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Swami Dayanand Saraswati : 5 मार्च को मनाई जाएगी स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती, जाने उनके जीवन के बारे में सब कुछ

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Swami Dayanand Saraswati: आधुनिक भारत India के इतिहास में स्वामी दयानंद सरस्वती Swami (Dayanand Saraswati) का नाम एक ज्वलंत दीपस्तंभ की तरह चमकता है। वेदों Vedas की ओर लौटो का उनका नारा आज भी प्रासंगिक है और भारत India के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

1824 में गुजरात Gujarat के टंकारा में जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati) बचपन से ही जिज्ञासु और सत्य की खोज में तत्पर थे। 21 वर्ष की आयु में उन्होंने घर-बार त्याग दिया और वेदों Vedas का अध्ययन करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati जी की जयंती से संबंधित इस विशेष लेख में हम आपको बताएंगे कि दयानंद सरस्वती इन हिंदी (Swami Dayanand Saraswati   in hindi) , दयानंद सरस्वती कौन हैं? ( who is Dayanand Saraswati  ) , स्वामी दयानंद सरस्वती जानकारी (Swami Dayanand Saraswati   information) , स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (biography of Swami Dayanand Saraswati   ) , आर्य समाज संस्थापक (arya samaj founder) , स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ था (when was Swami Dayanand Saraswati   born ) , स्वामी दयानंद सरस्वती विकिपीडिया (Swami Dayanand Saraswati   wikipedia ) , स्वामी दयानंद की मृत्यु कब हुई (Dayanand Saraswati  death) , स्वामी दयानंद सरस्वती की 5 शिक्षाएँ (5 teachings of Swami Dayanand Saraswati   ) , स्वामी दयानंद सरस्वती पर संक्षिप्त लिख (write a short note on Swami Dayanand Saraswati  ) , दयानंद सरस्वती के विचार (Swami Dayanand Saraswati   quotes ) , स्वामी दयानंद सरस्वती कोट्स इन हिंदी (Dayanand Saraswati  quotes in hindi ) , स्वामी दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार ( Swami Dayanand Saraswati   Social thoughts) , स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार (Swami Dayanand Saraswati    Religious thoughts) , प्रेरणादायक स्वामी दयानंद सरस्वती कोट्स(inspirational Swami Dayanand Saraswati   quotes ) , स्वामी दयानंद सरस्वती images (Dayanand Saraswati  images) , स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तकें (Swami Dayanand Saraswati   books ) , स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तकें pdf (Swami Dayanand Saraswati   books pdf ) इत्यादि इसीलिए इन सभी जानकारी को प्राप्त करने के लिए हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़िए।

Swami Dayanand Saraswati  overview

टॉपिक5 मार्च को मनाई जाएगी स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती, जाने उनके जीवन के बारे में सब कुछ
लेख प्रकारआर्टिकल
जयंतीदयानंद सरस्वती जयंती
जयंती की तिथि5 मार्च
जयंती का दिनमंगलवार
महत्वआर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती की जयंती
उद्देश्यवेद एवं शिक्षा को बढ़ावा देना
दयानंद सरस्वती की मृत्यु तिथि30 October 1883

दयानंद सरस्वती इन हिंदी (Swami Dayanand Saraswati   in hindi)

स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand) Saraswati, जिन्हें “महर्षि दयानंद” के नाम से भी जाना जाता है, भारत India के एक महान समाज सुधारक, धार्मिक नेता और वेदों के प्रख्यात विद्वान थे। उनका जन्म 1824 में हुआ था। उन्होंने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा और जातिवाद को दूर करना था। उन्होंने वेदों को आधार मानकर सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार किया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, स्वदेशी और स्वराज्य जैसे मुद्दों पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना भी की, जिनमें “सत्यार्थ प्रकाश” सबसे प्रसिद्ध है।

उनका जीवन सादगी और त्याग का प्रतीक था। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की भलाई और लोगों को शिक्षित करने में समर्पित कर दिया। 1883 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।

दयानंद सरस्वती कौन हैं ? ( who is Dayanand Saraswati  )

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati, जिन्हें मूलशंकर moolshankar नाम से भी जाना जाता है, 19वीं शताब्दी के एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक और आर्य समाज के संस्थापक थे। उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। वेदों को ईश्वर का सच्चा ज्ञान मानते हुए, उन्होंने “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया और समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कर्मकांडों, मूर्तिपूजा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने वेदों का अध्ययन और प्रचार-प्रसार किया, स्त्रियों की शिक्षा और स्वतंत्रता का समर्थन किया, तथा जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाई।

स्वामी दयानंद सरस्वती जानकारी (Swami Dayanand Saraswati   Information)

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा नामक स्थान में एक ब्राह्मण Brahmin परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम मूलशंकर तिवारी Mool Shankar Tiwari था। वे बचपन से ही जिज्ञासु और अध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद घर छोड़ दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।

सन्यास और शिक्षा:

मूलशंकर Mool Shankar ने कई वर्षों तक भारत India के विभिन्न भागों में भ्रमण किया और विभिन्न धर्मों और दर्शनों का अध्ययन किया। उन्होंने वेदों, उपनिषदों, और अन्य हिंदू ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। 1860 में उन्होंने स्वामी विरजानंद से दीक्षा प्राप्त की और स्वामी दयानंद सरस्वती बन गए।

आर्य समाज की स्थापना:

1875 में स्वामी दयानंद ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य वेदों को आधार बनाकर हिंदू धर्म का पुनरुद्धार करना था। उन्होंने जातिवाद, मूर्तिपूजा, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।

सामाजिक सुधार:

स्वामी दयानंद सरस्वती ने महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी।

शिक्षा और साहित्य:

स्वामी दयानंद सरस्वती ने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार माना। उन्होंने आर्य समाज के तहत अनेक स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की। उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश”, “ऋग्वेद भाष्यभूमिका”, और “गोकरुणानिधि” जैसी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं।

स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (biography of Swami Dayanand Saraswati   )

  • जन्म: 12 फरवरी 1824, टंकारा, गुजरात
  • मृत्यु: 30 अक्टूबर 1883, अजमेर, राजस्थान
  • कार्य: समाज सुधारक, धार्मिक नेता, आर्य समाज के संस्थापक

प्रारंभिक जीवन:

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। बचपन से ही वे जिज्ञासु और अध्यात्म में रुचि रखने वाले थे। 14 वर्ष की आयु में वे घर छोड़कर सन्यासी बन गए। उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों में घूमकर वेदों का अध्ययन किया।

धार्मिक सुधार:

स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों को सभी धर्मों का मूल स्रोत माना। उन्होंने वेदों की ओर लौटने का नारा दिया और मूर्तिपूजा, कर्मकांडों और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। उन्होंने जाति-पांति और लिंगभेद के आधार पर भेदभाव का भी विरोध किया।

आर्य समाज की स्थापना:

7 अप्रैल 1875 को स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज का उद्देश्य वेदों के आधार पर समाज का सुधार करना था। आर्य समाज ने शिक्षा, महिलाओं की स्थिति में सुधार, जाति-पांति और लिंगभेद के खिलाफ लड़ाई, और सामाजिक न्याय के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।

कार्य:

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati ने वेदों की व्याख्या करते हुए कई पुस्तकें लिखीं। इनमें से ‘सत्यार्थ प्रकाश’ ‘Satyarth Prakash’ उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है। उन्होंने भारत India में कई स्थानों पर भ्रमण करते हुए प्रवचन दिए और लोगों को वेदों के ज्ञान से अवगत कराया।

मृत्यु:

30 अक्टूबर 1883 को स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु अजमेर ajmer में हुई। उनकी मृत्यु के बाद आर्य समाज ने भारत India में सामाजिक और धार्मिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य करना जारी रखा।

स्वामी दयानंद सरस्वती के योगदान:

  • वेदों की ओर लौटने का नारा
  • आर्य समाज की स्थापना
  • सामाजिक सुधार के लिए कार्य
  • शिक्षा और महिलाओं की स्थिति में सुधार
  • जाति-पांति और लिंगभेद के खिलाफ लड़ाई
  • सामाजिक न्याय

आर्य समाज संस्थापक (Arya Samaj Founder)

आर्य समाज Arya Samaj 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati द्वारा स्थापित एक हिंदू सुधार आंदोलन है। इसका उद्देश्य वेदों की मूल शिक्षाओं को पुनर्जीवित करना और सामाजिक बुराइयों को दूर करना था।

आर्य समाज के मुख्य सिद्धांत:

  • ईश्वर एक है और सर्वशक्तिमान है।
  • वेद ईश्वर की वाणी हैं और सर्वोच्च प्रामाण्य हैं।
  • मूर्ति पूजा, अवतारवाद, और कर्मकांडों का विरोध।
  • जाति-पांति का विरोध, और बाल विवाह का विरोध।
  • शिक्षा का प्रसार, विधवा पुनर्विवाह, और स्वदेशी का समर्थन।

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ था (When was Swami Dayanand Saraswati   Born )

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के मोरबी में हुआ था। उनका जन्म मूल शंकर तिवारी Mool Shankar Tiwari के नाम से हुआ था, लेकिन बाद में उन्होंने संन्यास ले लिया और दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati के नाम से जाने गए।

स्वामी दयानंद सरस्वती विकिपीडिया (Swami Dayanand Saraswati   wikipedia )

महर्षि दयानन्द सरस्वती (1824-1883) आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम ‘मूलशंकर’ था। उन्होंने वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए मुम्बई में आर्यसमाज (श्रेष्ट जीवन पद्धति) की स्थापना की। ‘वेदों की ओर लौटो’ यह उनका ही दिया हुआ प्रमुख नारा था । महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् १९३२(सन् १८७५) को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज Arya Samaj के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए है। संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक physical, आत्मिक spiritual और सामाजिक उन्नति social progress करना।

स्वामी दयानंद की मृत्यु कब हुई (Dayanand Saraswati  death)

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati जी की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर, राजस्थान में हुई थी। उनकी मृत्यु 59 वर्ष की आयु में हुई थी। उनकी मृत्यु का कारण अज्ञात है।

स्वामी दयानंद सरस्वती की 5 शिक्षाएँ (5 teachings of Swami Dayanand Saraswati )

दयानंद Dayanand के भारत India के दृष्टिकोण में एक वर्गहीन और जातिविहीन समाज, एक एकजुट भारत (धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय रूप से), और विदेशी शासन से मुक्त भारत शामिल था, जिसमें आर्य धर्म सभी का सामान्य धर्म था। उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली और उन्हें “भारत की युगीन शिला”, हिंदू धर्म का अचूक और सच्चा मूल बीज माना। उन्होंने “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया। दयानंद ने हिंदू रूढ़िवादिता, जातिगत कठोरता, अस्पृश्यता, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, जादू, आकर्षण और पशु बलि में विश्वास, समुद्री यात्राओं पर प्रतिबंध, श्राद्ध के माध्यम से मृतकों को खाना खिलाना आदि पर सीधा हमला कियादयानंद ने चतुर्वर्ण प्रणाली की वैदिक धारणा की सदस्यता ली, जिसमें एक व्यक्ति किसी भी जाति में पैदा नहीं हुआ था, बल्कि उस व्यक्ति के व्यवसाय के अनुसार उसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र के रूप में पहचाना जाता था। स्वामी दयानंद ने भी हिंदू जाति को “बच्चों के बच्चे” कहा। अंतरजातीय विवाह और विधवा पुनर्विवाह को भी प्रोत्साहित किया गया। महिलाओं के लिए समान दर्जा समाज की मांग थी, अक्षरशः और भावात्मक रूप से। इसलिए, स्वामी दयानंद इसके पक्ष में थे और उन्होंने समाज में महिलाओं के समान अधिकारों की मांग की। यह महिलाओं की स्थिति को बढ़ाने और उन्हें समानता और समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। उन्होंने सभी भौतिक अस्तित्व के प्रचलित विषय के रूप में माया (भ्रम) में पलायनवादी हिंदू विश्वास की कड़ी आलोचना की और भगवान के साथ मिलन की तलाश के लिए इस बुरी दुनिया से बचकर मोक्ष प्राप्त करने के संघर्ष के रूप में मानव जीवन का लक्ष्य बताया। इसके बजाय, उन्होंने इस बात की वकालत की कि ईश्वर, आत्मा और पदार्थ (प्रकृति) अलग और शाश्वत संस्थाएँ हैं और प्रत्येक व्यक्ति को मानव आचरण को नियंत्रित करने वाले शाश्वत सिद्धांतों के प्रकाश में अपना उद्धार करना होगा। इस प्रकार, उन्होंने प्रचलित लोकप्रिय धारणा पर हमला किया कि प्रत्येक व्यक्ति ने नियति (भाग्य) और कर्म (कर्मों) के सिद्धांतों के अनुसार योगदान दिया और समाज से वापस पाया। उनका मानना था कि दुनिया एक युद्धक्षेत्र है जहां हर व्यक्ति को अपने उद्धार के लिए सही कर्मों का सहारा लेना होगा और मनुष्य भाग्य द्वारा नियंत्रित कठपुतली नहीं हैं। 

स्वामी दयानंद सरस्वती पर संक्षिप्त लेख (write a short Note on Swami Dayanand Saraswati)

12 फरवरी 1824 को जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati, आधुनिक भारत India के इतिहास में एक महान समाज सुधारक, धार्मिक नेता और शिक्षाविद् थे। वेदों को आधार बनाकर उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा, जातिवाद और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। 1875 में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसके मुख्य सिद्धांत थे – ईश्वर एक है, वेद सर्वोच्च ज्ञान का स्रोत हैं, सभी मनुष्य समान हैं, और कर्मों का फल अवश्य मिलता है। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश, गोकरुणानिधि, आर्योद्देश्यरत्नमाला आदि ग्रंथों की रचना भी की।

शिक्षा education पर उनका विशेष बल था। उन्होंने स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह और जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) स्कूलों की स्थापना की, जो आज भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। 30 अक्टूबर 1883 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचारों और कार्यों ने भारत India के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन पर गहरी छाप छोड़ी। 

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati को आधुनिक भारत का निर्माता, हिंदू पुनर्जागरण के जनक, और भारतीय राष्ट्रवाद के प्रणेता के रूप में जाना जाता है।

दयानंद सरस्वती के विचार (Swami Dayanand Saraswati Quotes )

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati जी एक महान धार्मिक और सामाजिक सुधारक थे। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से भारतीय समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करते हैं.

स्वामी दयानंद सरस्वती कोट्स इन हिंदी (Dayanand Saraswati  Quotes in Hindi )

  • “सभी धर्मों religion का सार सत्य truth होना और दूसरों का भला करना है।”
  • “वेद दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ हैं, और उनमें वह ज्ञान है जो कालातीत है।”
  • “शिक्षा किसी भी समाज के विकास की कुंजी है।”
  • “हिन्दू धर्म  ज्ञान एवं विवेक का धर्म है, अंध विश्वास का नहीं है।”
  • “मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना है।”
  • “सत्य की खोज प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।”
  • “धर्म को व्यक्तियों को बेहतर इंसान बनने में मदद करनी चाहिए।”
  • “धर्म के चार स्तंभ हैं सत्य, अहिंसा, पवित्रता और आत्मसंयम।”

स्वामी दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार (Swami Dayanand Saraswati Social thoughts)

  • जाति-प्रथा का विरोध: उन्होंने जाति-प्रथा का कड़ा विरोध किया और सभी मनुष्यों को समान माना।
  • स्त्री शिक्षा का समर्थन: उन्होंने स्त्री शिक्षा का समर्थन किया और महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की बात कही।
  • विधवा पुनर्विवाह का समर्थन: उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और बाल विवाह का विरोध किया।
  • समाज सुधार: उन्होंने अस्पृश्यता, बाल विवाह, बहुविवाह, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और समाज सुधार के लिए कार्य किया।
  • राष्ट्रीयता की भावना: उन्होंने राष्ट्रीयता Nationalismकी भावना को बढ़ावा दिया और भारत को एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का सपना देखा।

स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार (Swami Dayanand Saraswati Religious Thoughts)

  • एक ईश्वरवाद: स्वामी दयानंद सरस्वती जी एकेश्वरवाद के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि ईश्वर निर्गुण, निराकार, सर्वशक्तिमान और सृष्टिकर्ता है।
  • वेदों की सर्वोच्चता: वेदों को उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान का स्रोत माना और वेदों की शिक्षाओं का पालन करने पर बल दिया।
  • मूर्तिपूजा का विरोध: उन्होंने मूर्तिपूजा का कड़ा विरोध किया और मूर्तियों को ईश्वर का प्रतीक नहीं माना।
  • कर्मकांडों का विरोध: उन्होंने अनावश्यक कर्मकांडों का विरोध किया और कर्मों के महत्व पर बल दिया।
  • सर्वधर्म समभाव: उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और सभी धर्मों के बीच समानता का समर्थन किया।

प्रेरणादायक स्वामी दयानंद सरस्वती कोट्स (Inspirational Swami Dayanand Saraswati Quotes )

  • “मनुष्य Human को दिया गया सबसे बड़ा संगीत वाद्ययंत्र उसकी आवाज़ है।”
  • “दुनिया world को वह सर्वश्रेष्ठ दो जो आपके पास है और सर्वश्रेष्ठ आपके पास वापस आएगा।”

स्वामी दयानंद सरस्वती Images (Dayanand Saraswati  Images)

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati जी की कुछ विशेष तस्वीर photos हम आपसे साझा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो आप इन तस्वीरों को सरलता पूर्वक डाउनलोड भी कर सकते हैं ।

स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तकें (Swami Dayanand Saraswati books )

सत्यार्थ प्रकाश, सत्यार्थ भूमिका, संस्कारविधि, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका, ऋग्वेद भाष्यम् और यजुर्वेद भाष्यम् इत्यादि स्वामी दयानंद सरस्वती जी की प्रमुख पुस्तक हैं।

स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तकें pdf (Swami Dayanand Saraswati books pdf )

स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati जी की विशेष पुस्तकों को पढ़ने के लिए हम आपको इन पुस्तकों का पीडीएफ शेयर कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो आप इन सभी पीडीएफ को डाउनलोड कर सकते हैं और किताबों को पढ़ सकते हैं ।

Summary

स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जीवन त्याग और समर्पण से भरा था। उन्होंने वेदों को ‘आर्यों’ का धर्मग्रंथ घोषित किया और कर्मकांड, मूर्तिपूजा, जातिवाद, और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। ‘आर्य समाज’ ने शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा, और अस्पृश्यता निवारण जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जयंती से सम्मानित या विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ अवश्य साझा करें साथ ही हमारे अन्य आर्टिकल को भी जरूर पढ़ें ।

FAQ’s

Q. स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

Ans.  उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था।

Q. उनका बचपन का नाम क्या था?

Ans. उनका बचपन का नाम मूलशंकर था।

Q. उन्होंने किस धार्मिक संगठन की स्थापना की?

Ans. उन्होंने 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।

Q. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य क्या था?

Ans. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य वेदों के अनुसार जीवन जीना और सामाजिक बुराइयों का विरोध करना था।

Q. स्वामी दयानंद सरस्वती ने किस ग्रंथ की रचना की?

Ans. उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश” ग्रंथ की रचना की।

Q. दयानंद सरस्वती जयंती 2024 की थीम क्या है?

Ans. दयानंद सरस्वती जयंती 2024 की थीम “आर्य समाज: वेदों की ओर लौटो, शिक्षा और आत्मनिर्भर भारत” है।

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सुरभि शर्मा
मेरा नाम सुरभि शर्मा है और मैंने पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। हमेशा से मेरी रुचि हिंदू साहित्य और धार्मिक पाठों के प्रति रही हैं। इसी रुचि के कारण मैं एक पौराणिक लेखक हूं। मेरा उद्देश्य भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों को सार्थकता से प्रस्तुत करके समाज को शिक्षा और प्रेरणा प्रदान करना है। मैं धार्मिक साहित्य के महत्व को समझती हूं और इसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प रखती हूं। मेरा प्रयास है कि मैं भारतीय संस्कृति को अधिक उत्कृष्ट बनाने में योगदान दे सकूं और समाज को आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकूं।