- गुरु का वैदिक मंत्र

ओम बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु

यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।

2- बृहस्पति मंत्र

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।

ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

3- ध्यान मंत्र

रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,

विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।

पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,

विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।

गुरु मंत्र को गुप्त क्यों रखना चाहिए? (Why should Guru Mantra Be Kept Secret)

गुरु मंत्र, एक शक्तिशाली संस्कृत मंत्र, एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक माना जाता है जो भक्तों को आध्यात्मिक वृद्धि और मुक्ति प्राप्त करने में मदद करता है। यह मंत्र गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर के अवतार के रूप में मान्यता देता है। यह मंत्र आध्यात्मिक विकास और मुक्ति का एक शक्तिशाली साधन माना जाता है।

आचार्य चाणक्य, एक प्रसिद्ध भारतीय आचार्य, के अनुसार गुरु मंत्र, साधना और तप को गुप्त रखना चाहिए। यही वजह है कि गुरु से प्राप्त गुरु मंत्र, आपके द्वारा की जा रही साधना, तप या ध्यान को गोपनीय रखना चाहिए। अगर आप इनका सही परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको इन्हें गुप्त रखना चाहिए। इन बातों को अपने खास मित्र से भी छुपाना चाहिए। इसका मुख्य कारण यह है कि जब हम अपनी साधना और तप को बाहरी दुनिया के साथ साझा करते हैं, तो उसकी शक्ति और प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसके अलावा, यह भी संभव है कि लोग आपकी साधना को गलत ढंग से समझें या उसे नकारात्मक रूप से देखें, जो आपके आध्यात्मिक प्रगति में बाधा डाल सकता है। इसलिए, गुरु मंत्र और उससे संबंधित साधना और तप को गुप्त रखना आवश्यक है, ताकि आप अपने आध्यात्मिक यात्रा में अधिकतम लाभ उठा सकें।

गुरु मंत्र श्लोक अर्थ सहित (Guru Mantra Shloka With Meaning)

1- किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।

    दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥

भावार्थ :

बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।

2- प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।

 शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

भावार्थ :

प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।

3- गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।

    अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

भावार्थ :

‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।

4- शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च ।

    नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥

भावार्थ :

शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए ।

Conclusion:- Guru Purnima Mantra

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का यह पावन पर्व हमें गुरु के महत्व और उनके प्रति समर्पण की याद दिलाता है। गुरु हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के पावन त्योहार से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे अन्य सभी आर्टिकल्स को भी एक बार जरूर पढ़िए साथ ही साथ हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर भी रोजाना विजिट करिए।

FAQ’s:-Guru Purnima Mantra

Q. गुरु पूर्णिमा का त्योहार क्यों मनाया जाता है? 

Ans. गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का त्योहार महर्षि वेद व्यास के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे। यह दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका सम्मान करने का मौका है।

Q. गुरु की महिमा क्या है?

Ans. गुरु की महिमा अनंत है। वे ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं, भ्रम और अज्ञानता को दूर करते हैं। गुरु शिष्य को सही मार्ग दिखाते हैं और उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाते हैं।

Q. गुरु मंत्र का क्या महत्व है?

Ans. गुरु मंत्र “ॐ गुरुवे नमः” गुरु के प्रति समर्पण और श्रद्धा व्यक्त करता है। इस मंत्र का जाप करने से गुरु की कृपा प्राप्त होती है और आध्यात्मिक प्रगति में सहायता मिलती है।

Q.गुप्त गुरु का क्या अर्थ है? 

Ans. गुप्त गुरु वह होते हैं जो पर्दे के पीछे से शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं। वे प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देते, परंतु उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमेशा शिष्य के साथ रहता है।

Q. गुरु वंदना का क्या महत्व है?

Ans. गुरु वंदना (Guru Purnima) गुरु के प्रति कृतज्ञता, श्रद्धा और समर्पण व्यक्त करने का एक तरीका है। गुरु वंदना करने से गुरु की कृपा प्राप्त होती है और शिष्य को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है।

Q. गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करना क्यों कठिन है? 

Ans. गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करना कठिन है क्योंकि गुरु ही वह मार्गदर्शक हैं जो शिष्य को सही दिशा दिखाते हैं। गुरु के मार्गदर्शन के बिना, शिष्य भटक सकता है और अज्ञानता के अंधकार में खो सकता है।