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Apara Ekadashi Katha: क्या है अपरा एकादशी कथा? नहीं पता, हमारे इस लेख में जानें

Apara Ekadashi Katha
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Apara Ekadashi Katha: हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। इन पवित्र अवसरों पर भक्त अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं, व्रत रखते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण व्रत है अपरा एकादशी, जो ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) का व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और वे दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पौराणिक कथाओं में अपरा एकादशी व्रत के महत्व और चमत्कारी प्रभाव का वर्णन मिलता है। इस लेख में हम अपरा एकादशी की कथा, इसके धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व, व्रत विधि और इसे मनाने के लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि कैसे यह व्रत हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है और हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जा सकता है।

तो चलिए, अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) की इस अद्भुत यात्रा पर निकलते हैं और जानते हैं कि कैसे यह पवित्र दिन हमारे जीवन को प्रकाशमान कर सकता है। आपको यह लेख पढ़ने के बाद अपरा एकादशी व्रत रखने की प्रेरणा जरूर मिलेगी और आप भी इस दिव्य अनुभव का हिस्सा बनना चाहेंगे….

Apara Ekadashi KathaTable Of Content 

S.NOप्रश्न
1क्या है अपरा एकादशी?
2कब है अपरा एकादशी?
3अपरा एकादशी का महत्व
4अपरा एकादशी क्यों मनाई जाती है?
5अपरा एकादशी का इतिहास
6अपरा एकादशी व्रत कथा
7अपरा एकादशी व्रत कथा पीडीएफ

क्या है अपरा एकादशी? (Kya Hai Apara Ekadashi)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi), जिसे ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी भी कहा जाता है, हिन्दुओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन होता है, जिस पर वे उपवास रखते हैं। यह दिन समृद्धि प्राप्त करने का और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा करने का एक शुभ दिन माना जाता है। इस व्रत का पालन करने वालों को धन और समृद्धि मिलती है। इसे हिन्दी मास ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि पर मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के मई या जून महीने में होता है। व्रत का आरंभ पूर्व दिन की संध्या से होता है और एकादशी तिथि समाप्त होने तक चलता है।

कब है अपरा एकादशी? (Kab Hai Apara Ekadashi)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) जिसे जलक्रीड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार 2024 में 2 और 3 जून को मनाया जाएगा। इस व्रत की शुरुआत 2 जून को सुबह 05:04 बजे होगी, और 3 जून को सुबह 08:05 बजे समाप्त होगी। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा की जाती है, और मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से अनंत धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। व्रत का पारण वैष्णव सम्प्रदाय के लिए 4 जून को सुबह 05:05 से 08:10 तक होगा।

अपरा एकादशी का महत्व (Apara Ekadashi Significance)

  • पापों से मुक्ति और भक्ति की प्राप्ति: अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) व्रत को श्रद्धा और निष्ठा के साथ करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से जीवन के सभी कष्टों और पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना, कथा श्रवण और जप-ध्यान करने से भक्ति की भावना प्रबल होती है और ईश्वर के प्रति समर्पण बढ़ता है।
  • समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति: ‘अपरा’ शब्द का अर्थ है ‘अनंत’ या ‘असीमित’, जो इस व्रत को करने से मिलने वाले अपार लाभों और आशीर्वादों का संकेत देता है। अपरा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को धन-संपत्ति, यश-कीर्ति और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देने से पुण्य का लाभ मिलता है।

अतः अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) व्रत को भक्ति और श्रद्धा के साथ करने से मोक्ष और भौतिक सुख-समृद्धि, दोनों की प्राप्ति होती है। यह व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

अपरा एकादशी क्यों मनाई जाती है? (Kyun Manai Jati Hai Apara Ekadashi)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित है और इसका पालन करने से अनंत पुण्य और आशीर्वाद मिलने का विश्वास है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त प्रातः काल उठकर स्नान-ध्यान के बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करते हैं, पीले वस्त्र अर्पित करते हैं। दिन भर विष्णु सहस्रनाम और अन्य पवित्र ग्रंथों का पाठ करते हैं। अनाज, दाल और कुछ सब्जियों का त्याग करते हैं। अपरा एकादशी का व्रत आध्यात्मिक और भौतिक लाभ देने वाला माना जाता है।

अपरा एकादशी का इतिहास (Apara Ekadashi History)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi), जिसे अचला और अजला एकादशी भी कहते हैं, भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण तिथि है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि के दिन इसका व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पालन से मानसिक शांति मिलती है, और यह उपासकों को हमेशा वरदान देती है।

व्रत की प्रक्रियाएं दसवें दिन से शुरू होती हैं, जिसमें उपवास, पूजा, और प्रसाद का वितरण शामिल होते हैं।  उपासकों को अगरबत्ती, फूल, तुलसी के पत्ते चढ़ाने की आवश्यकता होती है, और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की आरती करनी चाहिए।  व्रत के दौरान, उपासकों को भगवान विष्णु की कथाएं पढ़ने और “कृष्ण सहस्रनाम” का पाठ करने का अनुशासन बनाए रखना चाहिए। अपरा एकादशी के दिन, उपासकों को भोजन, वस्त्र, और उपहार भेंट करने का भी आवाहन किया जाता है। यह व्रत एकादशी तिथि के पूरा होने तक चलता है, और उसके बाद सात्विक भोजन से उपवास खोला जाता है। इस तरह, अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) का व्रत एक अत्यंत शुभ और पवित्र अनुष्ठान होता है, जिसका पालन करने से उपासकों को अनेक आशीर्वाद और लाभ प्राप्त होते हैं।

अपरा एकादशी व्रत कथा क्या है? (Apara Ekadashi Vrat Katha)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi), जिसे अचला एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और इसका नाम “अपरा” का अर्थ है “अनंत देने वाली”, जो इस व्रत को मानने से प्राप्त होने वाले अपार आशीर्वाद और लाभों को दर्शाता है।

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) की कथा दो भाइयों, महिध्वज और वज्र ध्वज के इर्द-गिर्द घूमती है, जो क्रमशः धर्म और अधर्म के प्रतीक थे। महिध्वज एक सदाचारी राजा थे, जबकि वज्रध्वज एक क्रूर, अनैतिक और ईर्ष्यालु व्यक्ति थे जो अपने भाई से द्वेष रखते थे। एक दिन, वज्रध्वज ने अपने भाई की हत्या कर दी और उनके शव को एक पीपल के पेड़ के पास जंगल में छोड़ दिया। राजा महिध्वज की आत्मा भूत का रूप ले लिया और उस क्षेत्र में लोगों में भय और अशांति पैदा करने लगी। एक रात, ऋषि धौम्य उस भूतिया क्षेत्र से गुजरे और भूतिया राजा की उपस्थिति को महसूस किया। अपनी आध्यात्मिक दृष्टि और शक्तियों का उपयोग करके, उन्होंने पूरी स्थिति को समझा और मृत राजा की मदद करने का निर्णय लिया। उन्होंने भूत को आमंत्रित करने के लिए एक अनुष्ठान किया और फिर उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद करने के लिए दिव्य ज्ञान प्रदान किया।

ऋषि धौम्य ने फिर राजा महिध्वज के उद्धार में और मदद करने के लिए अपरा एकादशी व्रत करने का निर्णय लिया। व्रत पूरा करने के बाद, उन्होंने अर्जित पुण्य (पुण्य) को भूतिया राजा को स्थानांतरित कर दिया, जिन्हें फिर अपने प्रेत (भूत) रूप से मुक्त कर दिया गया और एक दिव्य शरीर प्राप्त हुआ। उन्होंने ऋषि का धन्यवाद किया और एक दिव्य रथ में स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया।

अपरा एकादशी व्रत कथा पीडीएफ (Apara Ekadashi Vrat Katha PDF)

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) के व्रत से संबंधित यह विशेष पीडीएफ हम आपसे साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करके आप अपरा एकादशी की कथा को कभी भी पढ़ सकते हैं।

Conclusion:

अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) का व्रत आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का द्वार खोलता है। इस व्रत को विधि-विधानपूर्वक रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अपरा एकादशी से संबंधित यह लेखक अगर आपको पसंद आया हो तो हमारे अन्य सभी व्रत से संबंधित लेख भी जरूर पढ़िए, और हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in पर भी रोजाना विजिट करें।

FAQ’s:

Q. भगवान विष्णु कौन हैं?

Ans. भगवान विष्णु हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उन्हें ब्रह्मांड के संरक्षक के रूप में जाना जाता है।

Q. अपरा एकादशी का महत्व क्या है?

Ans. अपरा एकादशी का पालन करने से मान्यता है कि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को मोक्ष प्राप्त होता है।

Q. महीद्वाज कौन थे?

Ans. महीद्वाज एक धार्मिक और दयालु राजा थे, जिन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति की थी।

Q.वज्रध्वज कौन थे?

Ans. वज्रध्वज महीद्वाज के छोटे भाई थे, जो बुरे थे और अपने भाई को मारकर राज्य प्राप्त करना चाहते थे।

Q. महीद्वाज की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा का क्या हुआ?

Ans. महीद्वाज की असामयिक मृत्यु के कारण, उनकी आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकी और एक पीपल के पेड़ के नीचे फंस गई।

Q. संत ने महीद्वाज की आत्मा की मदद कैसे की?

Ans. संत ने अपरा एकादशी व्रत का पालन किया और महीद्वाज की आत्मा पर सभी गुणों को न्योछावर किया, जिससे उसे मोक्ष मिला।