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Shastra Pooja In Dussehra 2024: दशहरा पर क्यों की जाती है शस्त्र पूजा और क्या है आयुध पूजा की पौराणिक कथा?, जानिए

Shastra Pooja In Dussehra 2024
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दशहरे पर क्यों और कैसे की जाती है शस्त्र पूजा (Shastra Pooja In Dussehra 2024): शस्त्र पूजन (Shastra Puja) एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो दशहरे के अवसर पर किया जाता है। यह पूजन शस्त्रों और आयुधों को समर्पित है, जो शक्ति और सुरक्षा के प्रतीक हैं। 

शस्त्र पूजन (Shastra Puja) का उद्देश्य शस्त्रों की शक्ति को पूजना और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करना है। यह पूजन न केवल शस्त्रों की शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि यह हमें अपनी सुरक्षा और शक्ति के लिए प्रेरित भी करता है। दशहरे के दिन शस्त्र पूजन करने का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। यह पूजन हमें अपने जीवन में शक्ति और सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शस्त्र पूजन कैसे किया जाता है? क्या आप जानते हैं कि इसकी पूजन विधि क्या है? और क्या आप जानते हैं कि इसका महत्व क्या है? शस्त्र पूजन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह पूजन विभिन्न रूपों में किया जाता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य एक ही है – शस्त्रों की शक्ति को पूजना और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करना। इस पूजन के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है, जो शस्त्रों की शक्ति को बढ़ावा देते हैं। इस लेख में, हम आपको शस्त्र पूजन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

हम आपको बताएंगे कि शस्त्र पूजन कैसे किया जाता है, इसकी पूजन विधि क्या है, और इसका महत्व क्या है। हम आपको शस्त्र पूजन की पौराणिक कथा भी बताएंगे, जो इसके महत्व को और भी बढ़ाती है। तो आइए शस्त्र पूजन के बारे में जानें और इसके महत्व को समझें…

शस्त्र पूजन क्या है? (Shastra Pujan kya Hota Hai)

शस्त्र पूजन (Shastra Puja) Shastra Pooja In Dussehra 2024 हिंदू धर्म की एक प्राचीन परंपरा है जो विजयादशमी के दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग अपने शस्त्रों और औजारों की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें सफलता और समृद्धि मिलने की मान्यता है। शस्त्र पूजन की शुरुआत रामायण काल से मानी जाती है, जब भगवान राम (Bhagwan Ram) ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले अपने शस्त्रों की पूजा की थी। इसी तरह, देवी दुर्गा ने भी महिषासुर का वध करने से पहले अपने शस्त्रों की आराधना की थी। आज भी, सेना, पुलिस और आरएसएस जैसे संगठन विजयादशमी पर शस्त्र पूजन करते हैं। इस दिन शस्त्रों के साथ-साथ वाहनों की भी पूजा की जाती है।

दशहरे पर शस्त्र पूजन कैसे करें? (Dussehra Par Shastra Pujan kaise karen)

विजया दशमी (Vijaya Dashmi) के पावन दिन की शुरुआत प्रातः काल जल्दी उठकर करें। शौचादि कार्यों से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने शस्त्रों को स्वच्छ करें, जिससे वे पूजा के लिए पूरी तरह तैयार हो सकें। इसके बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा की तैयारी में जुट जाएं। शुभ मुहूर्त के आगमन से पहले शस्त्र पूजन की सारी सामग्री एकत्रित कर लें, क्योंकि शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व शुभ मुहूर्त में ही होता है।

पूजा आरंभ करने से पहले शस्त्रों पर गंगा जल छिड़ककर उन्हें पवित्र करें। इसके बाद महाकाली स्तोत्र का पाठ करें, जिससे पूजा का प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। अब शस्त्रों पर कुमकुम और हल्दी का तिलक लगाएं, जो शौर्य और समृद्धि का प्रतीक है। उन पर पुष्प माला अर्पित करें और धूप दिखाकर उन्हें सुगंधित करें। अंत में, मिष्ठान्न का प्रसाद चढ़ाकर शस्त्रों की पूजा को पूर्ण करें। पूजा के बाद इस प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें, जिससे सबको इस पवित्र अनुष्ठान का आशीर्वाद प्राप्त हो। इस प्रकार, शस्त्र पूजन केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि शक्ति, साहस और विजय की प्रतीकात्मकता का दिन है, जो आत्मबल और मनोबल को और भी दृढ़ बनाता है।

शस्त्र पूजा शुभ मुहूर्त (Shastra Pujan Shubh Muhurat)

1. दशहरा 2024 शस्त्र पूजा का मुहूर्त: 12 अक्टूबर 2024  (दोपहर 02:03 से 02:49 बजे तक)

दशहरा 2024तारीखसमय
दशहरा 2024 शस्त्र पूजा का मुहूर्त12 अक्टूबर 2024दोपहर 02:03 से 02:49 बजे तक

2. शस्त्र पूजन की कुल अवधि-  मात्र 46 मिनट।

शस्त्र पूजा की विधि (Shastra Pujan ki Vidhi)

शस्त्र पूजन की विधि कुछ इस प्रकार निम्नलिखित है-

  • पूजा की तैयारी और शुद्धिकरण प्रक्रिया: शस्त्र पूजा (Shastra Puja) की शुरुआत एक पवित्र स्नान से की जाती है, जिससे मन और शरीर की शुद्धि होती है। पूजा स्थल को साफ कर, उसे पवित्र गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। शस्त्रों को साफ और पवित्र करने के लिए उन्हें गंगाजल या स्वच्छ जल से धोया जाता है। इस प्रक्रिया में विशेष ध्यान रखना होता है कि शस्त्र पूरी तरह से स्वच्छ और निर्मल रहें। इसके बाद, इन्हें साफ कपड़े पर सजा दिया जाता है, जिससे उनकी पवित्रता और महत्व को बढ़ाया जा सके।
  • पूजा सामग्री और विधि: शस्त्रों की पूजा के लिए रोली, चंदन, अक्षत (चावल), पुष्प, धूप, और दीपक का उपयोग किया जाता है। शस्त्रों पर रोली और चंदन का तिलक लगाया जाता है, और अक्षत और पुष्प चढ़ाए जाते हैं। धूप और दीपक से पूजा स्थल को सुगंधित और उज्जवल बनाया जाता है। पूजा के दौरान भगवान श्रीराम और मां काली के मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे शस्त्रों में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है और भक्त की आस्था को बल मिलता है।
  • मंत्रों का महत्व और आंतरिक शांति: शस्त्र पूजा (Shastra Puja) के समय भगवान श्रीराम और मां काली के मंत्रों का जाप करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। ये मंत्र शस्त्रों को न केवल शक्ति प्रदान करते हैं, बल्कि साधक की आत्मा और मन को भी शांति और स्थिरता प्रदान करते हैं। मंत्रों का उच्चारण करते समय मन को एकाग्र और शांत रखने से पूजा की प्रभावशीलता बढ़ जाती है। इस समय साधक को अपने मन की इच्छाओं और संकल्पों को दृढ़ करना चाहिए, जिससे जीवन में आने वाली बाधाओं का सामना साहस और आत्मविश्वास से कर सके।
  • बड़ों का आशीर्वाद और पूजा का समापन: शस्त्र पूजा के बाद अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना अनिवार्य माना जाता है। उनका आशीर्वाद जीवन में मार्गदर्शन और सफलता का प्रतीक होता है। इसके बाद, शस्त्रों को उनके स्थान पर आदरपूर्वक रखा जाता है। इस प्रक्रिया का समापन आंतरिक शांति और संतुष्टि के साथ होता है। दशहरे का यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि, शक्ति और विजय की ओर एक कदम बढ़ाने का दिन है। इस दिन की पूजा व्यक्ति को अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और नई विजय की राह पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।

शस्त्र पूजन मंत्र | (Shastra Puja Mantra)

  • स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये॥

दशहरे पर क्यों की जाती है शस्त्र पूजा (Dussehra Par Shastra Puja kyu ki Jati Hai Shastra Puja)

दशहरे पर शस्त्र पूजा (Shastra Puja) की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस दिन सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय का उत्सव मनाया जाता है। पहले शस्त्रों को गंगाजल से पवित्र किया जाता है, फिर उन पर हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाकर फूल व शमी के पत्ते अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद विधिवत पूजा की जाती है। प्राचीन काल में योद्धा इसी दिन युद्ध के लिए निकलना पसंद करते थे। मान्यता है कि इस दिन शुरू किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल होगा। भारतीय सेना में भी इस दिन शस्त्रों की पूजा होती है जो इस दिन के महत्व को दर्शाता है। 

अस्त्र पूजा व शस्त्र पूजन का महत्व (Astra Puja Aur Shastra Puja ka Mahatva)

दशहरे (Dussehra) पर शस्त्र पूजा (Shastra Puja) और अस्त्र पूजा का महत्व दो मुख्य बिंदुओं में इस प्रकार है:

  • शस्त्र पूजा का महत्व: दशहरे पर शस्त्र पूजन (Shastra Puja) की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते थे और आज भी सेना में इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है। शस्त्र पूजा का उद्देश्य है कि हम शमी वृक्ष की भांति दृढ़ और तेजोमय बनें। इस दिन शक्ति उपासना के बाद जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। शस्त्र पूजन से हमें आत्मरक्षा के लिए शस्त्रों के धर्मसम्मत प्रयोग की प्रेरणा मिलती है।
  • अस्त्र पूजा का महत्व: दशहरे पर अस्त्र पूजा का भी विशेष महत्व है। अस्त्र यानी आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक मंत्र, यंत्र आदि की पूजा इस दिन की जाती है। ऐसा माना जाता है कि अस्त्र पूजा से हमारी आंतरिक शक्ति जागृत होती है और हम अपने जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर कर पाते हैं। अस्त्र पूजा हमें यह संदेश देती है कि हमें अपनी आध्यात्मिक शक्ति को पहचानकर उसका सदुपयोग करना चाहिए। इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हम जीवन में सफलता प्राप्त कर पाते हैं।

शस्त्र पूजा के समय ज़रुर रखें ये सावधानियाँ (Shastra Puja ki Savdhaniya) 

शस्त्र पूजा (Shastra Puja) के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। 

  • सबसे पहले, शस्त्रों को पूरी सावधानी और ध्यानपूर्वक साफ करना चाहिए ताकि वे पूजा के लिए पूरी तरह तैयार हों। 
  • पूजा के समय शस्त्रों के आस-पास छोटे बच्चों को नहीं आने देना चाहिए, क्योंकि उनका उपयोग बहुत सतर्कता से किया जाता है। 
  • साथ ही, इस पवित्र दिन पर किसी भी शस्त्र के साथ खिलवाड़ या लापरवाही न करें। 
  • यह पूजा एक गंभीर और सम्मानजनक प्रक्रिया है, जिसे पूरी श्रद्धा और संयम के साथ संपन्न करना चाहिए।

आयुध पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा (Aayudh Puja Se Judi Pauranik katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत (Mahabharata) काल में जब दुर्योधन ने छलपूर्वक जुए में पांडवों को पराजित कर दिया, तब उन्हें 12 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा। इस अज्ञातवास के दौरान, पांडवों को अपनी पहचान छुपानी थी, और यदि कोई उन्हें पहचान लेता, तो उन्हें फिर से 12 वर्षों का वनवास भोगना पड़ता। इस कठिन परिस्थिति में अर्जुन ने अपनी प्रिय गांडीव धनुष को शमी वृक्ष के बीच सावधानीपूर्वक छिपा दिया और राजा विराट के दरबार में ब्रिहन्नला के रूप में निवास किया।

एक समय राजा विराट के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों को शत्रुओं से बचाने का आग्रह किया। तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने गांडीव और बाणों को पुनः निकाला और विधिपूर्वक उनकी पूजा की। इस शक्ति और संकल्प के साथ, अर्जुन ने शत्रुओं का संहार कर विजय प्राप्त की। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा और शस्त्र पूजन किया जाता है, जो केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि विजय, साहस और संकल्प का प्रतीक बन गया है।

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Conclusion:-Shastra Pooja In Dussehra 2024

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FAQ’s:-Shastra Pooja In Dussehra 2024

1. शस्त्र पूजा क्या है?

शस्त्र पूजा एक धार्मिक अनुष्ठान है, Shastra Pooja In Dussehra 2024 जिसमें युद्ध और सुरक्षा से संबंधित शस्त्रों की पूजा की जाती है। यह पूजा मुख्य रूप से योद्धाओं, सैनिकों, और रक्षा सेवाओं से जुड़े लोगों द्वारा की जाती है, लेकिन इसे व्यापारी, किसान, और विभिन्न पेशेवर भी करते हैं, जो अपने काम के औजारों की पूजा करते हैं।

2. दशहरा पर शस्त्र पूजा का क्या महत्व है?

दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। इस दिन शस्त्र पूजा का महत्व इसलिए है क्योंकि इसे शक्ति, साहस और आत्मरक्षा का प्रतीक माना जाता है। शस्त्र पूजा द्वारा हम अपने औजारों और शस्त्रों को सम्मान देते हैं और उनसे प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

3. शस्त्र पूजा का धार्मिक महत्व क्या है?

हिंदू धर्म में शस्त्रों को केवल युद्ध का उपकरण नहीं माना जाता, बल्कि इसे धर्म की रक्षा और न्याय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। महाभारत और रामायण में भगवानों द्वारा शस्त्रों का उपयोग धर्म की रक्षा के लिए किया गया था। इसलिए शस्त्र पूजा, शक्ति और न्याय की रक्षा के लिए की जाती है।

4. शस्त्र पूजा कैसे की जाती है?

शस्त्र पूजा करने के लिए शस्त्रों को स्वच्छ किया जाता है और उन्हें विशेष रूप से सजाया जाता है। इसके बाद उन पर हल्दी, कुमकुम, और फूल चढ़ाए जाते हैं। पूजा में मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और शस्त्रों की आरती की जाती है। इसके साथ ही मिठाई और नारियल का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है।

5. क्या केवल सैनिक और योद्धा ही शस्त्र पूजा करते हैं?

नहीं, शस्त्र पूजा केवल सैनिकों और योद्धाओं तक सीमित नहीं है। यह परंपरा व्यापारी, किसान, और अन्य पेशेवरों द्वारा भी निभाई जाती है, जो अपने कार्य के औजारों को शस्त्र के रूप में पूजते हैं। उदाहरण के लिए, किसान अपने हल, व्यापारी अपने तराजू, और कारीगर अपने औजारों की पूजा करते हैं।

6. क्या शस्त्र पूजा का कोई ऐतिहासिक प्रमाण है?

शस्त्र पूजा का उल्लेख प्राचीन काल से ही भारतीय महाकाव्यों और ग्रंथों में मिलता है। महाभारत में भी योद्धा अपने शस्त्रों की पूजा करते थे। यह परंपरा समय के साथ भारतीय संस्कृति में रची-बसी है और दशहरा पर विशेष रूप से इसका महत्व बढ़ जाता है।

7. दशहरा और शस्त्र पूजा के पीछे की पौराणिक कथा क्या है?

दशहरा के दिन भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था। इसके पहले भगवान राम ने अपने शस्त्रों की पूजा की थी। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है और शस्त्र पूजा इसी विजय की याद में की जाती है।

8. आज के समय में शस्त्र पूजा का क्या महत्व है?

आधुनिक युग में भी शस्त्र पूजा एक महत्वपूर्ण परंपरा बनी हुई है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि हमें यह सिखाता है कि अपने औजारों का सम्मान करना और उनकी देखभाल करना कितना आवश्यक है। यह हमें जिम्मेदारी, अनुशासन, और आत्मरक्षा के महत्व की भी याद दिलाता है।