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Ganesh Chalisa: गणेश चालीसा का संपूर्ण पाठ और जाने इसका हिंदी अर्थ

Ganesh Chalisa
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गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa): हे गणेश भक्तों! क्या आप भी भगवान विध्नहर्ता की आराधना करना चाहते हैं और उनकी कृपा पाना चाहते हैं? क्या आप भी अपने जीवन में सफलता, समृद्धि और विघ्नों का नाश करना चाहते हैं? यदि हाँ, तो गणेश चालीसा आपके लिए एक अमोघ साधन है। गणेश चालीसा भगवान गणेश की स्तुति में लिखी गई एक प्रसिद्ध रचना है। इसके पाठ से न केवल भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं, बल्कि साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। परन्तु क्या आप जानते हैं गणेश चालीसा का वास्तविक अर्थ क्या है? इस लेख में हम गणेश चालीसा को हिंदी अनुवाद सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही हम गणेश चालीसा का पीडीएफ भी आपके लिए शेयर कर रहे हैं ताकि आप इसका प्रिंट आउट निकाल कर पूजा स्थल पर रख सकें और नित्य पाठ कर सकें।

तो देर किस बात की? चलिए गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) के रहस्यों को समझते हैं और भगवान गणेश (Ganesh Chalisa) की कृपा पाते हैं। पढ़िए यह लेख अंत तक और जानिए गणेश चालीसा का महत्व और प्रभाव…

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Table Of Content 

S.NO.प्रश्न
1गणेश चालीसा लिखित में
2गणेश चालीसा (अर्थ सहित)
3गणेश चालीसा इन हिंदी PDF
4गणेश चालीसा के फायदे

गणेश चालीसा लिखित में (Ganesh Chalisa Likhit Mein)

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॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल ॥॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥

गणेश चालीसा (अर्थ सहित) (Ganesh Chalisa Arth Sahit)

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॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल । विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥

हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हो, माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।

॥चौपाई॥
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥ जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥ वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥ ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, हर कार्य को शुभ व कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो। घर-घर सुख प्रदान करने वाले हे हाथी से विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान आपकी जय हो। श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं, आप ही बुद्धि के विधाता है बुद्धि देने वाले हैं। हाथी के सूंड सा मुड़ा हुआ आपका नाक सुहावना है पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रुपी तीन रेखाएं भी मन को भा जाती हैं अर्थात आकर्षक हैं। आपकी छाती पर मणि मोतियां की माला है आपके शीष पर सोने का मुकुट है व आपकी आखें भी बड़ी बड़ी हैं। आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है व सुगंधित फूल चढाए जाते हैं। पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी इतनी आकर्षक हैं कि ऋषि मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुश हो जाता है। हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है। ऋद्धि-सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं व आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी ॥ एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥ अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला ॥ गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥ अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ व मंगलकारी है। एक समय गिरिराज कुमारी यानि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया। जब उनका तप व यज्ञ अच्छे से संपूर्ण हो गया तो ब्राह्मण के रुप में आप वहां उपस्थित हुए। आपको अतिथि मानकार माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर आपने माता पार्वती को वर दिया। आपने कहा कि हे माता आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा। जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा। इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥ सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा ॥ निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥

माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरु किया, माता पार्वती आपको गौर से देखती रही आपका मुख बहुत ही सुंदर था माता पार्वती में आपकी सूरत नहीं मिल रही थी। सभी मगन होकर खुशियां मनाने लगे नाचने गाने लगे। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे। भगवान शंकर माता उमा दान करने लगी। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन करने के लिए आने लगे। आपको देखकर हर कोई बहुत आनंदित होता। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आये। लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे (दरअसल शनि को अपनी पत्नी से श्राप मिला हुआ था कि वे जिस भी बालक पर मोह से अपनी दृष्टि डालेंगें उसका शीष धड़ से अलग होकर आसमान में उड़ जाएगा) और बालक को देखना नहीं चाह रहे थे।

गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥ कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥ नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥ पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गई व शनि को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे के आने से व इस उत्सव को मनता हुआ देखकर खुश नहीं हैं। इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट हो जाएगा। लेकिन इतने पर माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ व उन्होंनें शनि को बालक देखने के लिए कहा। जैसे ही शनि की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया।

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥ हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥ तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥ बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥ नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥

अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई व बेहोश होकर गिर गई। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया। उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां पंहुचे व अपने सुदर्शन चक्कर से हाथी का शीश काटकर ले आये। इस शीष को उन्होंनें बालक के धड़ के ऊपर धर दिया। उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर उसमें प्राण डाले। उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा व वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी। बाकि देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिये।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥ चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥ धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा आने की कही। आदेश होते ही कार्तिकेय तो बिना सोचे विचारे भ्रम में पड़कर पूरी पृथ्वी का ही चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े, लेकिन आपने अपनी बुद्धि लड़ाते हुए उसका उपाय खोजा। आपने अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये। इस तरह आपकी बुद्धि व श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए व देवताओं ने आसमान से फूलों की वर्षा की।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई ॥ मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥ अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥

हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता। हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं, पापी हूं, दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी विनय आपकी प्रार्थना करूं। हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं। हे प्रभु दीन दुखियों पर अब दया करो और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।

गणेश चालीसा इन हिंदी PDF (Ganesh Chalisa In Hindi)

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गणेश चालीसा से संबंधित इस विशेष लेख में हम आपसे एक पीडीएफ भी शेयर कर रहे हैं इस वीडियो को डाउनलोड करने के बाद आप गणेश चालीसा को हिंदी में सरलता पूर्वक पढ़ सकते हैं।

गणेश चालीसा PDF Download

गणेश चालीसा के फायदे (Ganesh Chalisa ke Fayde)

गणेश चालीसा पढ़ने से कई लाभ प्राप्त होते हैं। गणेश चालीसा के फायदे इस प्रकार हैं:

  • जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है: गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से घर में सुख, शांति और खुशहाली बनी रहती है। यह ग्रहस्ती जीवन में सुख-शांति लाता है। गणेश चालीसा पाठ से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और गणपति बप्पा का आशीर्वाद बना रहता है।
  • बाधाओं और कष्टों से मुक्ति मिलती है: गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। गणेश चालीसा पढ़ने से जीवन की बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं। अगर आप किसी दुख या परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो गणेश चालीसा पढ़ने से उससे छुटकारा मिल सकता है।
  • नए कार्यों में सफलता मिलती है: भगवान गणेश की पूजा हर शुभ काम की शुरुआत में की जाती है। गणेश चालीसा का पाठ करने से कोई भी नया कार्य अच्छी तरह से संपन्न होता है। गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी विधि-विधान से पूजा करने के साथ-साथ गणेश चालीसा का पाठ भी करना चाहिए।

Conclusion

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) भक्ति और आस्था के साथ पढ़ी जाने वाली एक शक्तिशाली और लोकप्रिय प्रार्थना है। यह माना जाता है कि इसे पढ़ने से उन लोगों को आशीर्वाद, सुरक्षा और सफलता मिलती है जो इसका पाठ करते हैं। जन भक्ति गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) से संबंधित यह बेहद खास लेकर अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे और भी अन्य रोचक लेख जरूर पढ़िए साथ ही साथ हमारी वेबसाइट पर भी रोजाना विजिट करिए।

FAQ’s

Q. गणेश चालीसा क्या है?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) भगवान गणेश की स्तुति में लिखा गया एक भक्ति गीत है, जिसमें 40 छंद होते हैं। यह भजन हिंदू धर्म में विशेष रूप से गणेश चतुर्थी और अन्य धार्मिक अवसरों पर गाया जाता है।

Q. गणेश चालीसा का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का पाठ करने से मन की शांति, बुद्धि और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति के जीवन से बाधाओं और नकारात्मकता को दूर करने में सहायक होता है।

Q. गणेश चालीसा की रचना किसने की थी?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) की रचना संत तुलसीदास जी ने की थी। यह चालीसा तुलसीदास जी के प्रमुख भक्ति काव्य रचनाओं में से एक है।

Q. गणेश चालीसा का कौन सा छंद सबसे प्रसिद्ध है?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा” वाला छंद सबसे प्रसिद्ध है। यह छंद गणेश चालीसा का प्रमुख हिस्सा है और इसे हर पाठ में गाया जाता है।

Q. गणेश चालीसा के पाठ में कौन-कौन से राग का प्रयोग होता है?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) से का पाठ भिन्न-भिन्न रागों में किया जा सकता है, लेकिन इसे प्रायः भक्तिभाव से और सरलता से गाया जाता है। इसके लिए कोई विशेष राग आवश्यक नहीं है।

Q. गणेश चालीसा को कितना समय में पूरा किया जा सकता है?

Ans. गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) को आमतौर पर 5 से 10 मिनट में पढ़ा जा सकता है, क्योंकि इसमें कुल 40 छंद होते हैं। इसका पाठ सरल और छोटा होता है।