Bhagwan Shiv: भगवान शिव (Lord Shiva) – हिंदू धर्म (Hindu religion) के सबसे प्रमुख देवताओं में से एक। उनके अनेक रूप और प्रतीक हैं, जिनमें से एक है उनकी तीसरी आंख। यह आंख उनके माथे के बीच में स्थित है और आध्यात्मिक ज्ञान, अंतर्दृष्टि और विनाश की शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को यह तीसरी आंख कैसे और क्यों प्राप्त हुई? शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव (Lord Shiva) की यह तीसरी आंख तब खुलती है जब संसार में अधर्म और अत्याचार बढ़ जाता है। यह विनाश और रौद्र का प्रतीक है। साथ ही यह आंख आत्म-साक्षात्कार और परम सत्य को देखने की शक्ति भी प्रदान करती है। योग में भी तीसरी आंख को आज्ञा चक्र या भ्रमध्य के रूप में जाना जाता है जो उच्च चेतना का द्वार है।
तो आइए जानें इस रहस्यमयी तीसरी आंख के बारे में और भी रोचक तथ्य है। इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि भगवान शिव (Lord Shiva) की तीसरी आंख का क्या महत्व है, उन्हें यह कैसे मिली और इससे जुड़ी अन्य दिलचस्प कहानियां और मान्यताएं क्या हैं। तो हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ते रहिए…
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भगवान शिव कौन हैं (Who is Lord Shiva)
भगवान शिव (Lord Shiva) हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे विष्णु और ब्रह्मा के साथ हिंदू त्रिमूर्ति का हिस्सा हैं। शिव को महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि नामों से भी जाना जाता है। वे सृष्टि के संहारक माने जाते हैं। शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है। उनका वाहन नंदी है और वे अपने माथे पर तीसरा नेत्र और गले में सर्पों की माला धारण करते हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है जिसमें वे अपने जटाजूट में गंगा और चंद्रमा को धारण करते हैं।
भगवान शिव (Lord Shiva) के नाम और कथाएं कल्पवृक्ष के समान मानी जाती हैं जो मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष प्रदान करती हैं। शिव और आत्मा में कोई अंतर नहीं माना जाता है। उनकी पूजा और आराधना से भक्तों को आशीर्वाद और मुक्ति मिलती है।
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भगवान शिव की तीसरी आंख का रहस्य (Secret of Lord Shiva’s third Eye)
भगवान शिव की तीसरी आंख का पौराणिक रहस्य इस प्रकार है: पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान शिव (Lord Shiva) ने हिमालय पर्वत (Himalaya) पर एक सभा का आयोजन किया था जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानी लोग आमंत्रित थे। इसी सभा के दौरान माता पार्वती (Goddess Parvati) वहां पहुंचीं और उन्होंने मनोरंजन के भाव से भगवान शिव (Lord Shiva) की आंखों पर अपने दोनों हाथ रख दिए, और भगवान शिव के दोनों आंखों को अपने हाथों से छुपा लिया। इससे सृष्टि में अंधकार छा गया, सूर्य का प्रकाश समाप्त हो गया और धरती पर हाहाकार मच गया।
भगवान शिव (Lord Shiva) से यह दृश्य देखा नहीं गया और उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया जिससे सृष्टि में पुनः प्रकाश फैल गया। इस ज्योतिपुंज को ही शिवजी की तीसरी आंख कहा गया। जब पार्वती ने शिवजी से इस तीसरी आंख का रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी आंखें जगत की पालनहार हैं। यदि वे ज्योतिपुंज प्रकट नहीं करते तो सृष्टि का विनाश हो जाता।
शिवजी की तीसरी आंख को ‘त्रितीय नेत्र’ या ‘त्रिलोचन’ भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, यह आंख ब्रह्मांड में सब कुछ देखने की शक्ति रखती है, उन चीजों को भी जो सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देतीं। जब शिव अपनी तीसरी आंख खोलते हैं तो एक विशाल ऊर्जा निकलती है जिससे वे ब्रह्मांड में सब कुछ स्पष्ट रूप से देख पाते हैं।
शिव की तीसरी आंख को ‘आज्ञा चक्र’ से भी जोड़ा जाता है जो ‘विवेक बुद्धि’ या विवेक की शक्ति का स्रोत माना जाता है। यह आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है। अग्नि की तरह ही भगवान शिव की तीसरी आंख पापियों को कहीं से भी खोज निकाल कर उन्हें नष्ट कर देती है। इसलिए दुष्ट आत्माएं उनकी तीसरी आंख से भयभीत रहती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, जब विनाश का अंतिम समय आता है या सृष्टि पर असुरों (Demons) का अत्याचार बढ़ जाता है तब भगवान शिव Lord Shiva अपनी तीसरी आंख खोलते हैं। मान्यता है कि सृष्टि को बचाने के लिए महादेव (Lord Shiva) ने सबसे पहले अपनी तीसरी आंख खोली थी। उनकी आधी खुली तीसरी आंख यह भी संकेत करती है कि संपूर्ण जगत की प्रक्रिया चल रही है जो न तो आदि है और न ही अंत, यह तो अनंत है।
इस प्रकार, भगवान शिव (Lord Shiva) की तीसरी आंख पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जो सृष्टि के पालन, विनाश और पुनर्निर्माण से जुड़ी हुई है। यह आध्यात्मिक ज्ञान, विवेक और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
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भगवान शिव की तीसरी आंख का महत्व (Significance of the Third Eye of Lord Shiva)
भगवान शिव (Lord Shiva) की तीसरी आंख, जिसे ‘तीसरी आंख’ या ‘दिव्य दृष्टि’ कहा जाता है, हिन्दू पुराणों में गहरे महत्व की प्रतीक है। यह आंख उनके माथे के केंद्र में स्थित होती है और इसे दिव्य दृष्टि का स्रोत माना जाता है। शिव इस आंख का उपयोग भौतिक जगत से परे आत्मज्ञान और आध्यात्मिक जगत को देखने के लिए करते हैं।यह आंख शिव की अपार शक्ति, ज्ञान, और दिव्य दृष्टि का प्रतीक है
भगवान शिव (Lord Shiva) की यह दिव्यादृष्टि सृष्टि के विनाश का कारण बन सकता है, जो उनकी अपार शक्ति को दर्शाता है। यह भगवान शिव (Lord Shiva) के क्रोध का प्रतीक भी है, जैसा कि कामदेव की कहानी में दिखाया गया है, जिसने शिव के ध्यान को भंग करने की कोशिश की और फिर भस्म हो गया।
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भगवान शिव ने कामदेव को अपनी तीसरी आंख से भस्म क्यों किया था? (Why did Lord Shiva incinerate Kamadeva with his third eye?)
भगवान शिव (Lord Shiva) और कामदेव की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रसिद्ध कहानी है। पुराणों के अनुसार, एक बार माता पार्वती भगवान शिव (Lord Shiva) से विवाह करना चाहती थीं। वे भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं, लेकिन शिव जी ध्यान में लीन थे और उनकी ओर ध्यान नहीं दे रहे थे। सभी देवता चिंतित थे कि शिव की तपस्या कैसे भंग की जाए।
तब कामदेव (Kamdev) ने पार्वती (Goddess Parvati) की कोशिशों से प्रसन्न होकर शिव की तपस्या भंग करने का बड़ा फैसला किया। भगवान कामदेव (Kamdev) ने शिव (Lord Shiva) पर अपना पुष्प बाण चलाया, जिससे शिव की तपस्या टूट गई। इससे क्रोधित होकर शिव ने अपनी तीसरी आँख खोली और कामदेव भस्म हो गए। कामदेव की पत्नी रति विधवा हो गईं।
जब शिव का क्रोध शांत हुआ तो उनकी नज़र पार्वती पर पड़ी और उन्होंने पार्वती से विवाह करने का निर्णय लिया। लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि कामदेव ने कोई अपराध नहीं किया था बल्कि भक्ति भाव से काम किया था, तो वे प्रसन्न हुए और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। शिव ने कामदेव को नया नाम और नया रूप दिया और घोषित किया कि वह अब निराकार रहेंगे। यह दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा का दिन था, जिसे होली के रूप में मनाया जाता है।
शिव और कामदेव की यह कथा होली के उत्सव से जुड़ी हुई है। यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। यह भी कहा जाता है कि होली के दिन शिव पूजा करने से कुंडली में काल सर्प दोष भी दूर हो जाता है। इस पर्व के दौरान खीरा और नींबू का सेवन करने से वजन घटाने और कई अन्य स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं।
Conclusion:
भगवान शिव (Lord Shiva) हिंदू धर्म में एक जटिल और महत्वपूर्ण देवता हैं। वे विनाश और रचना, परिवर्तन और मोक्ष के देवता हैं। वे दयालु और रक्षक भी हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। भगवान शिव की तीसरी आंख के रहस्य से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया इस लेख को अपने परिवारजनों एवं मित्र गणों के साथ अवश्य साझा करें और अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो उसे कॉमेंट बॉक्स में जाकर जरुर पूछे, हम आपके सभी प्रश्नों का जवाब देने का प्रयास करेंगे। ऐसे ही अन्य लेख को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट janbhakti.in पर रोज़ाना विज़िट करें ।
FAQ’s:
Q. भगवान शिव को आदि देव क्यों कहा जाता है?
Ans. भगवान शिव को आदि देव कहा जाता है क्योंकि वे पृथ्वी पर जीवन के प्रसार की शुरुआत करने वाले पहले देवता माने जाते हैं। उन्हें सृष्टि के आदि कारण और ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में देखा जाता है।
Q. भगवान शिव के प्रमुख आयुध क्या हैं?
Ans. भगवान शिव के प्रमुख आयुधों में पिनाक धनुष, भावर्वेंदु और सुदर्शन चक्र, पाशुपतास्त्र और त्रिशूल शामिल हैं। ये आयुध उनकी शक्ति और बुराई पर विजय का प्रतीक हैं।
Q. भगवान शिव के प्रमुख गण कौन हैं?
Ans. भगवान शिव के प्रमुख गणों या साथियों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंडीस, नंदी, शृंगी, भृंगिरी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय शामिल हैं। ये गण शिव की सेवा करते हैं।
Q. भगवान शिव की पूजा कौन-कौन करता है?
Ans. भगवान शिव की पूजा सभी करते हैं, जिनमें असुर, दैत्य, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष और अन्य शामिल हैं। शिव सर्वव्यापी हैं और सभी जीवों पर दया करते हैं। वे भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अपनी कृपा प्रदान करते हैं।
Q. भगवान शिव की शक्तियाँ कौन हैं?
Ans. पार्वती, गंगा, काली और उमा को भगवान शिव की शक्तियों के रूप में माना जाता है। पार्वती शिव की पत्नी और आधी शक्ति हैं। गंगा शिव के जटाजूट में विराजमान हैं और पवित्रता की प्रतीक हैं।
Q. सप्तऋषि कौन हैं और शिव से उनका क्या संबंध है?
Ans. सप्तऋषि को भगवान शिव के प्रारंभिक शिष्य माना जाता है, जो पृथ्वी पर उनके ज्ञान को फैलाने के लिए जिम्मेदार थे। सप्तऋषियों ने शिव से दीक्षा ली और उनके मार्गदर्शन में तपस्या की।