कार्तिक पूर्णिमा कब है? (Kartik Purnima kab Hai): हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना के लिए विशेष है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है, जो देवताओं की दीपावली होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह हमें भगवान शिव और भगवान विष्णु की महिमा और उनकी शक्ति के बारे में भी जानने का अवसर प्रदान करता है। इस पर्व के माध्यम से, हम भगवान शिव और भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में, हम आपको कार्तिक पूर्णिमा के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे। हम आपको बताएंगे कि कार्तिक पूर्णिमा क्या है, 2024 में कार्तिक पूर्णिमा कब मनाई जाएगी, देव दीपावली क्यों मनाई जाती है, और इसकी पौराणिक कथा क्या है। साथ ही, हम आपको कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और इसके पीछे की कथा के बारे में भी बताएंगे। इसके अलावा, हम आपको कार्तिक पूर्णिमा की कथा का पीडीएफ भी शेयर करेंगे, जिसे आप डाउनलोड कर सकते हैं और पढ़ सकते हैं।
तो चलिए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा के पावन त्यौहार के बारे में विस्तारऔर अपने जीवन को अधिक सार्थक बनाएं….
कार्तिक पूर्णिमा क्या है? (Kartik Purnima kya Hai)
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवम्बर महीने में होती है। यह दिन विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, जब भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान का महत्व भी है, खासकर वाराणसी और अन्य पवित्र नदियों में। इस दिन विशेष रूप से दीपदान, पूजा-अर्चना और दान-पुण्य का आयोजन किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का संबंध दीपावली, देव दीपावली और गुरु नानक जयंती से भी है।
कार्तिक पूर्णिमा कब है? (Kartik Purnima kab Hai)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा का आयोजन 15 नवंबर, शुक्रवार को सुबह 6:19 बजे से प्रारंभ होगा और 16 नवंबर, शनिवार को तड़के 2:58 बजे समाप्त होगा। चूंकि यह तिथि उदयातिथि के अनुसार तय होती है, इसलिए इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 15 नवंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा कब है | 15 नवंबर, शुक्रवार को |
कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? (Kartik Purnima kyon Manayi Jati Hai)
कार्तिक पूर्णिमा के पावन त्योहार को मनाने के पीछे के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- भगवान शिव का त्रिपुरासुर वध: इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया, जिससे देवताओं को विजय प्राप्त हुई और समस्त संसार में शांति का वातावरण फैल गया। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
- गंगा स्नान और पुण्य की प्राप्ति: मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन तीर्थयात्रियों के लिए विशेष धार्मिक अवसर होता है।
- दीपदान और सुख-समृद्धि: कार्तिक पूर्णिमा को दीपों का पर्व मनाया जाता है। दीप जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है, और यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक होता है।
- गुरु नानक देव जी की जयंती: इस दिन गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई जाती है, जिन्होंने सत्य, प्रेम और सेवा का संदेश दिया। लोग इस दिन दान-पुण्य करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयास करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त (Kartik Purnima Shubh Muhurat)
कार्तिक पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को प्रात: 6:21 बजे से शुरू होकर 16 नवंबर को सुबह 3 बजे तक रहेगी और शुभ ब्रह्म मुहूर्त 15 नवंबर को सुबह 04:58 से 05:51 तक रहेगा, जो स्नान-दान के लिए अत्यंत शुभ है।
कार्तिक पूर्णिमा तिथि | 15 नवंबर को प्रात: 6:21 बजे से शुरू होकर 16 नवंबर को सुबह 3 बजे तक रहेगी। |
शुभ ब्रह्म मुहूर्त | 15 नवंबर को सुबह 04:58 से 05:51 तक रहेगा |
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व क्या है? (Kartik Purnima ka Mahatva kya Hai)
- धार्मिक महत्व- कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन भगवान शिव (Bhagwan Shiva) और भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) की पूजा की जाती है। यह दिन भगवान शिव के अवतार भगवान कार्तिकेय की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। यह स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्त होता है।
- सांस्कृतिक महत्व- कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है, जब लोग अपने घरों में दीये जलाते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाते हैं और अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाते हैं।
- आध्यात्मिक महत्व- कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन आत्म-शुद्धि के लिए विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग अपने मन और आत्मा को शुद्ध करने के लिए पूजा और ध्यान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग भगवान की पूजा करते हैं और मोक्ष प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा समारोह (kartik Purnima Samaroh)
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से गंगा स्नान और पवित्र नदी में डुबकी लगाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को खासतौर पर दीवाली के बाद गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व होता है, जिससे आत्मा को शुद्धि मिलती है। इसके अलावा, इस दिन विशेष रूप से शिव जी, विष्णु जी और कार्तिकेय की पूजा भी की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से वाराणसी और हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थानों पर इस दिन मेला और दीप जलाने की परंपरा होती है। यह दिन धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा (Kartik Purnima ki katha)
प्राचीन काल की एक अनोखी कथा है, जिसमें एक राक्षस तारकासुर का उल्लेख है, जो अपनी दुष्टता और आतंक से देवताओं के लिए बड़ा संकट बन चुका था। तारकासुर के तीन वीर पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली, जो अपने पिता के रास्ते पर चलने की कसम खा चुके थे। जब देवताओं ने देखा कि वे तारकासुर और उसके पुत्रों से पीड़ित हो रहे हैं, तो उन्होंने भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई। भगवान शिव ने तारकासुर का वध कर देवताओं को राहत दी, लेकिन उसके तीनों पुत्रों ने इसका प्रतिशोध लेने का कड़ा संकल्प किया।
इन तीनों ने ब्रह्माजी की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान देने का वचन दिया। तीनों राक्षसों ने अमरता का वरदान मांगा, परंतु ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि अमरता का वरदान नहीं मिलेगा, बल्कि वे कुछ और मांग सकते हैं। इसके बाद, तीनों ने एक विचित्र वरदान की मांग की – तीन अलग-अलग नगरों का निर्माण कराना, जो आकाश और पृथ्वी में विचरण कर सकें और केवल एक विशेष बाण से नष्ट हो सकें। ब्रह्माजी ने यह वरदान स्वीकार कर लिया और मयदानव से तीन नगरों का निर्माण करवाया – तारकक्ष के लिए सोने का नगर, कमलाक्ष के लिए चांदी का नगर, और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर।
समय बीतते गए और ये तीनों राक्षसों के नगर तीनों लोकों में फैल गए, जिससे देवता अत्यधिक भयभीत हो गए। इंद्रदेव ने भगवान शिव से शरण ली और उनके पास जाकर इन राक्षसों के विनाश की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनके कष्ट को समझा और इन राक्षसों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया, जिसमें हर वस्तु देवताओं से बनी थी। रथ के पहिए चंद्रमा और सूर्य से, घोड़े इंद्र, वरुण, यम और कुबेर से, धनुष हिमालय से और प्रत्यंचा शेषनाग से बनी थी। सबसे अद्भुत यह था कि भगवान शिव खुद इस रथ के बाण बने और बाण की नोक अग्निदेव से बनी थी।
जब भगवान शिव इस दिव्य रथ पर सवार होकर युद्ध भूमि में उतरे, तो तीनों राक्षस एक साथ मिलकर सामने आए। जैसे ही वे तीनों नगर एक सीध में आए, भगवान शिव ने अपना दिव्य बाण छोड़ा और तीनों नगर एक साथ नष्ट हो गए। इसके बाद, भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से जाना जाने लगा, क्योंकि उन्होंने त्रि-पुरों का नाश किया था। यह कथा न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि यह भगवान शिव के अद्वितीय शक्ति और उनके न्यायपूर्ण नायकत्व को भी दर्शाती है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा पीडीएफ (Kartik Purnima Katha PDF)
इस विशेष लेख के जरिए हम आपसे कार्तिक पूर्णिमा कथा (Kartik Purnima Katha) का संपूर्ण पीडीएफ साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ को डाउनलोड करने के बाद आप कार्तिक पूर्णिमा कथा को पढ़कर उसका आनंद ले सकते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा कथा डाउनलोड PDF PDF DownloadConclusion:-Kartik Purnima kab Hai
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FAQ’s
कार्तिक पूर्णिमा 2024 कब है?
इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 2024 में 25 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन विशेष रूप से स्नान, दान और पूजा का आयोजन किया जाता है, और श्रद्धालु गंगा, यमुना, नर्मदा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व मानते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
- धार्मिक महत्व: कार्तिक पूर्णिमा का संबंध भगवान विष्णु और शिव जी से है। इस दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा की जाती है, और शिव जी को भी जल चढ़ाने का महत्व बताया गया है।
- स्नान और दान: इस दिन को स्नान और दान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। लोग सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और जरूरतमंदों को दान देते हैं।
- दीपदान पर्व: कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष रूप से दीपदान करने का महत्व है। लोग इस दिन दीप जलाते हैं और इसे आध्यात्मिकता का प्रतीक मानते हैं। विशेषकर यह दिन वाराणसी में गंगा नदी के किनारे भव्य दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा विधि
- स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें या फिर घर पर ही स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाएं।
- दीपदान: नदी के किनारे दीप जलाएं और इसे प्रवाहित करें, जिससे जीवन में सुख-शांति बनी रहे।
- भगवान विष्णु और शिव की पूजा: विष्णु जी और शिव जी की मूर्तियों के समक्ष दीप जलाएं और पूजा-अर्चना करें।