नवरात्रि के छठवें दिन देवी कात्यायनी की पूजा (Mata Katyayani ki kahani): नवरात्रि के दौरान, हम माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, जिनमें से एक है माता कात्यायनी। माता कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है, जो शक्ति, सुख, और समृद्धि की प्रतीक हैं। माता कात्यायनी की कथा पुराणों में वर्णित है, जो हमें उनकी महिमा और शक्ति के बारे में बताती है।
माता कात्यायनी का स्वरूप भी विशेष है, जो हमें उनकी दिव्य शक्ति का दर्शन कराता है। इस लेख में, हम माता कात्यायनी के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम आपको बताएंगे कि माता कात्यायनी की उत्पत्ति कैसे हुई? नवरात्रि में देवी कात्यायनी की पूजा कैसे होती है? माता कात्यायनी का शासनाधीन ग्रह कौन सा है? माता कात्यायनी का स्वरूप कैसा है? माता कात्यायनी का प्रिय पुष्प कौन सा है? माता कात्यायनी का मंत्र क्या है? माता कात्यायनी की प्रार्थना कैसे की जाती है? माता कात्यायनी की स्तुति क्या है? माता कात्यायनी की आरती क्या है? माता कात्यायनी का स्रोत कौन सा है?
तो आइए, माता कात्यायनी से संबंधित सभी जानकारियां प्राप्त करें और उनकी शक्ति का लाभ उठाएं। इस लेख में, हम माता कात्यायनी की महिमा को समझेंगे और उनकी पूजा के महत्व को जानेंगे….
देवी माता कात्यायनी कौन हैं? (Devi Mata Katyayani kaun Hain)
देवी कात्यायनी (Devi Katyayani) दुर्गा (Devi Durga) के नौ स्वरूपों में से छठा रूप मानी जाती हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। उन्हें शक्ति और साहस की देवी के रूप में जाना जाता है। सिंह पर सवार, चतुर्भुज और तलवार धारण किए देवी कात्यायनी को लाल रंग के पुष्प विशेष प्रिय हैं। भक्त उनकी पूजा कर मनोकामनाओं की पूर्ति और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
देवी माता कात्यायनी की उत्पत्ति (Devi Mata Katyayani ki Utpatti)
मां कात्यायनी (Mata Katyayani) की पूजा का महत्व अनंत है, क्योंकि यह साधक को धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। स्कंद पुराण में उल्लेखित है कि कात्यायनी का स्वरूप परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से प्रकट हुआ। यह एक अद्वितीय घटना थी जब सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को संचित किया और उसे एकत्रित करने के लिए कात्यायन ऋषि के आश्रम का चयन किया।
कात्यायन ऋषि ने इस शक्तिपूंज को देख, उसे एक दिव्य रूप में परिवर्तित किया। देवी ने पार्वती द्वारा प्रदत्त सिंह पर बैठकर अपनी महिमा का प्रदर्शन किया। इस प्रकार, कात्यायन ऋषि के आशीर्वाद से प्रकट हुई देवी कात्यायनी के रूप में जानी गईं। उनका यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक बना, और उन्होंने महिषासुर जैसे दुष्ट का वध करके धर्म की स्थापना की। कात्यायनी का यह अद्वितीय स्वरूप न केवल भक्ति का केंद्र है, बल्कि सत्य और न्याय की विजय का भी प्रतीक है।
नवरात्रि पूजा (Navaratri Puja)
देवी कात्यायनी (Devi Katyayani) की पूजा नवरात्रि (Navratri) के छठे दिन, यानी शष्ठी तिथि को की जाती है। इस दिन भक्त विशेष रूप से उनकी आराधना करते हैं, ताकि उन्हें शक्ति और साहस प्राप्त हो। कात्यायनी को दुर्गा का छठा रूप माना जाता है, जो भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इस दिन उपवास और विशेष अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
शासनाधीन ग्रह (Shashanadhin Grah)
मान्यता के अनुसार, देवी कात्यायनी (Devi Katyayani) बृहस्पति ग्रह की अधिष्ठात्री हैं। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से ज्ञान और समृद्धि की वृद्धि होती है, जिससे जीवन में सकारात्मकता आती है।
स्वरूप वर्णन (Swaroop Varnan)
देवी कात्यायनी (Devi Katyayani) को एक विशाल दैवीय सिंह पर बैठा हुआ, चतुर्भुज स्वरूप में दर्शाया गया है। उनके बाएं हाथ में कमल पुष्प और तलवार है, जबकि दाहिने हाथ अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में हैं, जो भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
प्रिय पुष्प (Priya Pushp)
माता कात्यायनी (Mata Katyayani) को लाल रंग के पुष्प विशेष रूप से पसंद हैं, जिसमें गुलाब के फूल प्रमुख हैं। इन पुष्पों की सुगंध से उनकी आराधना और भी भव्य हो जाती है।
मन्त्र (Mantra)
- माता कात्यायनी का प्रमुख मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥ है।
प्रार्थना (Prarthana)
- चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
- कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति (Stuti)
- या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
स्तोत्र (Strotam)
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
आरती (Aarti)
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रन्थि काटे मोह माया की॥झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिये। ध्यान कात्यानी का धरिये॥हर संकट को दूर करेगी। भण्डारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
Conclusion:-Mata Katyayani ki kahani
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FAQ’s
प्रश्न 1: माता कात्यायनी कौन हैं?
माता कात्यायनी नवदुर्गा के छठे स्वरूप की देवी हैं। वे शक्ति और विजय की प्रतीक मानी जाती हैं और महिषासुर मर्दिनी के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था।
प्रश्न 2: माता कात्यायनी की पूजा कब की जाती है?
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की विशेष पूजा की जाती है। इसके अलावा, उनके भक्त विशेष रूप से हर शुक्रवार और मंगलवार को भी उनकी पूजा करते हैं।
प्रश्न 3: माता कात्यायनी की पूजा का महत्व क्या है?
मां कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति को साहस, शक्ति और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याएं विशेष रूप से उनकी पूजा करती हैं ताकि उन्हें अच्छा वर प्राप्त हो और उनके विवाह में आने वाली अड़चनों का निवारण हो सके।
प्रश्न 4: माता कात्यायनी का वाहन कौन सा है?
माता कात्यायनी का वाहन सिंह है, जो उनकी शक्ति और साहस का प्रतीक है।
प्रश्न 5: माता कात्यायनी की पूजा में कौन से मंत्र का जाप किया जाता है?
मां कात्यायनी की पूजा में निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:
“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः”
प्रश्न 6: मां कात्यायनी के किस रूप की आराधना की जाती है?
मां कात्यायनी को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, जिनके हाथों में कमल, तलवार, और अभय मुद्रा होती है। उनका एक हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए उठा होता है।