शनिवार व्रत कथा (Shanivar Vrat katha PDF Download): शनिवार का व्रत (Shanivar Vrat) भगवान शनिदेव (Bhagwan Shani Dev) को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है और उन्हें अपने कर्मों का फल देने का कार्य सौंपा गया है। मान्यता है कि शनि देव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। लेकिन जब शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रकोप होता है तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है शनिवार का व्रत। शनिवार व्रत करने से न केवल शनि दोष से मुक्ति मिलती है बल्कि शनि देव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनिवार व्रत कैसे करना चाहिए? शनिवार व्रत के क्या नियम हैं? व्रत के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? शनि देव की पूजा कैसे करनी चाहिए? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ना न भूलें। आपको शनिवार व्रत से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से मिलेगी। तो चलिए, आइए जानते हैं कि शनिवार का व्रत क्या है, इसका महत्व क्या है और इसे कैसे करना चाहिए। साथ ही यह भी जानेंगे कि शनिवार व्रत के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
इस लेख को पढ़ने के बाद आप भी अपने जीवन में शनिवार व्रत का महत्व समझ पाएंगे और इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से कर पाएंगे। तो देर किस बात की, आइए शुरू करते हैं शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) की यात्रा…
टॉपिक | शनिवार व्रत कथा । shanivar vrat katha pdf download |
प्रमुख देवता | भगवान शनि देव |
व्रत का दिन | शनिवार |
महत्व | शनि देव की कृपा प्राप्ति हेतु |
व्रत का लाभ | यह व्रत साढ़ेसाती और ढैय्या के दुष्प्रभावों से बचाता है |
प्रमुख ग्रह | शनि ग्रह |
शनिवार व्रत की कथा । Shanivar Vrat Katha
एक समय नौ ग्रहों (Nine Planets) में इस बात पर बहस हो रही थी कि स्वर्ग (Heaven) में सबसे बड़ा कौन है। सभी देवता निर्णय के लिए देवराज इंद्र (Lord Indra) के पास आये और बोले- हे देवराज, आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर इंद्र भ्रमित हो गए, तब उन्होंने सभी को पृथ्वीलोक में राजा विक्रमादित्य (King Vikramaditya) के पास चलने का सुझाव दिया। सभी ग्रह भूलोक के राजा विक्रमादित्य के दरबार में पहुंचे। जब ग्रहों ने राजा विक्रमादित्य से अपना प्रश्न पूछा तो वह भी कुछ देर के लिए परेशान हो गये क्योंकि सभी ग्रह अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कहने से उनके क्रोध का प्रकोप भयंकर हानि पहुंचा सकता है।
अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने सोना, चांदी, कांस्य, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहे जैसी विभिन्न धातुओं के नौ आसन बनवाए। सबसे आगे सोने का आसन चूंकि लोहे का आसन सबसे पीछे था, इसलिए शनिदेव समझ गए कि राजा ने मुझे ही सबसे छोटा बनाया है। इस फैसले से शनिदेव (Lord Shanidev) क्रोधित हो गए और बोले- हे राजन, तुमने मेरा आसन पीछे रखकर मुझे अपमानित कर दिया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो. सूर्य एक राशि पर एक महीना, चंद्रमा दो महीने दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, बृहस्पति तेरह महीने तक रहता है, लेकिन मैं किसी भी राशि पर ढाई साल से लेकर साढ़े सात साल तक रहता हूं। अब तुम्हें भी मेरे क्रोध को सहना पड़ेगा, विक्रमादित्य बोले- जो होगा देखा जाएगा, इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्न होकर चले गये, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ गये।
कुछ महीना बीतने के बाद जब राजा विक्रमादित्य (King Vikramaditya) पर साढ़ेसाती की स्थिति आई तब भगवान शनिदेव ने एक घोड़े के व्यापारी (Merchant) का रूप धारण किया और कई घोड़ों के साथ विक्रमादित्य के नगर में पहुंचे। राजा विक्रमादित्य ने उन घोड़ों को देखकर अपनी सवारी के लिए एक अच्छा घोड़ा चुना और उस पर चढ़ गये। जैसे ही राजा उस घोड़े पर सवार हुआ, वह बिजली की गति से दौड़ा। तेज दौड़ता घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहीं गिराकर गायब हो गया। राजा अपने नगर लौटने के लिए जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख और प्यास लगी। बहुत चलने पर उसे एक चरवाहा मिला। राजा ने उससे पानी माँगा। पानी पीने के बाद राजा ने अपनी अंगूठी चरवाहे को दे दी और उससे रास्ता पूछकर जंगल छोड़कर पास के शहर में चला गया।
नगर में पहुँचकर राजा एक सेठ की दुकान पर बैठ गया। जब राजा (king) कुछ देर दुकान पर बैठा तो सेठ ने खूब बिक्री की। सेठ ने राजा को भाग्यशाली समझा और भोजन के लिए अपने घर ले गया। सेठ के घर में एक सोने का हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर चला गया। तभी एक अद्भुत घटना घटी. राजा विक्रमादित्य के देखते ही खूंटी ने सोने का हार निगल लिया। जब उस सेठ ने हार गायब देखा तो उसे चोरी का संदेह , राजा पर हुआ और उसने अपने सेवकों से कहा कि इस विदेशी को रस्सियों से बाँधकर नगर के राजा के पास ले जाओ। जब राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हार को खूंटी ने निगल लिया है। इस पर राजा क्रोधित हो गये और उन्होंने चोरी के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पैर काटने का आदेश दिया। सैनिकों ने राजा विक्रमादित्य के हाथ-पैर काट दिये और उन्हें सड़क पर छोड़ दिया।
कुछ दिन बाद एक तेली उन्हें उठाकर अपने घर ले गया और कोल्हू पर बैठा दिया। राजा बैलों को आवाज देकर हिलाता था। इस प्रकार तेली का बैल दौड़ता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। प्रादुर्भाव पूरा होने पर वर्षा ऋतु प्रारम्भ हो गई। एक रात विक्रमादित्य मेघ मल्हार गा रहे थे, तभी नगर की राजकुमारी (Princess) एक सुंदर रथ पर सवार होकर उनके घर के पास से गुजरी। जब उन्होंने मल्हार सुना तो उन्हें अच्छा लगा और उन्होंने नौकरानी गायक को बुलाने के लिए भेजा। दासी ने लौटकर राजकुमारी को विकलांग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हो गई और सब कुछ जानने के बावजूद उसने विकलांग राजा से शादी करने का फैसला किया।
जब राजकुमारी ने अपने माता-पिता को बताया तो वह आश्चर्यचकित रह गए। माता-पिता ने राजकुमारी को बहुत समझाया लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अपनी जान देने का फैसला कर लिया। अंततः राजा-रानी को मजबूरन राजकुमारी का विवाह (Marriage) विकलांग विक्रमादित्य से करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर रहने लगे। उसी रात शनिदेव (Shanidev) ने राजा से कहा- तुमने मेरा प्रकोप देख लिया, मैंने तुम्हें तुम्हारे अपमान का दण्ड दिया है। राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- हे शनिदेव, जैसा दुख आपने मुझे दिया है, फिर किसी और को मत दीजिएगा।
शनिदेव ने कहा- राजन, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूं। जो स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, कथा सुनेगा, जो सदैव मेरा ध्यान करेगा, चींटियों को आटा खिलाएगा, वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाएगा और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इतना कहकर शनिदेव अन्तर्धान हो गये। सुबह जब राजा विक्रमादित्य उठे तो अपने हाथ-पैर देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। उसने मन ही मन शनिदेव को प्रणाम किया। राजा के हाथ-पैर सुरक्षित देखकर राजकुमारी भी हैरान रह गई।
तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की पूरी कहानी सुनाई। जब सेठ को इस बात का पता चला तो वह दौड़कर आया और राजा विक्रमादित्य के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा विक्रमादित्य ने उसे माफ कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि यह सब शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ है। सेठ राजा विक्रमादित्य को फिर अपने घर ले गया और भोजन कराया। भोजन करते समय एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबको देखकर उस खूंटी ने हार फेंक दिया। सेठ ने अपनी पुत्री का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण आभूषण, धन आदि भेजकर राजा को विदा किया।
जब राजा विक्रमादित्य राजकुमारी और सेठ की बेटी के साथ अपने नगर लौटे तो नगरवासियों ने उनका स्वागत खुशी से किया। अगले ही दिन राजा विक्रमादित्य (King Vikramaditya) ने पूरे राज्य में घोषणा करा दी कि शनिदेव सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शनिवार (Saturday) के दिन इनका पालन करना चाहिए और व्रतकथा सुननी चाहिए। राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए |
शनिवार व्रत कथा PDf । Shanivar Vrat Katha Pdf Download
शनिवार व्रत कथा PDF Download | View Kahaniशनिवार व्रत की पूजा विधि क्या है । Shanivar Vrat Puja Vidhi
- ‘शनिवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत वाले दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म निपटाकर घर में गंगाजल या कोई पवित्र जल छिड़ककर घर को शुद्ध करना चाहिए। .
- स्नान के बाद नीले या काले कपड़े पहनें और शनि देव की पूजा करें। लोहे से बनी शनिदेव की मूर्ति, लोहे के बर्तन में तिल का तेल डालकर रखकर पूजा करना शुभ होता है। पूजा सामग्री के साथ विशेष रूप से कागमाची या कालग्रह के काले फूल, दो काले कपड़े, काले तिल, भात (उबले हुए चावल) शनिदेव को अर्पित करना चाहिए। शनि चालीसा, स्तोत्र, मंत्र और आरती से भगवान की पूजा करनी चाहिए। शनि व्रत कथा पढ़नी चाहिए।
- साथ ही व्यक्ति को सुबह-शाम शनि मंदिर के दर्शन करना चाहिए। वहीं, हनुमान जी और भैरव जी की दृष्टि अत्यंत शुभ होती है। शनि देव के मंदिर में तिल का तेल, काली उड़द की दाल, काली वस्तुएं, काले तिल और तेल से बने भोजन का भोग लगाया जाता है।
- पूजा करते समय कथा सुननी चाहिए। भोजन सूर्यास्त के 2 घंटे बाद करना चाहिए। भोजन में उड़द की दाल से बनी खाद्य सामग्री सबसे पहले किसी भिखारी को देनी चाहिए और फिर खाना चाहिए। गरीबों को अपनी क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। दान में काला कंबल, छाता, तिल, जूते आदि शामिल हो सकते हैंयदि संभव हो तो शनि ग्रह के मंत्र का जितनी बार संभव हो जप करना चाहिए।’’
शनिवार व्रत विधि (Shanivar Vrat Vidhi)
शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) विधि के 7 मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या तालाब में स्नान करें। पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।
- लोहे की शनि देव की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का मिश्रण) से स्नान कराएं।
- काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र और तेल से पूजा करें। शनि देव के 10 नाम – कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पल, सौरि, यम, पिंगल, रोद्रष्टक, भौब्रु, मंद और शनैश्चर का जाप करें।
- पूजा के बाद, सात धागों से बने सूत्र से पीपल के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें।
- “शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते थ्वथ रहवे, केतवे थ्वं नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदोभव” मंत्र का जाप करें।
- पूजा के बाद, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और लोहे के सामान, धन आदि दान करें।
- व्रत के दौरान सादा भोजन करें और दिन में एक बार ही भोजन करें। शनिवार व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। पूजा और मंत्रों को शुद्ध मन और पवित्र हृदय से करना चाहिए।
शनिवार का व्रत किसको करना चाहिए? (Shanivar vrat kisko karna chahiye?)
जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित होते हैं, उनके लिए अपने जीवन में सुधार और कल्याण की दिशा में शनिवार का व्रत (Shanivar Vrat) करना अत्यंत लाभकारी होता है। यह व्रत शनि के प्रभाव को कम करने का एक प्रभावी उपाय माना जाता है। विशेष रूप से निर्दोष शनिवार को शनि का व्रत (Shanivar Vrat) शुरू करना सर्वोत्तम होता है। हालांकि, शास्त्रों के अनुसार, किसी भी दिन का व्रत शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से शुरू करना अधिक उपयुक्त है। इस प्रकार, व्रत का आरंभ शास्त्र सम्मत और फलदायक होता है।
शनिवार व्रत के लाभ (Shanivar Vrat ke labh)
शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) के 6 प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- शनि दोष का निवारण: शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) करने से शनि ग्रह के दोष से मुक्ति मिलती है और उनके भविष्य के प्रकोप से बचा जा सकता है। ज्योतिषों के अनुसार, शनि ग्रह की शांति के लिए शनिवार का व्रत करना बहुत लाभदायक माना जाता है।
- सुख-शांति की प्राप्ति: शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) रखने से घर में सुख और शांति आती है। यह व्रत करने से मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे तनाव, चिंता और भय कम होता है।
- आर्थिक स्थिरता: शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) करने से आर्थिक स्थिरता और समृद्धि आती है। यह कर्ज और गरीबी को दूर करके वित्तीय स्थिति में सुधार लाता है।
- करियर में उन्नति: शनिदेव को न्याय और निष्पक्षता का देवता माना जाता है। उनकी कृपा से करियर में वृद्धि और पेशेवर सफलता प्राप्त होती है।
- बुरी शक्तियों से सुरक्षा: शनिवार व्रत करने से भक्त को बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है। यह व्रत जीवन में सद्भाव और संतुलन लाता है।
शनिवार व्रत के नियम (Shanivar Vrat ke Niyam)
- शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) रखने का सबसे शुभ समय श्रावण मास या शुक्ल पक्ष के शनिवार को माना जाता है। व्रत का संकल्प लेने से पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनना चाहिए।
- शनि देव (Shani Dev) की प्रतिमा या शनि यंत्र स्थापित करके उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। फिर काले वस्त्र, काले तिल, सरसों का तेल अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- शनि मंत्र “ॐ शं नो देवीरभिष्टये आपो भवन्तु पितये, शं योर्भिष्टये नः” का जाप करें। इसके बाद शनि चालीसा और कथा का पाठ करना चाहिए।
- पूजा के दौरान शनि देव को पूड़ी और काली उड़द दाल की खिचड़ी का भोग लगाएं। व्रत के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और मांसाहार से परहेज करना शुभ माना जाता है।
- शनिवार व्रत (Shanivar Vrat) को कम से कम सात बार करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा मिलती है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। अंत में अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगना और आरती करना न भूलें।
शनिवार व्रत का महत्व । Shanivar Vrat Significance
शनिदेव के व्रत का अपना विशेष महत्व है। गलती से किए गए पापों का प्रायश्चित करने के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए आपको भी व्रत रखना चाहिए। कई आम व्यक्तियों में शनि की स्थिति ठीक नहीं मानी जाती है। ऐसे में इस दिन के व्रत का बहुत महत्व है, क्योंकि इस दिन व्रत रखने से शनि की स्थिति सर्वोत्तम होती है। मनुष्य के दुख अपने आप ख़त्म हो जाते हैं।
Summary-
शनिवार का शनिदेव व्रत, कर्मफलदाता शनिदेव की कृपा प्राप्त करने का एक सरल और प्रभावी उपाय है। यह व्रत न केवल शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के दुष्प्रभावों से बचाता है, अपितु जीवन में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, धन, और सफलता भी प्रदान करता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को नैतिकता, अनुशासन, और धैर्य जैसे गुणों का विकास होता है, जो जीवन में सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ अवश्य साझा करें साथ ही हमारे आने आर्टिकल्स को भी जरूर पढ़ें।
FAQ’S
Q. शनिवार व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं?
Ans. शनिवार के व्रत में नमक नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह व्रत उपवास का होता है और नमक का सेवन इससे परे है।
Q. शनिवार के व्रत में चाय पी सकते हैं?
Ans. शनिवार के व्रत में चाय पीने की अनुमति नहीं है, क्योंकि व्रत में केवल जल और फल का सेवन करना उचित माना जाता है।
Q. शनिवार के व्रत में आलू खा सकते हैं?
Ans. शनिवार के व्रत में आलू का सेवन किया जा सकता है, क्योंकि यह एक शाकाहारी भोजन होता है और व्रत में शाकाहारी खाने की अनुमति होती है।
Q. शनिवार का व्रत किसको करना चाहिए?
Ans. शनिवार का व्रत विशेष रूप से उन्हीं व्यक्तियों को करना चाहिए, जो शनि ग्रह की शांति के लिए या अपनी जीवन में कष्ट से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत रखते हैं।
Q. शनिवार का व्रत कब खोलना चाहिए?
Ans. शनिवार का व्रत शनिवार के दिन सूर्योदय के बाद शुरू किया जाता है और सूर्योस्त के समय व्रत खोला जाता है।
Q. शनिदेव की पूजा महिलाएं कर सकती हैं?
Ans. हां, महिलाएं भी शनिदेव की पूजा कर सकती हैं। शनिदेव की पूजा से उनके जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान हो सकता है।
Q. शनि देव शनिवार व्रत कब शुरू करना चाहिए?
Ans. शनिवार का व्रत किसी भी शनिवार से शुरू किया जा सकता है।
Q. शनि देव शनिवार व्रत के लिए कौन से दान होते हैं?
Ans. शनिवार व्रत में काले तिल, काले चने, काली उड़द, सरसों का तेल, और काले कपड़े का दान किया जाता है।
Q. शनि देव शनिवार व्रत के क्या फायदे हैं?
Ans. शनिवार का व्रत शनि देव की कृपा प्राप्त करने, कर्मों के फल को शुभ बनाने, और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
Q. शनि देव शनिवार व्रत के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
Ans. शनिवार व्रत के दौरान, भक्तों को क्रोध, झूठ, और चोरी से बचना चाहिए। उन्हें शांत और सकारात्मक रहना चाहिए।
Q. शनि देव शनिवार व्रत में कौन सी मंत्रों का जाप होता है?
Ans. शनिवार व्रत में शनि चालीसा, शनि स्तोत्र, और शनि मंत्रों का जाप किया जाता है।
Q.शनिवार का व्रत कब शुरू किया जाता है
Ans.इस व्रत को व्यक्ति किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से शुरू कर सकता है। जो व्रत प्रारंभ किया जाता है उसे नियमित रूप से 11 या 51 बार किया जाता है। फिर इस व्रत का उद्यापन किया जाता है और इसे दोबारा शुरू किया जाता है.