जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 (Jagannath Rath Yatra 2024) – जगन्नाथ रथ यात्रा एक अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा जो आपके दिल को छू लेगी। हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी शहर में एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। लाखों श्रद्धालु भक्त दूर-दूर से आकर इस दिव्य आयोजन का हिस्सा बनते हैं। यह है भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा, जो अपनी भव्यता, श्रद्धा और उल्लास के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath), उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विशाल और सुसज्जित रथों पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं। ये रथ इतने विशाल होते हैं कि उन्हें देखकर दंग रह जाएंगे। रथों को हजारों भक्त अपने हाथों से खींचते हैं और इसे पुण्य का काम मानते हैं। पूरा वातावरण भक्ति और उत्साह से सराबोर हो जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रथ यात्रा का इतिहास कितना प्राचीन और रोचक है? क्या आप जानना चाहेंगे कि इस यात्रा का क्या धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है? क्या आप उत्सुक हैं कि इस यात्रा की तैयारी कैसे की जाती है और इसमें क्या-क्या रस्में निभाई जाती हैं? यदि हां, तो यह लेख आपके लिए है। आइए, एक यात्रा पर चलते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा के इतिहास, परंपराओं और खूबसूरती को समझने की।
यह एक ऐसी यात्रा होगी जो न सिर्फ आपका ज्ञान बढ़ाएगी बल्कि आपके दिल को भी छू लेगी। तो चलिए शुरू करते हैं इस अद्भुत कहानी को जानने की यात्रा…
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Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 कब है? |
2 | रथ यात्रा क्या है? |
3 | रथ यात्रा का महत्व? |
4 | रथ यात्रा का इतिहास? |
5 | रथ यात्रा की रस्में? |
6 | रथ यात्रा का इतिहास? |
7 | भारत में रथ यात्रा उत्सव |
8 | आने वाले 10 सालों में रथ यात्रा |
जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 कब है (When is Jagannath Rath Yatra 2024)
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) , भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में वार्षिक रूप से आयोजित होने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिष्ठा को समर्पित है। रथ यात्रा हिन्दी माह अषाढ़ के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन आयोजित की जाती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जून या जुलाई में आता है। 2024 में, रथ यात्रा 7 जुलाई को होने वाली है। इस अवधि के दौरान, देवताओं के प्रति विभिन्न अनुष्ठान, प्रार्थनाएं, और भेंटें की जाती हैं।
रथ यात्रा क्या है (What is Rath Yatra)
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra), पुरी, ओडिशा में आयोजित एक हिन्दू त्योहार है जो विश्वधर्मीय महत्व रखता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को उनके मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा तीन विशाल रथों में होती है, जिन्हें प्रत्येक वर्ष नए ढंग से बनाया जाता है। यात्रा के दौरान लाखों भक्त इन रथों को खींचते हैं, इससे उन्हें आशीर्वाद मिलता है और पाप धुल जाते हैं। यह त्योहार भगवान कृष्ण की यात्रा की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्हें माना जाता है कि वे भगवान जगन्नाथ के अवतार थे। यात्रा समाप्त होने पर देवताओं को उनके मंदिर में वापस ले जाया जाता है।
रथ यात्रा का महत्व (Rath Yatra Significance)
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का महत्व निम्नलिखित तीन बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- ऐतिहासिक महत्व: जगन्नाथ रथ यात्रा का उद्गम भगवान कृष्ण, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा द्वारा अपने पूर्वजों के शहर द्वारका में रथ पर सवारी करने की कथा से माना जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और प्रति वर्ष पुरी तथा भारत के अन्य हिस्सों में इसका आयोजन किया जाता है। यह भक्तों के लिए अपनी आस्था और परंपराओं को मनाने का अवसर है।
- सांस्कृतिक महत्व: जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व भी है। यह एक ऐसा समय होता है जब लोग अपने साझा विश्वासों और परंपराओं को मनाने के लिए एक साथ आते हैं। यह उत्सव इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक घटना भी है, जहाँ लाखों श्रद्धालु भोजन, आवास और अन्य खर्चों पर खर्च करके स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं।
- आध्यात्मिक महत्व: रथ यात्रा एक आध्यात्मिक यात्रा है जो आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की मानवीय खोज का प्रतीक है। रथ भौतिक संसार का प्रतिनिधित्व करते हैं, और यह यात्रा आत्म-साक्षात्कार की ओर आध्यात्मिक यात्रा का एक रूपक है। यह उत्सव भक्तों के लिए अपने आंतरिक स्वयं से जुड़ने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है।
रथ यात्रा का इतिहास (Rath Yatra History)
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का इतिहास काफी प्राचीन और रोचक है। यह हर साल ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित की जाती है और हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार में से एक मानी जाती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल रथों में बैठाकर पुरी के सड़कों पर घुमाया जाता है।
मान्यता है कि जगन्नाथ भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के अवतार हैं और उनका मंदिर पुरी में 7वीं शताब्दी से मौजूद है। हालांकि, वर्तमान मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोड़गंग देव ने कराया था। उनके शासनकाल के दौरान ही पहली बार रथ यात्रा का आयोजन किया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को शब जनजाति के राजा से प्राप्त किया था और पुरी में उनकी स्थापना की थी। बाद में राजा ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था जो आगे चलकर नष्ट हो गया। रथ यात्रा की शुरुआत सुभद्रा के एक इच्छा से हुई थी। उन्होंने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से शहर घूमने की इच्छा जताई थी। उनकी बात सुनकर भाइयों ने एक भव्य रथ तैयार किया और तीनों ने मिलकर शहर की सैर की।
Rath Yatra now days
तब से हर साल यह परंपरा निभाई जा रही है। रथ यात्रा की तैयारियां अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होती हैं। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। जगन्नाथ का रथ नंदीघोष या कपिलध्वज कहलाता है जो 13.5 मीटर ऊंचा और 16 पहियों वाला होता है। बलभद्र का रथ तालध्वज 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों वाला होता है। सुभद्रा का रथ पद्मध्वज या दर्पदलन 12.9 मीटर ऊंचा 12 पहियों वाला होता है। हर रथ को अलग-अलग रंगों के कपड़ों और सजावट से सजाया जाता है। रथ यात्रा के दिन हजारों श्रद्धालु रथों को खींचने के लिए जुटते हैं। यह मान्यता है कि रथ खींचने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। यात्रा दस दिनों तक चलती है और अंत में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने मंदिर वापस लौटते हैं। यह पूरा उत्सव ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को दर्शाता है।
समय के साथ जगन्नाथ रथ यात्रा की लोकप्रियता पूरे भारत और विदेशों में भी फैल गई है। आज यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक महोत्सव भी बन गया है। हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इस यात्रा में हिस्सा लेने पुरी पहुंचते हैं। रथ यात्रा हिंदू धर्म की एकता, विविधता और श्रद्धा का प्रतीक बन गई है।
रथ यात्रा की रस्में (Rath Yatra Ritual)
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) भारत की प्रसिद्ध धार्मिक परंपराओं में से एक है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath), उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को पुरी के मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाने के लिए निकाली जाती है। इस यात्रा की कई रिवाज और रस्में हैं:
- रथ निर्माण: हर साल तीनों देवताओं के लिए नए रथ नीम और हांसी के पेड़ों की लकड़ी से परंपरागत तरीके से बनाए जाते हैं। इनमें कोई कील या धातु का इस्तेमाल नहीं होता।
- स्नान यात्रा: रथयात्रा से पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा होती है जिसमें उनकी मूर्तियों को 108 स्वर्ण पात्रों से शीतल जल से नहलाया जाता है।
- अनवसर: स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिन तक अस्वस्थ रहते हैं जिसे उनकी ‘ज्वरलीला’ कहते हैं। इस दौरान केवल निजी सेवक ही उनके दर्शन कर सकते हैं।
- रथयात्रा: अनवसर के बाद भगवान जगन्नाथ पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने भाई-बहन के साथ अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। भक्त रथों को खींचते हैं।
- प्रसाद वितरण: यात्रा के दौरान मंदिर की विशाल रसोई में बने 56 प्रकार के भोग का प्रसाद लाखों भक्तों में बांटा जाता है।
- रथों का विसर्जन: यात्रा पूरी होने पर रथों को अलग कर दिया जाता है। कुछ हिस्सों की नीलामी होती है तो बची लकड़ी को मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए भेजा जाता है।
इस प्रकार, जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) कई सदियों पुरानी परंपरा है जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है। यह भगवान जगन्नाथ की लीलाओं और उनसे जुड़ी कथाओं को भी दर्शाती है।
रथ का निर्माण (Construction Of Rath)
जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) के लिए तीन भव्य रथों का निर्माण हर साल अक्षय तृतीया से शुरू होता है और आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तक पूरा किया जाता है। इस साल यह यात्रा 7 जुलाई 2024 को निकलेगी। रथ निर्माण में कई रहस्य और परंपराएं शामिल हैं:
रथों के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी पर होता है। दारु नामक नीम की पवित्र लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जो जंगल से लाई जाती है। इस लकड़ी में कोई कील, कांटे या धातु का उपयोग नहीं किया जाता ताकि रथ की पवित्रता बनी रहे। तीनों देवताओं के रथों की ऊंचाई निश्चित होती है – जगन्नाथ का रथ नंदीघोष 45.6 फीट, बलराम का तालध्वज रथ 45 फीट और सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। रथों के रंग भी तय हैं – जगन्नाथ का लाल-पीला, बलराम का लाल-हरा और सुभद्रा का नीला-लाल। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति भी हर 12 साल में एक विशेष तरीके से बदली जाती है जब दो आषाढ़ माह आते हैं। मूर्ति के अंदर एक पवित्र लकड़ी का टुकड़ा रखा जाता है जिसे ब्रह्मा या श्रीकृष्ण का हृदय माना जाता है। इसे बदलते समय पुजारी की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। यह सब रथयात्रा की पवित्रता और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। रथ को शरीर और भगवान को आत्मा के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार यह यात्रा भक्तों के लिए आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।
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भारत में रथ यात्रा उत्सव (Rath Yatra Celebration In India)
भारत में जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का उत्सव बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. यह उत्सव हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा के पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से शुरू होता है। इस वर्ष यह यात्रा 7 जुलाई 2024 को निकलेगी।
इस दिन भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath), उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को भव्य रथों पर विराजमान करके यात्रा निकाली जाती है। ये रथ अक्षय तृतीया से ही बनने शुरू हो जाते हैं और बड़ी ही कलात्मकता और सुंदरता से सजाए जाते हैं। यात्रा के दिन भक्तगण भगवान के दर्शन करने और रथ को खींचने के लिए बड़ी संख्या में उमड़ पड़ते हैं। मान्यता है कि रथ खींचने से सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। पूरा माहौल “जय जगन्नाथ” के उद्घोषों से गूंज उठता है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है। वहां वे कुछ दिन विराजते हैं और फिर पुनः अपने मंदिर लौट आते हैं।
यह पूरा उत्सव 9 दिनों तक चलता है। यह परंपरा भगवान कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा की कथा पर आधारित मानी जाती है। कहा जाता है कि सुभद्रा ने द्वारका के दर्शन करने की इच्छा जताई थी, जिस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें रथ में बिठाकर द्वारका की सैर कराई थी। रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ की 35 पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। यह उत्सव देश के अन्य भागों जैसे अहमदाबाद, मथुरा, बैंगलोर, मुंबई आदि में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा भारतीय संस्कृति की एक अनूठी और अद्भुत परंपरा है जो आस्था, समर्पण और उल्लास का प्रतीक है।
आने वाले 10 सालों में रथ यात्रा (Rath Yatra In Coming 10 Years)
आने वाले 10 सालों में रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) की तिथियां निम्नलिखित हैं-
साल | तिथि |
2025 | 27 जून |
2026 | 16 जुलाई |
2027 | 5 जुलाई |
2028 | 24 जून |
2029 | 13 जुलाई |
2030 | 3 जुलाई |
2031 | 22 जून |
2032 | 9 जुलाई |
2033 | 28 जून |
2034 | 17 जुलाई |
Conclusion:-
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का उत्सव भक्ति, समर्पण और आस्था का प्रतीक है। यह हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है और उन्हें अपने आराध्य के करीब लाता है। इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि ऐसा करने से उनके जीवन की समस्याएं दूर होती हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया हमारे अन्य सभी धार्मिक लेख को भी जरूर पढ़िए और हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास क्या है?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का इतिहास प्राचीन वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि राजा इंद्रद्युम्न ने शबर राजा से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति प्राप्त की थी और उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था[। 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोड़गंग ने वर्तमान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया, जो ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा में किन देवताओं की पूजा की जाती है?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। ये मूर्तियां लकड़ी से बनी होती हैं और हर 12 साल में इन्हें बदला जाता है, जिसे नवकलेवर परंपरा कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है।
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा कब और कहां से शुरू होती है?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी शहर से शुरू होती है। इस वर्ष यह 20 जून से शुरू हो रही है। यात्रा की तैयारियां अक्षय तृतीया के दिन से ही शुरू हो जाती हैं जब रथों का निर्माण प्रारंभ होता है।
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन भी है। यह दुनिया भर से लाखों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इस उत्सव की भव्यता का साक्षी बनने आते हैं। यह उत्सव भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालता है और विभिन्न कला रूपों जैसे संगीत, नृत्य और साहित्य को प्रेरित करता है।
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा में किन रथों का उपयोग किया जाता है?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) में तीन विशाल रथों का उपयोग किया जाता है जिन्हें नंदीघोष (जगन्नाथ का रथ), तालध्वज (बलभद्र का रथ) और पद्मध्वज (सुभद्रा का रथ) कहा जाता है। ये रथ रंगीन झंडों, रोशनी और आभूषणों से सजाए जाते हैं और हजारों भक्तों द्वारा खींचे जाते हैं।
Q. जगन्नाथ रथ यात्रा में कौन से प्रमुख अनुष्ठान होते हैं?
Ans. जगन्नाथ रथ यात्रा एक सप्ताह लंबा उत्सव है जिसमें विभिन्न अनुष्ठान और समारोह शामिल होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान छेड़ा पहरा है, जहां गजपति राजा सोने के झाड़ू से रथों को साफ करते हैं, जो सभी भक्तों की समानता का प्रतीक है। इसके अलावा स्नान यात्रा, नेत्र उत्सव, बहुड़ा यात्रा, सुना बेशा भी प्रमुख रीति-रिवाज हैं।