Dhumavati jayanti: क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में एक ऐसी देवी हैं, जिनका नाम सुनते ही लोगों के मन में भय और आदर दोनों का भाव उत्पन्न हो जाता है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं मां धूमावती की (Maa Dhumavati), जो दशमहाविद्याओं में से एक हैं। प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती मनाई जाती है, जिसे धूमावती जयंती के नाम से जाना जाता है।
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) एक ऐसा पर्व है, जो आपको अध्यात्म और आत्म-चिंतन की यात्रा पर ले जाता है। यह एक अवसर है, जब हम अपने भीतर झांक सकते हैं और अपने अंतर्मन की गहराइयों को समझ सकते हैं। मां धूमावती (Maa Dhumavati) की कथाएं और उपासना विधि इतनी रोचक और रहस्यमयी हैं कि आप इस लेख को पढ़ते हुए खुद को उनकी शक्ति और महिमा में खो देंगे। इस लेख में हम आपको धूमावती जयंती (Dhumavati Jayanti) के महत्व, इतिहास और मनाने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताएंगे। साथ ही, हम मां धूमावती (Maa Dhumavati) के स्वरूप, उनसे जुड़ी कथाओं और उनकी उपासना के लाभों पर भी प्रकाश डालेंगे। तो तैयार हो जाइए एक अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा के लिए, जो आपके जीवन को एक नया अर्थ और दिशा दे सकती है…
Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | धूमावती जयंती कब है? |
2 | धूमावती जयंती क्या है? |
3 | धूमावती जयंती का महत्व |
4 | धूमावती जयंती के फायदे |
5 | धूमावती जयंती व्रत नियम |
6 | धूमावती जयंती व्रत कथा |
7 | धूमावती जयंती व्रत कथा पीडीएफ |
धूमावती जयंती कब है? (Dhumavati Jayanti kab hai)
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti), जिसे धूमावती महाविद्या जयंती भी कहाँ जाता है, हर साल धर्मशास्त्रीय उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह उत्सव ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जून में आता है। 2024 में, धूमावती जयंती 14 जून, शुक्रवार को मनाई जाएगी।
धूमावती जयंती क्या है? (What is Dhumavati Jayanti )
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता धूमावती (Maa Dhumavati) का जन्मदिन माना जाता है। धूमावती माता दुर्गा का सबसे उग्र रूप हैं और दस महाविद्याओं में सातवें स्थान पर हैं। उनका स्वरूप भयानक होने के बावजूद उनका हृदय बेहद निर्मल है। इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और माता धूमावती (Maa Dhumavati) की मूर्ति की स्थापना करके विधि-विधान से पूजा करते हैं। माता को फल, मिठाई और अन्य चीजों का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता की पूजा और आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की समस्याओं का अंत होता है।
धूमावती जयंती का महत्व (Dhumavati Jayanti Significance)
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) का महत्व निम्नलिखित तीन बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- पाप और बुराइयों का नाश: धूमावती माता को पाप और बुराइयों का नाश करने वाली शक्ति के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि उनकी कृपा से भक्तों के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट, रोग और दरिद्रता दूर हो जाते हैं। “धूमावती जयंती के दिन माता की विशेष पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है”, जैसा कि जागरण डॉट कॉम में उल्लेख किया गया है।
- आध्यात्मिक उन्नति: धूमावती माता को ज्ञान, वैराग्य और मोक्ष की देवी माना जाता है। उनकी उपासना से साधक को आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। पवित्र ज्योतिष के अनुसार, “धूमावती जयन्ती के दिन माँ धूमावती की पूजा करने से भक्त को आध्यात्मिक उन्नति, बुद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है”।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: धूमावती माता को भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है। वेब दुनिया में बताया गया है कि “धूमावती जयंती पर विधिवत पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशहाली आती है”। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन व्रत रखना, पूजा-अर्चना और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
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धूमावती जयंती के फायदे (Dhumavati Jayanti Benefits)
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) मनाने के कई लाभ हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता धूमावती की पूजा करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि माता धूमावती की प्रार्थना करने से भक्तों के जीवन की सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) के दिन माता की विधिवत पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार, इस दिन काले कपड़े में काले तिल लपेटकर चढ़ाने से मनचाही इच्छाएं सिद्ध होती हैं। साथ ही, माता धूमावती (Maa Dhumavati) को प्रसन्न करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। इस पावन पर्व पर मां की भक्ति से कष्टों का निवारण होता है।
धूमावती जयंती व्रत नियम (Dhumavati Jayanti Fasting Rules)
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) के व्रत को करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:
- सूर्योदय से पहले उठें: धूमावती जयंती के दिन व्रत रखने वालों को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। यह व्रत की शुरुआत का प्रतीक है और इससे मन को शांति मिलती है।
- मां के सामने व्रत का संकल्प लें: व्रत शुरू करने से पहले मां धूमावती के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इससे मन में व्रत के प्रति दृढ़ता आती है।
- देवी की मूर्ति को पीठ पर स्थापित करें: पूजा के लिए मां धूमावती की मूर्ति या तस्वीर को एक ऊंची जगह पर स्थापित करना चाहिए। इससे श्रद्धा और भक्ति का भाव जागृत होता है।
- देवी को पंचामृत, गंगाजल और शुद्ध जल से स्नान कराएं: मां धूमावती की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का मिश्रण), गंगाजल और साफ पानी से स्नान कराना चाहिए। यह देवी के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
- देवी को तिलक लगाएं: स्नान के बाद मां धूमावती को सिंदूर या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए। यह मां के प्रति प्रेम और आदर व्यक्त करता है।
- देवी को आभूषण, वस्त्र और श्रृंगार की अन्य वस्तुएं अर्पित करें: मां धूमावती को आभूषण, वस्त्र और श्रृंगार की अन्य वस्तुएं भेंट करनी चाहिए। यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
- देवी को धूप, पुष्प और अन्य सामग्री अर्पित करें: मां धूमावती को धूप, फूल और पूजा की अन्य सामग्री अर्पित करनी चाहिए। इससे मन को शांति और आनंद मिलता है।
- देवी के सामने घी का दीपक जलाएं: मां धूमावती के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए। यह ज्ञान और भक्ति का प्रकाश फैलाता है और मन के अंधकार को दूर करता है।
इन नियमों का पालन करते हुए धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन मां धूमावती की विशेष पूजा और आराधना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सभी कष्टों का निवारण होता है।
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धूमावती जयंती व्रत कथा (Dhumavati Jayanti Vrat Katha)
अगर हिंदू पौराणिक कथाओं की माने तो धूमावती जयंती की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है:-
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है की जब एक बार माता पार्वती को भूख से पीड़ा हुई तो उन्होंने भगवान शिव (Lord Shiva) से खाने के लिए कुछ मांगा इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती (Maa Parvati) से कहा कि ठीक है आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें मैं खाने का कुछ प्रबंध करता हूं। लेकिन भगवान शिव (Lord Shiva) भोजन का कोई प्रबंध नहीं कर पाते हैं और तभी भूख से पीड़ित माता पार्वती क्रोध में भगवान शिव (Lord Shiva) को ही निगल जाती हैं। कहा जाता है कि शिव को निकालने के बाद माता पार्वती के शरीर से धुआं निकलने लगता है और यह धुआं भगवान शिव (Lord Shiva) के गले में विश्व होने के कारण निकलता है, जहर के प्रभाव से माता पार्वती अत्यंत भयंकर और डरावनी सी दिखने लगी जब भगवान शिव माता के शरीर से बाहर आए तो भगवान शिव (Lord Shiva) ने क्रोधित होकर माता पार्वती को यह श्राप दिया था कि उनके इस रूप के कारण उन्हें एक विधवा के रूप में पूजा जाएगा क्योंकि उन्होंने स्वयं अपने पति को ही निगल लिया था साथ ही भगवान शिव ने माता पार्वती को धूमावती नाम भी दिया था।
दूसरी पौराणिक कथा की माने तो जब माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया था, तो उन्होंने समस्त देवी देवताओं को निमंत्रण दिया परंतु उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव और अपनी पुत्री सती (Sati) को निमंत्रण नहीं दिया था। लेकिन माता सती भगवान शिव (Lord Shiva) से जिद करने लगी कि वह अपने पिता के द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में शामिल होना चाहती हैं, भगवान शिव को उस यज्ञ में माता सती के साथ अहित होने का पूर्ण संदेह था इसलिए उन्होंने सती को बार-बार रोकने का प्रयास किया परंतु माता सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने नंदी के साथ माता सती को उनके पिता के घर जाने की स्वीकृति दे दी। परंतु जब माता सती महल में पहुंची तो दक्ष ने अपनी पुत्री को काफी अपमानित किया साथ ही साथ भगवान शिव को भी अपमानित किया, भगवान शिव के प्रति इस तरह का अपमान देख माता सती को यह सब सहन ना हुआ और माता सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। इसके बाद माता सती (Mata Sati) के शरीर से निकलने वाले धुएं से एक देवी उत्पन्न हुई जिनका नाम धूमावती (Maa Dhumavati) रखा गया।
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धूमावती जयंती व्रत कथा पीडीएफ (Dhumavati Jayanti Vrat Katha PDF)
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) से संबंधित इस लेख में हम आपसे धूमावती जयंती की व्रत कथा पीडीएफ (PDF) के जरिए साझा कर रहे हैं, अगर आप चाहे तो इस पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड (Download) करके धूमावती जयंती (Dhumavati Jayanti) की संपूर्ण व्रत कथा को पढ़ सकते हैं।
Conclusion:
धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti), आत्म-शोध और आत्म-ज्ञान की यात्रा का प्रतीक है। इस लेख से उत्पन्न अगर आपके मन में किसी भी तरह के प्रश्न हो तो उन प्रश्नों को कमेंट बॉक्स में जरूर पूछिए हम आपके सभी प्रश्नों के हर संभव जवाब देने का प्रयास भी करेंगे और धूमावती जयंती के पावन त्यौहार से संबंधित हमारा यह बेहद खास लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया ऐसे ही और भी लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट https://janbhakti.in पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s:
Q. धूमावती जयंती कब मनाई जाती है?
Ans. धूमावती जयंती (Dhumavati jayanti) हर साल हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व मई या जून के महीने में पड़ता है। 2024 में यह त्योहार 14 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
Q. धूमावती कौन हैं?
Ans. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, धूमावती देवी दुर्गा का सातवां स्वरूप हैं और दस महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें विधवा देवी के रूप में भी जाना जाता है। वे बाधाओं को दूर करने और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए पूजी जाती हैं।
Q. धूमावती की उत्पत्ति से जुड़ी कथा क्या है?
Ans. एक कथा के अनुसार, एक बार पार्वती को भूख लगी और उन्होंने शिव से भोजन मांगा। पार्वती की भूख बढ़ती गई और अंत में उन्होंने शिव को खा लिया। जब पार्वती ने शिव को खाया, तो उनके शरीर से धुआं निकला और शिव उनके पेट से बाहर निकले। तब शिव ने पार्वती को बताया कि चूंकि उनका शरीर धुएं से भरा था, इसलिए वह धूमावती के नाम से जानी जाएंगी।
Q. धूमावती की पूजा का क्या महत्व है?
Ans. मान्यता है कि धूमावती की पूजा करने से लंबे समय से चले आ रहे ऋण और कर्ज से मुक्ति मिलती है। उनकी कृपा से बड़े शत्रुओं का नाश होता है और कालसर्प दोष तथा क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से भी छुटकारा मिलता है। उनकी पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Q. धूमावती की पूजा कैसे की जाती है?
Ans. धूमावती जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। गंगाजल से पूजा स्थल को पवित्र करें। पूजा के लिए जल, फूल, सिंदूर, कुमकुम आदि सामग्री रखें। धूप, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित करें। धूमावती की कथा सुनें। पूजा के बाद मां धूमावती से मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करें।
Q. धूमावती का प्रतीकात्मक स्वरूप क्या है?
Ans. धूमावती को एक बूढ़ी, कुरूप विधवा के रूप में दर्शाया गया है, जो हमेशा धुएं से घिरी रहती हैं। वह कौवे पर सवार या कौवों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार दिखाई देती हैं। वह अपने बाएं हाथ में सूप और दाएं हाथ में झाड़ू लिए हुए हैं।