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Santan Saptami Vrat Katha: संतान सप्तमी व्रत कथा सुनने मात्र से प्राप्त होगा शिव-पार्वती का आशीर्वाद, बच्चे को मिलेगा दीर्घायु का वरदान।

Santan Saptami Vrat Katha
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संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha): संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सभी माता अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनकी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

संतान सप्तमी का व्रत (Santan Saptami Vrat) करने से न केवल संतान की प्राप्ति होती है बल्कि उनकी सुरक्षा और कल्याण भी सुनिश्चित होता है। इस व्रत की एक मनमोहक कथा भी है जो इसके महत्व और प्रभाव को दर्शाती है। यह कथा हमें बताती है कि कैसे एक निःसंतान दंपति ने इस व्रत को करके भगवान की कृपा से संतान प्राप्त की। इस लेख में हम संतान सप्तमी व्रत के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम जानेंगे कि यह व्रत क्यों और कैसे किया जाता है, इसकी पौराणिक कथा क्या है, और इसे करने का क्या महत्व है। साथ ही हम एक PDF भी प्रदान कर रहे हैं जिसमें संतान सप्तमी व्रत कथा हिंदी में विस्तार से दी गई है। यह PDF आपको इस व्रत के बारे में और अधिक जानकारी देगा।

तो चलिए, इस लेख को पढ़ते हैं और संतान सप्तमी व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं…

Table Of Content 

S.NOप्रश्न
1संतान सप्तमी क्या होती है?
2संतान सप्तमी व्रत की पहली कथा 
3संतान सप्तमी व्रत की दूसरी कथा

संतान सप्तमी क्या होती है? (Santan Saptami Kya Hoti Hai)

संतान सप्तमी (Santan Saptami) एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन, माताएं पूरे श्रद्धा भाव से अपने बच्चों की सुरक्षा और उन्नति के लिए उपवास करती हैं और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करती हैं। पूजा में विशेष रूप से तुलसी के पत्ते, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य का उपयोग किया जाता है। संतान सप्तमी का व्रत रखने वाली महिलाएं दिनभर निराहार रहती हैं और शाम को चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत का पालन करने से संतान को दीर्घायु और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।

संतान सप्तमी व्रत की पहली कथा 

प्राचीन काल की एक अद्भुत कथा है, जो अयोध्यापुरी के प्रतापी राजा नहुष और उनकी पत्नी चंद्रमुखी के जीवन से जुड़ी है। उनके राज्य में विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसकी पत्नी रूपवती और रानी चंद्रमुखी में गहरी मित्रता थी। एक दिन, जब वे सरयू नदी में स्नान करने गईं, उन्होंने अन्य स्त्रियों को पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक पूजा करते देखा। उन स्त्रियों से पूछने पर उन्होंने बताया कि यह व्रत संतान सुख देने वाला है। यह जानकर रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने भी इस व्रत को जीवन भर करने का संकल्प किया और शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। लेकिन घर पहुंचते ही वे अपने संकल्प को भूल गईं। इस विस्मृति का परिणाम यह हुआ कि मृत्यु के बाद रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में जन्मी।

समय बीता, और वे पुनः मनुष्य योनि में जन्मीं। इस बार चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनीं, और रूपवती एक ब्राह्मण परिवार में भूषणा के नाम से जानी गईं। भूषणा ने अपने पूर्वजन्म के व्रत को याद रखा, जिसके फलस्वरूप उसने आठ सुंदर और स्वस्थ पुत्रों को जन्म दिया। वहीं, रानी ईश्वरी (पूर्वजन्म की चंद्रमुखी) की कोई संतान नहीं थी, जिससे वह अत्यंत दुखी थी। एक दिन, जब भूषणा रानी से मिलने आई, तो रानी ईश्वरी ने भूषणा के बच्चों को देखकर ईर्ष्या से भर गई और उन्हें मारने का प्रयास किया, लेकिन असफल रही। अंततः रानी ने भूषणा से इसका कारण पूछा, तो भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की कथा और व्रत की महिमा बताई। रानी ने इस कथा को सुनकर विधिपूर्वक व्रत किया, और व्रत के प्रभाव से एक सुंदर बालक को जन्म दिया।

तभी से यह व्रत संतान प्राप्ति और उनकी सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध हो गया है, जिसे आज भी श्रद्धापूर्वक किया जाता है।

संतान सप्तमी व्रत की दूसरी कथा (Santan Saptami Virat ki Doosri katha)

संतान सप्तमी व्रत को संतान सुख और संतान की दीर्घायु एवं आरोग्य प्राप्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार पांडु पुत्र युधिष्ठिर को भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्त्व से अवगत कराया था। श्रीकृष्ण ने बताया कि इस दिन व्रत करके सूर्य देव और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से संतान प्राप्ति होती है। 

श्रीकृष्ण ने अपनी माता देवकी की कथा सुनाई, जिन्होंने इस व्रत का पालन करके संतान सुख पाया। जब कंस माता देवकी के नवजात पुत्रों को जन्म लेते ही मार देता था, तब लोमश ऋषि ने उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने का सुझाव दिया। माता देवकी ने इस व्रत का विधिपूर्वक पालन किया, जिससे उनका पुत्र कृष्ण का जन्म हुआ, जिसने कंस के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त किया।

संतान सप्तमी व्रत कथा पीडीएफ (Santan Saptami Vrat Katha PDF)

संतान सप्तमी व्रत कथा PDF Download | View Katha

संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) से संबंधित इस विशेष लेख में हम आपसे एक विशेष पीडीएफ शेयर कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करने के बाद आप संतान सप्तमी व्रत कथा को सरलता पूर्वक हिंदी में पढ़ सकते हैं।

Conclusion:-Santan Saptami Vrat Katha

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया (संतान संप्तमी व्रत कथा) यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपके मन में किसी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर दर्ज करें, हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे। बाकि ऐसे ही रोमांचक लेख के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर दोबारा विज़िट करें, धन्यवाद

FAQ’s

Q. संतान सप्तमी क्या होती है?

Ans. संतान सप्तमी (Santan Saptami) एक हिंदू पर्व है, जो संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है।

Q. संतान सप्तमी व्रत का मुख्य उद्देश्य क्या है?

Ans. संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) का मुख्य उद्देश्य संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना है।

Q. संतान सप्तमी व्रत में किसकी पूजा की जाती है?

Ans. संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) में भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

Q. संतान सप्तमी व्रत की एक प्रमुख कथा कौन सी है?

Ans. संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) की एक प्रमुख कथा अयोध्या के राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी और उनकी मित्र रूपवती की है, जिन्होंने संतान सुख के लिए यह व्रत किया था।

Q. संतान सप्तमी व्रत का पालन कौन करता है?

Ans. संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) का पालन मुख्य रूप से माताएं करती हैं, जो अपनी संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए उपवास रखती हैं।

Q. संतान सप्तमी व्रत का प्रभाव किस पर होता है?

Ans. संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) का प्रभाव व्रत करने वाली महिला की संतान पर होता है, जिससे उन्हें दीर्घायु और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।